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    Home»विशेष»मजहबी अस्मिता अंततः अलगाववाद है
    विशेष

    मजहबी अस्मिता अंततः अलगाववाद है

    sunil kumar prajapatiBy sunil kumar prajapatiMay 6, 2023No Comments6 Mins Read
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    हृदयनारायण दीक्षित
    कर्नाटक सरकार ने पंथ मजहब आधारित आरक्षण निरस्त कर दिया है। विषय न्यायायिक विचार में हैं। भारत की संविधान सभा ने अल्पसंख्यक अधिकारों मूल अधिकारों सम्बंधी समिति का गठन किया था। इसके सभापति सरदार पटेल बनाए गए थे। पटेल समिति ने आरक्षण सम्बंधी विषय पर गंभीर विचार-विमर्श किया। संविधान सभा में सरदार पटेल ने 25 मई, 1949 को समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की। पटेल समिति के प्रतिवेदन पर (25 और 26 मई 1949) गंभीर बहस हुई।

    संविधान सभा के सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि किसी प्रकार के रक्षण स्वस्थ राजनीतिक विकास के प्रतिकूल हैं। उनसे एक प्रकार की हीन भावना प्रकट होती है। श्रीमान जी रक्षण ऐसा रक्षा उपाय है जिससे वह वस्तु जिसकी रक्षा की जाती है, वह नष्ट हो जाती है। जहां तक अनुसूचित जातियों का सम्बंध है, हमें कोई शिकायत नहीं है।’ लेकिन जेडएच लारी ने मजहब आधारित मुस्लिम आरक्षण की पैरवी करते हुए कहा, ‘आपको अनुसूचित जाति के हितों की चिंता है। मुसलमानों के हितों की परवाह नहीं है। अनुसूचित जाति के स्थान आरक्षण सिद्धांत के साथ क्या आप यह भी नहीं स्वीकार करते कि आरक्षण राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध नहीं है।’ इसका अर्थ यह हुआ कि स्थाई आरक्षण राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध होता है। आरक्षण एक विशेष अस्थाई उपाय है।

    जगत नारायण लाल ने कहा, ‘भारत एक सेकुलर राज्य होगा। इसके बाद रक्षणों की कोई मांग नहीं होनी चाहिए। अनुसूचित जातियों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े होने के कारण आरक्षण दिया गया है।’ संविधान सभा के ज्यादातर सदस्यों ने अनुसूचित जाति के अस्थाई आरक्षण को सही बताया। संविधान सभा में काफी नोक-झोंक हुई। ब्रिटिश सत्ता ने मुसलमानों को विशेषाधिकार दिए थे। मुस्लिम लीग ने अलग कौम का नारा दिया। इसी आधार पर द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत चला। देश बंट गया। बावजूद इसके संविधान सभा में मजहब रिलीजन आधारित आरक्षण की मांग उठी।

    संविधान निर्माता द्विराष्ट्रवाद के राष्ट्र तोड़क सिद्धांत के भुक्तभोगी थे। आरक्षण पर अगस्त 1947 व मई 1949 को दो बार बहस हुई। पीसी देशमुख ने अगस्त 1947 की बहस में कहा, ‘इतिहास में अल्पसंख्यक से अधिक क्रूरतापूर्ण और कोई शब्द नहीं है। अल्पसंख्यक रूपी शैतान के कारण ही देश बंट गया।’ एस नागप्पा ने कहा कि, ‘अल्पसंख्यक बहुत समय से हमारी स्वतंत्रता का मार्ग रोके हुए थे।’ आरके सिंधवा ने कहा, ‘अल्पसंख्यक शब्द का उपयोग इतिहास से मिट जाना चाहिए।’ एक मुस्लिम सदस्य बी ओकर ने मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की और कहा, ‘मुसलमान शक्तिशाली और संगठित हैं। यदि उन्हें महसूस हुआ कि उनकी आवाज नहीं सुनी गई, तो वे उद्दंड हो सकते हैं।’

    विधिवेत्ता एमए आयंगर ने कहा, ‘मेरा ख्याल था कि पाकिस्तान प्राप्त कर लेने के बाद मेरे मुस्लिम मित्र अपना व्यवहार बदल लेंगे।’ आयंगर ने तुर्की के अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए बनाए गए संधि पत्र (1923) का हवाला दिया, ‘गैर मुसलमान तुर्की नागरिक भी मुसलमानों के समान ही नागरिक व राजनीतिक अधिकारों का उपभोग करेंगे। तुर्की के बहुसंख्यकों, अल्पसंख्यकों के अधिकार एक समान थे। लेकिन भारत में अल्पसंख्यक विशेषाधिकार मांग रहे थे।’ आयंगर ने कहा, ‘मैं अल्पसंख्यक शब्द ही नहीं पसंद करता।’ 25 व 26 मई 1949 को हुई बहस में सभा ने मजहबी आरक्षण को गलत बताया। मोहम्मद इस्माइल ने मजहबी मुस्लिम आरक्षण पर पुनर्विचार की मांग की।

