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    Home»Breaking News»सुदेश महतो ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लिखा पत्र
    Breaking News

    सुदेश महतो ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लिखा पत्र

    azad sipahiBy azad sipahiJanuary 17, 2022No Comments2 Mins Read
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    रांची। आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सह विधायक सुदेश कुमार महतो ने सोमवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि जनभावना और लोकहित से जुड़े एक महत्वपूर्ण विषय-जातीय जनगणना की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं। केंद्र सरकार ने नीतिगत मामले के तौर पर पिछले साल ही फैसला किया है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा कोई जातीय जनगणना नहीं होगी। इन परिस्थितियों में राज्य सरकार को अपने स्तर पर जातीय जनगणना कराने की सीधी पहल करनी चाहिए। यह राज्य की जरूरत है।

    राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के बीच अलग-अलग माध्यमों से यह मांग लगातार उठती भी रही है। हर आदमी की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का आंकलन जनगणना में होता है। जनगणना, नीतियां बनाने का एक प्रमुख आधार है और जातीय आंकड़े आरक्षण की सीमाएं तय करने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। झारखंड में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाने की बहुप्रतीक्षित मांग जातीय आबादी के दावे के साथ सालों से उठती रही हैं।

    झारखंड में जातीय जनगणना विकास और कल्याण कार्यक्रमों का खाका खींचने में भी महत्वपूर्ण फैक्टर साबित हो सकता है। उन्होंने यह भी लिखा है कि दरअसल इस राज्य के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग जातियों की बहुलता है और उनकी जरूरतें, आकांक्षाएं अलग हैं। जनगणना जातीय आधारित होने पर वास्तविक जरूरतमंदों को सरकारी योजना और कल्याणकारी कार्यक्रमों का लाभ भी ज्यादा मिल सकता है। आपके नेतृत्व में चल रही गठबंधन की सरकार पिछड़े, दलितों, आदिवासियों के हितों को लेकर अकसर प्रतिबद्धता जाहिर करती रही है और चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दलों ने रोजगार, नौकरी, आरक्षण को लेकर कई वादे भी किए हैं।

    जातीय जनगणना कराने में अगर सरकार दिलचस्पी दिखाए, तो उनका हक अधिकार भी सुनिश्चित किया जा सकेगा। जातीय जनगणना को लेकर कई तर्क दिए जाते हैं और इसके ना कराने के पीछे अगर-मगर देखा-समझा जाता रहा है। लेकिन मैं समझता हूं कि जातीय जनगणना होने से तमाम आशंकाएं निर्मूल साबित होंगी। झारखंड में जातीय जनगणना वक्त और सभी तबके के समेकित विकास तथा हिस्सेदारी के लिए मौजूदा जरूरत है। साथ ही यह सामाजिक-राजनीतिक बहस के केंद्र में भी है।

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