- मजदूर दिवस पर झारखंड के प्रवासी मजदूरों को मिला बड़ा तोहफा
- हेमंत की पहल लायी रंग, केंद्र और तेलंगाना ने की मदद, तो चल पड़ी विशेष ट्रेन
कोरोना संकट के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के संभवत: अंतिम चरण में मजदूर दिवस के दिन देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों, खास कर झारखंड के मजदूरों को एक नायाब तोहफा मिला है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पहल और केंद्र तथा तेलंगाना सरकार की सदाशयता ने एक ऐसा काम कर दिखाया है, जिसकी मिसाल आनेवाले दिनों में दुनिया देगी। देश के दूसरे प्रदेश जहां अभी अपने छात्रों और प्रवासी मजदूरों को लाने की अनुमति मिलने के बाद कार्य योजना बना रहे हैं और केंद्र से विशेष ट्रेन चलाने की मांग को लेकर बातचीत कर रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना सरकार की मदद से झारखंड पर एक बड़ा एहसान कर दिया है। यह काम इसलिए भी प्रशंसनीय है, क्योंकि इसने राजनीति को किनारे रख दिया है। प्रधानमंत्री ने गैर-भाजपा शासित प्रदेश की बात मान कर सबसे पहले वहां के प्रवासियों को घर भेजने की व्यवस्था की और तेलंगाना सरकार ने महज कुछ घंटे में ही पूरी व्यवस्था कर साबित कर दिया कि कोरोना के खिलाफ यह जंग पूरा देश एकजुट होकर लड़ रहा है। एक मई को जब पूरी दुनिया मजदूर दिवस मना रही है, तेलंगाना के लिंगमपल्ली स्टेशन से अहले सुबह एक विशेष ट्रेन रवाना हुई है, जिसमें 12 सौ प्रवासी मजदूर हैं। हेमंत सोरेन बहुत पहले से प्रवासी मजदूरों की वापसी के लिए विशेष ट्रेन की व्यवस्था करने की मांग कर रहे थे और अब केंद्र सरकार ने उनकी यह मांग मान कर साबित कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता सूची में झारखंड का स्थान बहुत ऊंचा है। हेमंत सोरेन की इस पहल के बाद अब दूसरे राज्यों के प्रवासी मजदूरों और छात्रों की घर वापसी का रास्ता साफ हो गया है। केंद्र सरकार के इस कदम की पूरे झारखंड में सराहना की जा रही है। इस प्रकरण पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
एक मई, यानी मजदूर दिवस। झारखंड की राजधानी रांची से करीब 18 सौ किलोमीटर दूर तेलंगाना के लिंगमपल्ली रेलवे स्टेशन पर गहमा-गहमी थी। सुबह चार बजे का समय था और पिछले 37 दिन से लॉकडाउन के कारण आम तौर पर सूना रहनेवाले स्टेशन पर अचानक पोटली, बैग और दूसरे सामान के साथ लोग जुटने लगे। प्लेटफॉर्म संख्या एक पर 24 डिब्बों वाली एक ट्रेन खड़ी थी। बिना किसी अफरा-तफरी और शोरगुल के लोग कतारों में खड़े होकर अपनी स्वास्थ्य जांच करा रहे थे। रेलवे के कर्मी और स्थानीय चिकित्सक सभी लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग कर रहे थे। धीरे-धीरे सभी लोग उस ट्रेन में सवार हो गये। इस ट्रेन को झारखंड की राजधानी रांची के हटिया स्टेशन तक आना था। ठीक 4.50 बजे ट्रेन के इंजन ने हॉर्न बजायी और वहां से रवाना हो गयी। स्टेशन पर मौजूद बिहार के एक व्यक्ति ने फोन पर बताया कि जैसे ही ट्रेन खुली, लगभग हरेक डिब्बे से भारत माता की जय, नरेंद्र मोदी जिंदाबाद और जय झारखंड का नारा बुलंद होता रहा। ट्रेन पर सवार लोगों की आंखें नम थीं और वे हाथ हिला कर स्टेशन पर खड़े कर्मियों का आभार व्यक्त कर रहे थे। तेलंगाना सरकार ने उन 12 सौ प्रवासियों के लिए खाना और पानी का इंतजाम किया था।
पिछले 37 दिनों से देश भर में जारी लॉकडाउन के दौरान यह पहली यात्री ट्रेन चली। स्वाभाविक तौर पर इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ तेलंगाना सरकार को दिया जा रहा है। जब यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सरकारों ने बाहर फंसे अपने छात्रों और प्रवासी मजदूरों को वापस लाने का अभियान शुरू किया था, हेमंत सोरेन पर भी दबाव बढ़ गया था। विपक्षी दल और आम लोग झारखंड सरकार से मांग करने लगे थे कि उसे भी ऐसा अभियान चलाना चाहिए। तब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साफ कर दिया था कि वह केंद्र सरकार की अनुमति और उसकी मदद के बिना ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि इससे लॉकडाउन के लिए जारी गाइडलाइन का उल्लंघन होगा। हेमंत ने पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ और बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया। उन्होंने प्रधानमंत्री को एक पत्र भी भेजा। बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों