रांची: हेसल के दयाल नगर, पिस्का मोड़ में शनिवार को इस बार भी भव्य रूप में जदुरा जतरा लगाया गया। इसमें स्थानीय सहित आस-पास के हजारों ग्रामीणों संग जेवीएम प्रमुख बाबू लाल मरांडी और पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की ने भी खास तौर से भागीदारी निभायी। सुबह से दोपहर बाद तक जहां पूजन-अनुष्ठान का सिलसिला चला, वहीं शाम गीत-नृत्य से गुलजार हुई। रात का तो कहना ही क्या आधुनिक नागपुरी कलाकारों ने सब का मन मोह लिया। देर रात तक नृत्य-गीत की धूम रही।
दोपहर 12 बजे गांव के पहान सोमरा मुंडा ने अपने सहयोगी पाइनभोरा, कोटवार आदि के साथ आदिवासी सांस्कृति रीति-रिवाज के अनुसार पूरे विधि-विधान से पूजन-अनुष्ठान संपन्न करा कर जतरा की शुरुआत करायी। अनुष्ठान के दौरान पहान ने तीन मुर्गा माला, सफेद और रंगवा मुर्गा की बलि देकर ईष्टदेव से प्रार्थना किया कि सभी गांव के लोग खुशहाल रहें। गांव-घर में रोग-शोक और दुख ना आये। खेत-खलिहान फसलों से लहलहाते रहे। इसके बाद कलशा लेकर जतरा चढ़ने का दौर देर तक चला।
शाम साढ़े चार बजे ढोल-नगाड़ा, मांदर और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ जुलूस के रूप में सरना धर्मावलंबी जतरा स्थल पहुंचे। जतरा तांड़ में घंटों नृत्य-गीत का कार्यक्रम चला। शाम साढ़े सात बजे से बुगी-बुगी और रात साढ़े नौ बजे से आधुनिक नागपुरी गीत-संगीत का कार्यक्रम शुरू हुआ, जो देर रात तक चला। विक्रम गु्रप के कलाकारों ने एक से बढ़ कर एक गीत प्रस्तुत कर सब को झुमाया।
बाबूलाल मरांडी : जतरा में झारखंड की आत्मा बसती है। इसके माध्यम से समाज के लोग आपस में जुड़ते हैं। जतरा हमारी संस्कृति और पहचान है।
बंधु तिर्की : जदुरा जतरा आदिवासी संस्कृति सभ्यता का प्रतीक है। नशा पान से दूर रहकर अपने समाज को आगे ले जाने की आवश्यकता है। आज के युग में पढ़ना-लिखना बहुत जरूरी है। सभी बच्चे शिक्षित हों ।
शिवा कच्छप : जदुरा जतरा झारखंडी संस्कृति का प्रतीक है । यह त्याग बलिदान समर्पण और आत्मीयता का महापर्व है। जतरा को किसी भी कीमत पर बचा के रखना होगा ।
इन्होंने दिया योगदान
सती तिर्की, जितू तिर्की, मंजू तिर्की, चिंटू तिर्की, गुडू तिर्की, बिक्की तिर्की, गौतम कुजूर, बाबू टोप्पो, मुन्नी खलखो, रोहन तिर्की, दीपक खलखो, अमृत बांडो, सोनी तिर्की, गुडिया तिर्की, कंचन तिर्की, रिती तिर्की, अनुप खलखो, सोना खलखो, श्रवन तिर्की, आकाश तिर्की आदि ने जतरा के सफल आयोजन में अपना मुख्य योगदान दिया।