-लैंड स्कैम में इडी की कार्रवाई: हिरासत में लिये गये अंचलकर्मी सहित सात लोग खोंलगे राज
-इडी खंगाल रही जब्त कागजात, कोलकाता से जुड़ रहा तार
आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने गुरुवार को सेना की 4.55 एकड़ जमीन घोटाले में छापेमारी के बाद बड़गाईं के अंचलकर्मी समेत सात लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। कोर्ट ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। इन सातों से अब पूछताछ होगी। इसमें कई राज खुलने की उम्मीद है। इस घोटाले में सबसे अहम नाम आइएएस अधिकारी छवि रंजन का आ रहा है। वह उस वक्त रांची डीसी थे और वर्तमान में समाज कल्याण निदेशक हैं। उनके आवास सहित अन्य ठिकानों पर इडी ने छापेमारी की थी, कई महत्वपूर्ण कागजात मिलने की जानकारी मिल रही है। एक सवाल उठ रहा कि आखिर छवि रंजन तक इडी पहुंची कैसे? इडी को ऐसा क्या हाथ लगा कि छवि रंजन पर दबिश बढ़ी? सूत्रों की मानें तो सब रजिस्ट्रार की सेल डीड पर एक छोटी सी टिप्पणी छवि रंजन के लिए काल बन गयी। यह डीड इडी के हाथ लगी और छवि रंजन जांच के दायरे में आ गये। अब यह तय माना जा रहा है कि जल्द ही छवि रंजन को पूछताछ के लिए बुलाया जायेगा।
गुरुवार को 22 जगहों पर हुई थी छापेमारी:
गौरतलब है कि इडी ने सेना जमीन घोटाला मामले में गुरुवार को झारखंड, बिहार और बंगाल में 22 जगहों पर एक साथ छापेमारी की थी। इसमें आइएएस छवि रंजन सहित बड़गाई अंचलकर्मी भानु प्रताप प्रसाद और अन्य जमीन दलाल शामिल थे। भानू प्रताप के घर से बक्शे भर कर जमीन से जुड़े कागजात मिले। सूत्रों की मानें तो इडी को हर जगह से कई अहम जानकारी मिली, जिसके आधार पर अंचलकर्मी सहित सात लोगों को हिरासत में लिया गया।
न्यायिक हिरासत में गये आरोपी:
इडी ने रांची स्थित बड़गाईं अंचल कर्मचारी भानु प्रताप प्रसाद, रिम्स के कर्मचारी अफसर अली खान, कोलकाता के प्रदीप बागची, इम्तियाज खान, तलहा खान, अयाज खान और मोहम्मद सद्दाम को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। आंबेडकर जयंती के अवसर पर सार्वजनिक अवकाश होने के कारण आरोपियों को जज कॉलोनी स्थित आवासीय कार्यालय में पेश किया गया था। वहां से सभी आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। उनसे 16 अप्रैल तक इडी पूछताछ कर सकेगी। इसके बाद 17 अप्रैल को फिर कोर्ट में पेश किया जायेगा।
जमीन घोटाले में किसकी क्या है भूमिका:
सूत्रों के मुताबिक भानु प्रताप प्रसाद लैंड स्कैम का मुख्य सूत्रधार बताया जा रहा है। इस मामले में फर्जी कागजात बनाने वाला अफसर अली खान मुख्य व्यक्ति है। इसके अलावा अन्य लोग जमीन दालाली में शामिल रहे हैं। सूत्रों की मानें तो आइएएस छवि रंजन का अफसर अली खान के साथ गहरा रिश्ता था। जमीन फर्जीवाड़ा में उनकी भी भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है।
मौखिक आदेश को सब रजिस्ट्रार ने लिखित लाया:
तत्कालीन डीसी छवि रंजन ने प्रदीप बागची नामक व्यक्ति द्वारा दिये गये आवेदन को आधार बनाते हुए बड़गाईं सीओ मनोज कुमार को सेना के कब्जे वाली 4.55 एकड़ जमीन से संबंधित जांच रिपोर्ट मांगी थी। सीओ ने इसके लिए बड़गाईं सीआई भानु प्रताप प्रसाद को कोलकाता स्थित रजिस्ट्रार आॅफिस में दर्ज दस्तावेज की जांच करके रिपोर्ट देने को कहा। सीआइ ने 22 सितंबर 2021 को सीओ को अपनी रिपोर्ट सौंपी। सीओ ने भानु की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए 25 सितंबर 2021 को डीसी को रिपोर्ट भेजी। इसमें कहा कि प्रदीप बागची के पिता प्रफुल्ल बागची ने सेल डीड के माध्यम से 1932 में उक्त जमीन की खरीदारी की थी। इसलिए प्रदीप बागची का प्रथम दावा बनता है। इसके बाद छवि रंजन ने मौखिक रूप से तत्कालीन सब रजिस्ट्रार घासीराम पिंगुवा को उस जमीन की रजिस्ट्री कोलकाता के जगतबंधु टी इस्टेट प्रा. लि. के निदेशक दिलीप कुमार घोष के नाम करने का निर्देश दिया। सब रजिस्ट्रार ने खुद को बचाने के लिए निबंधन के दौरान सेल डीड पर लिख दिया कि उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी को संबोधित अंचल अधिकारी बड़गाईं, रांची के ज्ञापांक 847, दिनांक 25 सितंबर 2021 के आलोक में निबंधन की स्वीकृति दी जाती है। यही टिप्पणी इडी के छवि रंजन, सीओ-सीआइ और जमीन दलालों तक पहुंचने का कारण बनी।
कोलकाता से होता था फर्जी जमीन का खेल:
सूत्रों की मानें तो कोलकाता से जमीन के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर रांची में अरबों की जमीन की खरीद बिक्री में गड़बड़ी और उससे मनी लाउंड्रिंग के साक्ष्य इडी को मिले हैं। अधिकतर कागजात कोलकाता से बनवाये जाते थे। अंचलकर्मी के यहां से कोलकाता रजिस्ट्री आॅफिस के दो फर्जी स्टांप मिले। वहीं, इस मामले में गिरफ्तार प्रदीप बागची द्वारा पेश दस्तावेज में बताया गया है कि 4.55 एकड़ जमीन को उसके पिता ने 1932 में खरीदी थी और इसकी रजिस्ट्री कोलकाता में हुई थी। इस दस्तावेज में राज्य का उल्लेख पश्चिम बंगाल के रूप में है, जबकि 1932 में राज्य का नाम बंगाल था। पश्चिम बंगाल 1947 में अस्तित्व में आया। इसी तरह दस्तावेज में कई जगहों पर गवाहों, विक्रेता और क्रेता के पते के साथ पिन कोड का उल्लेख किया गया है। उस समय पिन कोड का अस्तित्व ही नहीं था। पोस्टल इंडेक्स नंबर (पिन) की शुरूआत 15 अगस्त, 1972 को हुई थी। दस्तावेज में एक गवाह का स्थायी पता भोजपुर जिला बताया गया है, जबकि बिहार के इस जिले की स्थापना 1972 में हुई। ये तमाम बातें कोलकाता से लिंक जुड़ने की पुष्टि कर रही हैं।