देश का बंटवारा हो चुका था और बंटवारे के असली गुनाहगार जिन्ना 7 अगस्त 1947 को भारत छोड़कर कराची के लिए रवाना हो रहे थे.
उसदिन एयरपोर्ट पर उन्हें विदा करने कई लोग आए थे जिनमें एक नाम जाने माने उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया का भी था.
आप को बता दें कि दिल्ली में उनके दोस्तों में सेठ रामकृष्ण डालमिया भी थे.
लिहाजा, दिल्ली हमेशा के लिए छोड़ने से एक दिन पहले डालमिया ने उन्हें सिकंदरा रोड वाले अपने बंगले पर जिन्ना को खाने पर बुलाया गया, उनकी डेंटिस्ट बहन फातिमा जिन्ना भी आईं, रामकृष्ण डालमिया की पत्नी नंदिनी डालमिया भी मेजबानी कर रही थीं.
पाकिस्तान जाने से पहले जिन्ना ने अपना बंगला करीब ढाई लाख रुपए में डालमिया को बेच चुके थे.
हालाँकि दोनों दोस्त थे फिर भी जिन्ना ढाई लाख रुपये से कम पर अपने बंगले को बेचने के लिए तैयार नहीं हुए.
लेकिन डालमिया ने जिन्ना का बंगला खरीद लिया और खरीदने के बाद डालमिया ने जिन्ना का बंगला गंगाजल से धुलवाया. दरअसल, जिन्ना से भले ही डालमिया की दोस्ती हो लेकिन वे कट्टर हिंदूवादी स्वभाव के व्यक्ति थे.
वे जिन्ना के जाने के बाद जिन्ना का बंगला हिंदू परंपरा के अनुसार गंगा जल से धोकर उसे पवित्र करना चाहते थे.
इतना ही नहीं डालमिया ने जिन्ना के दिल्ली छोड़ते ही बंगले के ऊपर लगे मुस्लिम लीग के झंडे को उतारकर उसकी जगह गौरक्षा आंदोलन का झंडा लगवा दिया.
गौरतलब है कि जिन्ना 1940 से पहले जब भी दिल्ली आते थे, तो तब वे जनपथ के इम्पीरियल होटल में ही ठहरते थे. लेकिन जिन्ना ने दिल्ली में घर खरीदने का फैसला किया.
काफी तलाश के बाद 10 औरंगजेब रोड जिसका कि नाम बदलकर अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया है वहां जिन्ना ने बंगला खरीदा. यह जिन्ना का बंगला करीब डेढ़ एकड़ में बना हुआ था.
आप को बता दें कि इस दो मंजिला बंगले का डिजाइन एडवर्ड लुटियन की टीम के सदस्य और कनॉट प्लेस के डिजाइनर रॉबर्ट टोर रसेल ने तैयार किया था. इन दिनों इस बंगले में नीदरलैंड के राजदूत के आवास है.
दरअसल, वर्ष 1964 तक डालमिया ने जिन्ना से खरीदे बंगले को अपने पास रखा लेकिन बाद में जिन्ना का बंगला नीदरलैंड सरकार को बेच दिया. तब से जिन्ना का बंगला इस्तेमाल नीदरलैंड के नई दिल्ली में राजदूत के आवास के रूप में हो रहा है.