    संविधान सभा के उपाध्यक्ष एचसी मुखर्जी ने कहा, ‘यदि हम एक राष्ट्र चाहते हैं तो हम मजहब के आधार पर अल्पसंख्यक को मान्यता नहीं दे सकते।’ तजम्मुल हुसैन ने कहा, ‘हम अल्पसंख्यक नहीं हैं। यह शब्द अंग्रेजों ने निकाला था। वे चले गए। अब इस शब्द को डिक्शनरी से हटा देना चाहिए।’ संविधान सभा में मौलाना हजरत मोहानी, तजम्मुल हुसैन और बेगम एजाज रसूल ने असाम्प्रदायिक राष्ट्र का पक्ष लिया। लेकिन कुछ मुस्लिम सदस्यों ने अल्पसंख्यक अस्मिता के बहाने मुसलमानों के लिए विशेष रक्षा कवच की मांग की।

    सबका उत्तर सरदार पटेल ने दिया, ‘आपके अनुसार आपका समाज सुसंगठित है और अल्पमत मजबूत है। तो आप विशेष सुविधाएं क्यों मांगते हैं। जो अल्पमत देश का विभाजन करा सकता है। वह हरगिज अल्पमत नहीं हो सकता। आप स्वयं को अल्पसंख्यक क्यों मानते हैं। आप अतीत भूलिए। अगर आपको ऐसा असंभव लगता है तो आप अपने ख्याल के मुताबिक सर्वोत्तम स्थान पर चले जाइए।’

    पं. नेहरू ने कहा, ‘सभी वर्ग अपनी अपनी विचार प्रणाली बना कर गुट बना सकते हैं। लेकिन मजहब आधारित अल्पसंख्यक बहुसंख्यक वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। मैं यहां तक कहता हूं कि जो रक्षण रह गए हों वह भी समाप्त किये जाएं। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में अनुसूचित जाति के आरक्षण को हटाना सही नहीं रहेगा।’ संविधान निर्माता साम्प्रदायिकता के विरुद्ध थे। अल्पसंख्यकवाद के विरुद्ध थे। वे भारतीय समाज के प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र का अंगभूत बनाने मानने में विश्वास रखते थे।

    राष्ट्र से भिन्न कोई भी सामाजिक राजनैतिक अस्मिता साम्प्रदायिकता है। छद्म सेकुलर राजनीति ने मुसलमानों को थोक वोट बैंक बनाने का काम किया है। राष्ट्रीय आंदोलन के मूल्य और ऐतिहासिक तथ्य भी भुला दिए गए। विशेष उदाहरण गांधी जी का है। गांधी जी खिलाफत आंदोलन के नेता थे। लेकिन कुछ मौलवी गांधी को नेता मानने के खिलाफ थे। पहले स्वतंत्रता दिवस के दिन भारत में उत्सव थे। लेकिन देश विभाजन को लेकर लोग आहत भी थे।

    दारुल उलूम देवबंद के तत्कालीन कुलपति ने अपने भाषण में कहा, ‘हम पाकिस्तान को एक इस्लामी राज्य होने और भारत को मूल देश होने के नाते बधाई देते हैं। चिंता यह है कि जो मुसलमान अब भारत में रह गए हैं, उनके सामाजिक जीवन का क्या होगा। शरीयते पाक के मुताबिक एक ही रास्ता है कि वे अपना शरीय संगठन कायम करें। हिंदुस्तान की मुस्लिम जमायातें और फिरकें एक हों।’ उनके दृष्टिकोण में अलगाववाद है। वे सेकुलर राज्य नहीं मानते। अल्पसंख्यकवाद के सहारे अलगाववाद बढ़ाना चाहते हैं। मजहब आधारित कोई भी विशेष रक्षा उपाय या सुविधाएं अलगाववाद है।

    मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग मजहब आधारित अलगाववाद बढ़ा रही थी। लीग पाकिस्तान की मांग कर रही थी। गांधी जी ने पाकिस्तान की मांग वापस लेने के लिए जिन्ना को पत्र लिखा था। (15-09-1944) पूछा था कि मजहब के अलावा मुसलमान बाकी भारतवासियों से अलग राष्ट्र क्यों हैं। जिन्ना मुसलामानों को अलग राष्ट्र बता रहे थे।

    जिन्ना ने गांधी जी को जवाबी पत्र लिखा, ‘मुसलमान और हिन्दू राष्ट्र की किसी भी परिभाषा के अनुसार दो अलग अलग कौमें हैं। हमारी संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, भाषा, साहित्य, कला और रीति नीति सब अलग है। हम किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर अलग राष्ट्र हैं।’ मजहब आधारित अलगाववाद के आधार पर ही देश बंट गया था। सिंधु घाटी में प्राचीन सभ्यता का विकास हुआ था। वह सिंधु अब पाकिस्तानी है। वैदिक साहित्य में तमाम नदियों की स्तुति की गई है। उनमें से कई नदियां पाकिस्तानी हो गईं हैं। देवी हिंगलाज का उपासना स्थल भी पाकिस्तान चला गया है। शारदा पीठ भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। ननकाना साहिब भी पाकिस्तान में है। हम सबको मजहब आधारित आरक्षण के विष से राष्ट्र को बचाना चाहिए। मजहबी अस्मिता अंततः अलगाववाद है।

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