एक तरफ देश में काले धन को लेकर तरह-तरह की आवाजें उठ रही हैं तो दूसरी तरफ फिल्म ‘कमांडो 2’ में दिखाया गया है कि किस तरह से विदेशो में छिपा काला धन न केवल वापस लाया जा सकता है, बल्कि उसे देश के जरूरमंद लोगों में किस तरह बांटा भी जा सकता है।
बॉन्ड स्टाइल में बनाई गई इस फिल्म में एक कमांडो की भूमिका वन मैन आर्मी की है, जो बालीवुड के रूटीन ही मैन की छवि से कभी बाहर आ ही नहीं पाया है। इसमें अब्बास-मस्तान की ‘रेस’ और ‘रेस 2’ जैसे सस्पेंस के हिचकोले भी हैं। विक्रम भट्ट जैसे निर्देशकों की फिल्म सरीखी खराब एक्टिंग भी।
स्टंटबाजी के चक्कर में कई बचकाने प्रयास और अतिवाद की शिकार इस फिल्म में अगर कुछ अच्छा है तो वो है फिल्म की थीम, जिसे अफलातून बनने के चक्कर में यूं ही बर्बाद कर दिया गया है।
‘कमांडो 2’ की बखिया उधेड़ने के लिए और भी बहुत कुछ है, लेकिन इससे पहले एक नजर इसकी कहानी पर।
ये है फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है ‘कमांडो’ करण (विद्युत जामवाल) को मिली एक जानकारी से, जिससे उसे पता चलता है कि विकी आहूजा नामक एक व्यक्ति के पास देश का एक लाख करोड़ रूपये का काला धन जमा है और वह मलेशिया में रहता है।
इस जानकारी के आधार पर करण स्पेशल सेल के अपने अफसर (आदिल हुसैन) के साथ मिल कर एक प्लान बनाता है, लेकिन तभी देश की गृह मंत्री लीला चौधरी (शेफाली शाह) को पता चलता है कि उसका बेटा देशांक (सुहेल नायर) भी इस कांड में लिप्त है। काले धन के तार रानावल (सतीश कौशिक) जैसे बड़े बिजनेसमैन से भी जुड़े हैं, जो विकी आहूजा पर लगाम लगाने के लिए लीला चौधरी से कुछ करने के लिए कहता है। बेटे को फंसता देख और अपनी साख एवं रुतबे पर आंच आती देख वह लीला एक मिशन प्लान करती है, जिसके तहत विकी आहूजा को सही सलामत वापस भारत लाना है।
उधर, मलेशिया में पुलिस विकी को गिरफ्तार कर सेफ हाउस में रखती है। इधर, लीला एक टीम बनाती है, जिसमें अपने भरोसेमंद एसीपी बख्तावर (फ्रेडी दारूवाला) को रखती है। उसके एक एंकाउंटर स्पेशलिस्ट भावना अय्यर (अदा शर्मा) और जफर इकबाल नामक एक सायबर एक्सपर्ट को भी मिशन पर भेजा जाता है। किसी तरह से ऐन मौके पर करण भी इस टीम का हिस्सा बनने में कामयाब हो जाता है।
मलेशिया पहुंचने पर करण को विकी आहूजा (ठाकुर अनूप सिंह) के बारे में एक अलग ही कहानी पता चलती है। विकी की पत्नी मारिया (ईशा गुप्ता) उसे बताती है कि दरअसल विकी भारत में बैठे कुछ नेताओं और बड़े उद्योगपतियों के बिछे जाल का शिकार बना है, जिनका बहुत सारा पैसा काले धन के रूप में विकी ने अलग-अलग बैंकों में छिपा रखा है। अब वह उसे ब्लैकमेल कर रहे हैं और बदनाम भी। मारिया करण से मदद मांगती है और चाहती है कि उसे और विकी को किसी तरह मलेशिया से बैंकॉक पहुंचा दिया जाए। करण की मदद से मारिया और विकी बैंकॉक पहुंचने में कामयाब भी हो जाते हैं, लेकिन जब विकी की असलियत करण को पता चलती है तो उसके होश उड़ जाते हैं। बैंकॉक आने पर मारिया, विकी को गोली मार देती है और वह करण को बताती है कि वह ही विकी आहूजा है। पूरा गेम पलट जाता है और इस जद्दोजहद में जफर इकबाल भी मारा जाता है। अब पूरे मिशन को नए सिरे से शुरू करता है और अपनी जांच मलेशिया के उसी सेफ हाउस से शुरू करता है, जहां उसने पहली बार विकी और मारिया को देखा था। यहां से मिली एक वीडियो फुटेज से उसे एक बाइबल के बारे में पता चलता है, जो उसे विकी आहूजा और उसके आगे के प्लान का ब्योरा देती है।
