चीन ने अगर भारत के प्रति घमंडी रवैया अख्तियार किया या विनिर्माण क्षेत्र में उसकी बढ़ती प्रतिस्पर्धा को नजरअंदाज किया, तो यह उसके लिए घातक साबित होगा। चीन के एक समाचार पत्र ने इसे लेकर आगाह किया है। ग्लोबल टाइम्स के एक संपादकीय के मुताबिक, भारत के विनिर्माण क्षेत्र के विकास का मतलब है। चीन के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा और अधिक दबाव। लेख में कहा गया है कि नोटबंदी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के सुस्त रहने के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र में 8.3 फीसदी की बढ़ोतरी एक बड़ी उपलब्धि है।
अखबार के मुताबिक, ‘अक्टूबर से दिसंबर 2016 के दौरान भारत की विकास दर 7 फीसदी रही है, जो अनुमान से अधिक है और यह आंकड़ा सही है या नहीं, इस पर काफी बहस भी हुई है।
इस बीच देश की अर्थव्यवस्था के अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कम ध्यान दिया गया। जिस चीज को नजरअंदाज किया गया, वह है भारत के विनिर्माण क्षेत्र की बढ़ती प्रतिस्पर्धा।’ संपादकीय में कहा गया, ‘जनवरी महीने में भारत द्वारा चीन को निर्यात में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 42 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई, जिसकी चीन के अधिकांश विशेषज्ञों ने अनदेखी की। लेकिन अगर चीन ने भारत की बढ़ती प्रतिस्पर्धा पर अभिमानी रवैया अपनाया तो यह बेहद खतरनाक होगा।’
संपादकीय के मुताबिक, ‘नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के कदम ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर ब्रेक लगाया है, लेकिन तीसरी तिमाही में देश के विनिर्माण क्षेत्र की रफ्तार फिर भी 8.3 फीसदी है। यह भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि कुछ विशेषज्ञों ने कहा था कि नोटबंदी से विकास के आंकड़ों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ सकता है।’ अखबार ने कहा, ‘भारत जैसे बड़े देश में विनिर्माण क्षेत्र के विकास का अर्थ है चीन पर ज्यादा दबाव। भारत के विनिर्माण क्षेत्र से मिल रही प्रतिस्पर्धा एक रणनीति महत्ता का मुद्दा है और इसपर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है।’
लेख में यह भी कहा गया है कि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि भारत, विनिर्माण क्षेत्र में चीन की जगह ले सकता है। संपादकीय के मुताबिक, ‘स्क्रू से लेकर वाणिज्यिक विमानों के निर्माण के लिए कम समय में औद्योगिकी श्रृंखला का निर्माण करना आसान नहीं है। भारत निर्मित वस्तुओं से बढ़ती प्रतिस्पर्धा पर पैनी नजर रखी जानी चाहिए।