रांची। झारखंड में विपक्ष का सबसे मजबूत दल झामुमो है। वर्ष 2005 में झारखंड विधानसभा का पहला चुनाव हुआ। इससे पहले अलग राज्य बना था, तो झारखंड विधानसभा में झामुमो के 16 विधायक थे। वर्ष 2005 के चुनाव में संख्या बढ़ कर 17 हो गयी। 2009 के विधानसभा चुनाव में झामुमो को 18 सीटें मिली थीं और 2014 के चुनाव में 19 सीटों पर झामुमो विजयी रहा। इस हिसाब से देखा जाये तो लगातार झामुमो कीसीटों में इजाफा ही हुआ है।
2014 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने अकेले चुनाव लड़ा था और झाविमो और कांग्रेस ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इसके बाद भी झामुमो के विधायकों की संख्या झाविमो और कांग्रेस के विधायकों की संख्या से ज्यादा थी। झाविमो को आठ सीटें मिली थीं और कांग्रेस को छह सीटें मिली थीं। बाद में झाविमो के छह विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया और विधानसभा में उसकी संख्या घटकर दो रह गयी, जबकि कांग्रेस को तीन सीटों का इजाफा हुआ है।
महागठबंधन में शामिल होने पर झामुमो को ज्यादा-से-ज्यादा 30 सीट पर संतोष करना पड़ेगा
इसके बाद भी विपक्ष के तमाम दलों को मिला दिया जाये तो झामुमो से इनकी संख्या कम है। सवाल यह उठता है कि झामुमो यदि महागठबंधन में शामिल होता है तो उसे 81 में से कितनी सीटें मिलेंगी। क्या झाविमो और कांग्रेस आधी सीटें झामुमो के लिए छोड़ देंगी। महागठबंधन को लेकर जो पेंच झारखंड में चल रहा है, उसमें यह संभव नहीं दिख रहा है कि कांग्रेस और झाविमो सीट बंटवारे में झामुमो के लिए उदार होंगी। यहां यह बता देना भी प्रासंगिक है कि मोदी लहर के बावजूद झामुमो ने जहां दो लोकसभा सीटें अपने कब्जे में कीं, वहीं कांग्रेस, झाविमो और राजद का झारखंड में सुपड़ा साफ हो गया था। जाहिर है कि अपने बूते भी झामुमो इस प्रदेश में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकता है।
इस बीच जिस तरह से तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस की बोली बदली हुई है, उससे झामुमो के कान खड़े हो गये हैं। यही वजह है कि झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने 17 जनवरी को विपक्षी दलों की बैठक बुलायी है। इधर कोलेबिरा उपचुनाव में झापा प्रत्याशी का समर्थन कर और राजद को अपने साथ मिला कर झामुमो ने यह भी संकेत दे रखा है कि उसके लिए अभी मजबूत रास्ते हैं। इतना तो तय है कि महागठबंधन में शामिल होने पर झामुमो को ज्यादा-से-ज्यादा 30 सीट पर संतोष करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में झामुमो को अपने कार्यकर्ताओें को एकजुट रखना टेढ़ी खीर होगी। कोल्हान, संथाल और कोयलांचल क्षेत्र में झामुमो विपक्ष कीअन्य पार्टियों से ज्यादा मजबूत है। इसकी बानगी पिछले लोकसभा चुनाव में देखने को मिली थी। मोदी लहर में दो सीटों पर झामुमो ने जीत तो हासिल की ही थी, कई जगहों पर वह दूसरे नंबर पर थी। इसी तरह विधानसभा चुनाव में भी बिना गठबंधन किये झामुमो ने भाजपा को परेशान किया था।
झामुमो यदि राजद, वामदल और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ समझौता कर चुनाव लड़ता है तो वह ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी खड़ा कर सकता है। इस गठबंधन में झामुमो आसानी से 50 सीटों पर दावा कर सकता है और सहयोगी दलों को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं होगी। जबकि इससे इतर देखा जाये तो महागठबंधन में पहले से ही कांग्रेस लोकसभा में ज्यादा सीटों की मांग कर रहा है। पहले कांग्रेस ने कहा था कि विधानसभा का चुनाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में लड़ा जायेगा और जब तीन राज्यों का परिणाम उसके पक्ष में आया, कोलेबिरा में कांग्रेस को जीत मिली तो अब वही कांग्रेस यह कह रही है कि चुनाव परिणाम के बाद नेता का एलान किया जायेगा। ऐसा नहीं है कि ये बातें सिर्फ कांग्रेस कह रही है, झाविमो भी यही बात दुहरा रहा है। ऐसे में यह तो साफ है कि महागठबंधन में झामुमो को घाटा होगा ही होगा।
झारखंड में विपक्षी महागठबंधन के कुनबे में सीटों के तालमेल को लेकर परेशानी बढ़ सकती है। मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का दावा विधानसभा की कुल 81 सीटों में से 45 पर है। बची हुई 36 सीटों में से 25 पर कांग्रेस की दावेदारी हो सकती है। ऐसी स्थिति में बाकी बची महज 11 सीटों पर लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राजद, बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो और वामदलों की दावेदारी होगी। झामुमो इसी फार्मूले के साथ आगे बढ़ रहा है। ऐसे में टकराव तय है। कांग्रेस 25 सीटों पर मान सकती है, लेकिन बाबूलाल मरांडी को मनाना कठिन होगा। बाबूलाल मरांडी बड़ी मुश्किल से गठबंधन का साथ देने को राजी हुए हैं। विधानसभा में झामुमो के सर्वाधिक 19 विधायक हैं।
वर्तमान राजनीतिक तसवीर के हिसाब से झामुमो की सीटों के बंटवारे का फार्मूला ठीक ही दिखायी देता है। कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों को उनकी वर्तमान हैसियत से तीन गुना से अधिक सीटें देने की पेशकश की गयी है। लेकिन झामुमो का यह फार्मूला विपक्षी दलों को रास आयेगा, इसमें संशय है। बाबूलाल मरांडी का झाविमो सीटों के बंटवारे के इस फार्मूले से छिटक सकता है। पिछले चुनाव में झाविमो ने अपने बूते आठ सीटों पर जीत हासिल की थी। महागठबंधन में राजद अपनी हैसियत को लेकर भी सवाल उठा सकता है। वामदलों की स्थिति भी इससे इतर नहीं होगी।