तेजी से नीचे जा रहा वाटर लेबल
राजधानी के आसपास भू-गर्भ जल की स्थिति काफी दयनीय है। लगातार वाटर लेबल नीचे गिरता जा रहा है। कभी समय था कि 20 फीट कु आं खुदवाते ही पानी का स्त्रोत मिल जाता था, अब स्थिति यह है कि 500 फीट तक भी बोरिंग करा लें, तो अगर वाटर लेबल मिल गया, तो आपका भाग्य है। राजधानी रांची समेत 18 जिले ऐसे हैं, जो ड्राई जोन की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। राजधानी में कई ऐसे क्षेत्र थे, जहां बोरिंग कराने पर पहले 20 से 50 फीट में पानी मिल जाता था, लेकिन अब 200 से 700 फीट तक बोरिंग कराने के बाद भी पानी नहीं निकलता है। यदि कहीं निकलता भी है, तो छह माह से एक वर्ष के अंदर बोरिंग फेल हो जाता है। खासकर मोरहाबादी, चिरौंदी, करमटोली (ऊपरी), एदलहातू, कांके रोड आदि ऐसे इलाके हैं, जहां जल-स्तर काफी नीचे जा चुका है। स्थिति यह है कि यहां बने-बनाये मकान या फ्लैट के खरीददार नहीं मिल रहे हैं।
वनों का कटाव ही जल स्तर नीचे जाने का कारण
रांची: वनों का खुलकर दोहन, बरसात के पानी को व्यर्थ बहाना, कंक्रीट का जाल, शहरी आबादी का बढ़ना, जल स्त्रोतों का दोहन हमारे पर्यावरण को काफी प्रभावित कर रहा है। अनगिनत बोरिंग का होना भी वाटर लेबल का नीचे जाना एक कारण है। पेड़ पौधे की जड़ों के माध्यम से पानी की नमी होती है। पेड़ों की जड़ों से भू स्खलन बचा रहता है, लेकिन आधुनिक युग में अपने सुख के लिए लोग प्राकृतिक स्त्रोतों का जमकर दोहन कर रहे हैं। इसे रोकना होगा अन्यथा आनेवाले दिनों में पानी की किल्लत को लेकर मारामारी आम बात होगी। – एके मिश्रा, पीसीसीएफ सह पूर्व अध्यक्ष झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।
18 जिले ड्राइ जोन के कगार पर
एक सर्वे के अनुसार राज्य के 18 जिलों के शहरी इलाकों में भू-गर्भ जल का स्तर तेजी से गिर रहा है। यहां दो से चार मीटर तक जल-स्तर नीचे गया है। इनमें रांची, पं. सिंहभूम, हजारीबाग, चतरा, गिरिडीह, बोकारो, पलामू, गढ़वा, लातेहार, गुमला, लोहरदगा, पूर्वी सिंहभूम, दुमका, जामताड़ा, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज एवं पाकुड़ जिले शामिल हैं।
जल स्तर घटने का प्रमुख कारण है बोरिंग
झारखंड में जल स्तर घटने का प्रमुख कारण है बोरिंग। राज्य में प्रत्येक वर्ष 20 से 25 हजार नये टयूबवेल लगाये जाते रहे हैं। सरकारी चापानलों के लिए ग्रामीण इलाकों में 60 मीटर तक की बोरिंग की जाती है। शहरी क्षेत्र में बोरिंग कराने के लिए नगर निगम की अनुमति आवश्यक है, क्योंकि अब 100 मीटर (300 फीट) तक की बोरिंग भी फेल हो रही हैं। अमूमन 4.5 इंच व्यास की बोरिंग सरकारी टयूबवेल में की जाती है। दलदल वाले इलाकों के लिए गै्रवेल पैक्ड टयूबवेल (जीपीटी) की स्थापना की जाती है। सरकार की ओर से वैकल्पिक व्यवस्था के तहत छह इंच व्यास की बोरिंग (उच्च प्रवाही नलकूप) के लिए की जाती है।
शहरी विकास के नाम पर बनता कंक्रीट का जंगल, पक्की सड़कों का जाल, वनों का जमकर दोहन, भवनों का निर्माण, वाटर हार्वेस्ंिटग व्यवस्था की अनदेखी, बरसात के पानी को रोकने का कोई उपाय नहीं आदि ने झारखंड को सुखाड़ की ओर धकेल दिया है। शहर में बढ़ती आबादी और भूगर्भ जल का भरपूर दोहन शहरों में लगातार पेयजल की समस्या का कारण बन रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक यही हालात रहे, तो आनेवाले दिनों में लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरसेंगे। समय रहते नहीं चेते और पानी नहीं बचाया, तो आनेवाले दिनों में पेट्रोल की तरह ही पानी खरीदने की नौबत आ सकती है।