ने भी मांग उठायी। तब 29 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बाहर फंसे छात्रों, पर्यटकों और प्रवासी मजदूरों को घर लौटने की अनुमति दी। लेकिन इस अनुमति में कुछ शर्तें लगा दी गयीं। तब हेमंत सोरेन ने साफ कर दिया कि झारखंड के पास इतना संसाधन नहीं है कि वह अपने यहां के 10 लाख लोगों को वापस ला सकता है। उन्होंने इसमें केंद्र सरकार से मदद करने का आग्रह किया और विशेष ट्रेन चलाने के लिए रेल मंत्री से सीधे बात की। हेमंत का अनुसरण दूसरे राज्यों ने भी किया, हालांकि दूसरे किसी भी मुख्यमंत्री ने रेल मंत्री से बात करने की जहमत नहीं उठायी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हेमंत सोरेन की पहल को सम्मान दिया। उन्होंने महसूस किया कि देश को सबसे अधिक खनिज देनेवाला राज्य यदि लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहा है, तो बदले में उसे इनाम मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री ने रेल मंत्री से बात की और फिर पूरी रणनीति तैयार की गयी। इसके बाद तेलंगाना सरकार को भरोसे में लिया गया, जिसने प्रधानमंत्री के निदेर्शों का पालन सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया। इसके बाद 30 अप्रैल को जब हेमंत सोरेन ने साफ कर दिया कि झारखंड सरकार अपने लोगों को वापस लाने के लिए हरसंभव कदम उठायेगी और जरूरत पड़ने पर विमानों का इस्तेमाल भी करेगी, तब झारखंड के लोगों को, बाहर फंसे छात्रों और प्रवासी मजदूरों को भरोसा हो गया कि उनकी वापसी में अब अधिक समय नहीं लगनेवाला है। जिस समय हेमंत रांची में यह बात कर रहे थे, साहेबगंज से बसों को बंगाल के लिए रवाना किया जा रहा था और उधर रेल मंत्रालय भी झारखंड सरकार से संपर्क में था। देर रात तक सभी तैयारियां की गयीं और लिंगमपल्ली और आसपास के इलाके में फंसे जितने झारखंडी मजदूरों ने मुख्यमंत्री सहायता एप पर रजिस्ट्रेशन कराया था, उनमें से 12 सौ को रेलवे स्टेशन पहुंचने को कहा गया। तीन बजे तक सभी मजदूर स्टेशन पहुंच गये और अंतत: उन्हें लेकर ट्रेन रवाना हो गयी।इस ट्रेन के खुलने के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे 10 लाख से अधिक झारखंडियों के साथ दूसरे राज्यों के प्रवासी मजदूरों में नये उत्साह का संचार हुआ है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साबित कर दिया है कि संकट के इस दौर में पूरा देश एकजुट है। गुरुवार से लेकर अब तक जहां दूसरे राज्य अपने लोगों को वापस लाने की रणनीति ही बनाने में जुटे हैं, प्रधानमंत्री ने एक गैर-भाजपाई मुख्यमंत्री को श्रेय लेने का मौका दिया। मोदी के इस फैसले ने साबित कर दिया है कि वह सचमुच महान हैं और देशहित के आगे उनके लिए कुछ भी नहीं है। वह चाहते तो पहली ट्रेन चलाने का श्रेय किसी भाजपाई सीएम को दे सकते थे, लेकिन उन्होंने झारखंड को यह श्रेय लेने का अवसर दिया। यह भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती को भी साबित करता है।
इस पूरे प्रकरण में हेमंत के दृढ़संकल्प और उनकी तर्कसंगत बातों के साथ केंद्र सरकार का बड़ा दिल और तेलंगाना सरकार की मदद प्रशंसनीय रही। तभी तो अपनी माटी से दूर मजदूरों को बिना किसी शोरगुल या हो-हंगामे के स्टेशन बुला लिया गया। उनकी निरापद यात्रा का पूरा इंतजाम किया गया और फिर यात्रा समय पर शुरू भी हो गयी।
केंद्र सरकार की पहल का राज्य के मंत्रियों और झारखंड मुक्ति मोर्चा के अलावा भाजपा और कांग्रेस की प्रदेश इकाइयों ने स्वागत किया है। राज्य के मंत्री आलमगीर आलम और सत्यानंद भोक्ता ने प्रवासी मजदूरों की वापसी शुरू करने के लिए केंद्र के प्रति आभार जताया है, तो झामुमो प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने इसके लिए केंद्र सरकार को धन्यवाद दिया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी तथा अन्य नेताओं ने इसे केंद्र सरकार का ऐतिहासिक फैसला कहा है।
प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के अभियान का पहला अध्याय इतनी जल्दी और सुनियोजित तरीके से शुरू हो जायेगा, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। अब जबकि यह काम शुरू हो चुका है, उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के दूसे हिस्सों में फंसा झारखंड का हर व्यक्ति बहुत जल्द अपने घर लौट जायेगा। सरकारों ने काम कर दिखाया है और अब जरूरत संयम, विवेक और धैर्य की है।