‘कमांडो: ए वन मैन आर्मी’ जैसी नहीं है ‘कमांडो 2’
साल 2013 में आई दिलिप घोष निर्देशित ‘कमांडो: ए वन मैन आर्मी’ से विद्युत जामवाल ने स्टंट के नाम पर एक ऐसी ताजगी से रू-ब-रू करवाया था, जो जोश जगाती थी और जिसमें सुविधाजनक पहलू की कई गुंजाइश नहीं दिखती थी। किसी इंसान द्वारा ऐसे स्टंट अंग्रेजी फिल्मों में देखे जाते थे। यही वजह थी कि फिल्म चल निकली और इससे इसके सीक्वल की गुंजाइश फलने-फूलने लगी। लेकिन ये सीक्वल देख कर कई जगहों पर घर निराशा होती है। निर्देशक और लेखक ने एक अहम मुद्दे को भुनाने के चक्कर में लॉजिक वगैरह का कोई ध्यान ही नहीं रखा है। 95 प्रतिशत फिल्म देख कर लगेगा कि सब मिले हुए हैं।
खाकी और सफेद पोश सब इस काले धन को छिपाने में बराबर के भागीदार हैं, लेकिन अगले ही सीन में सब मसीहा बने नजर आते हैं औक क्लाईमैक्स में कमांडो का ये डॉयलाग की हम आज के जमाने के योद्धा है, जो अपने हाथों से निर्णय करते हैं।
कहा जाता है कि फिल्म शोले के दो क्लाईमैक्स फिल्माए गए थे। एक में ठाकुर (संजीव कुमार), गब्बर (अमजद खान) को मार देता है और दूसरे में ठाकुर को ऐसा करने से पुलिस रोक लेती है और गब्बर को गिरफ्तार कर लिया जाता है। हम सबने गब्बर के गिरफ्तार होने वाला सीन ही देखा है, वो इसलिए कि एक जिम्मेदार पुलिस अफसर रह चुके इंसान को बदले की आग में अंधा होता देख नहीं दिखाया जा सकता था। आखिर कानून नाम की भी कोई चीज है। लेकिन देवेन भोजानी ने अपने कमांडो को सब करने की छूट दी है। वह धड़ल्ले से एन्काउंटर करता है तो अगले दिन उसका वरिष्ठ कहता है कि तुम कब सुधरोगे करण…
कुछ ऐसी है फिल्म में एक्टिंग
दूसरी तरफ फिल्म का हर किरदार रेडीमेड लगता है, जैसे किसी माल जाकर आपने महीने भर की खरीदारी कर ली है। जैसे कि एक्शन फिल्म में ग्लैमरस किरदार, जिसके लिए अदा शर्मा और ईशा गुप्ता को लिया गया है। एक टीम, जिसमें एक साइबर एक्सपर्ट है, एक गंभीर और एक फूहड़ पुलिसवाली है। टीम विदेश जाती है तो पीछे से सब हैंडल करने के लिए वरिष्ठ आधिकारी हैं, जो अपने जबनियरो के आदेश को फॉलो कर रहे हैं। भारतीय दूतावास के कर्मी कृष्णन की भूमिका पुलिस अफसर सरीखी है। कोई कहीं से भी आ जाता है। सब दाएं, बाएं सायं है….
इस फिल्म का एकमात्र उद्देश्य जामवाल की अच्छी कद काठी को भुनाना है, जिससे स्टंट करते समय शोले से भड़कते हैं। लेकिन वो शोले इस बार गायब हैं, इसलिए ये फिल्म बस कुछेक हिस्सों में ही अच्छी लगती है। अधिकांश समय इसके बचकाने और फूहड़ ट्रीटमेंट में कमियां निकालने में ही व्यतीत हो जाता है। देश के लोग जब ईथन हंट और जेसन बार्न जैसे जासूसों को मजे लेकर देखते हैं तो उन्हें ये देसी एजेन्ट विनोद और कमांडो करण कहां पचेंगे।
सितारे: विद्युत जामवाल, अदा शर्मा, ईशा गुप्ता, फ्रेडी दारूवाला, शेफाली शाह, आदिल हुसैन, सुहेल नायर, ठाकुर अनूप सिंह
निर्देशन: देवेन भोजानी
निर्माता: विपुल शाह
संगीत: मनन शाह, गौरव रोशिन,
गीत: कुमार, आतिश कपाड़िया
कहानी: रितेश शाह