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    Home»अन्य खबर»इतिहास के पन्नों में 09 जूनः भगवान बिरसा मुंडा का बलिदान, नहीं भूल सकता हिन्दुस्तान
    अन्य खबर

    इतिहास के पन्नों में 09 जूनः भगवान बिरसा मुंडा का बलिदान, नहीं भूल सकता हिन्दुस्तान

    adminBy adminJune 8, 2024No Comments6 Mins Read
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    देश-दुनिया के इतिहास में 09 जून की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख जननायक बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि के रूप में हर साल याद की जाती है। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई ऐसे कई नायक पैदा हुए हैं जिन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों से दर्ज कराया है। बिरसा मुंडा ऐसे ही वनवासी योद्धा हैं। उन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में वनवासी समाज की दिशा व दशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। उन्होंने न केवल वनवासियों के अधिकारों की बल्कि आजादी की लड़ाई भी लड़ी। झारखंड के एक वनवासी परिवार में 15 नवम्बर 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा को झारखंड ही नहीं बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के वनवासी बहुल क्षेत्रों में भगवान की तरह पूजा जाता है।

    पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2000 में उनकी स्मृति पर झारखंड को बिहार से अलग कर पृथक राज्य घोषित किया था। विगत वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों की घुसपैठ से पहले देश की वन्य सम्पदा पर जल, जंगल और जमीन के सहारे खुली हवा में जीवन जीने वाले आदिवासियों का राज था। ब्रितानी हुकूमत में आदिवासियों की स्वतंत्रता, स्वायत्ता और सुरक्षा पर ग्रहण लग गया। अंग्रेजों ने जब आदिवासियों से उनके जल, जंगल, जमीन के अधिकार को छीनने की कोशिश की तो वनवासी भाषा में ‘उलगुलान’ यानी आंदोलन हुआ। बिरसा से पहले हुए वनवासी विद्रोह जमीन बचाने के लिए हुए थे लेकिन बिरसा का उलगुलान तीन लक्ष्यों पर केंद्रित था। पहला जल-जंगल व जमीन की रक्षा, दूसरा नारी की सुरक्षा व सम्मान और तीसरा भारतीय धर्म व संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठा।

    बिरसा ने वनवासी समाज को ब्रिटिश शासकों व उनके चाटुकार जमींदारों-जागीरदारों के शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए संगठित किया। इसकी वजह से जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रुक गया। अपने मूल पैतृक अधिकारों को बहाल करने की मांग के साथ वनवासियों ने जब बिरसा के नेतृत्व में अदालत में याचिका दायर की तो शासक वर्ग बुरी तरह घबरा गया। झारखंड जिला गजेटियर के अभिलेख बताते हैं कि बिरसा के तेजी से बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता को देखकर अंग्रेज प्रशासन, जमींदार, जागीरदार और मिशनरी सभी बुरी तरह चिंतित हो उठे थे। अतः सुनियोजित संघर्ष के तहत रांची के अंग्रेज कप्तान मेयर्स ने 24 अगस्त 1895 को बिरसा मुंडा को रात में सोते समय बेहोशी की दवा का रुमाल मुंह में ठूस रातो रात उन्हें उठवाकर उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाकर दो वर्ष के सश्रम कारावास के तहत हजारीबाग के केन्द्रीय कारागार में डाल दिया गया। इस घटना से बिरसा के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और बढ़ गई और उन्होंने अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया।

    जेल से छूट कर बिरसा अपनी लक्ष्य सिद्धि में प्राण प्रण से जुट गए। बिरसा ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष के लिए हजारों वनवासियों को पुनः संगठित कर उनको शस्त्र संग्रह करने, तीर कमान बनाने और कुल्हाड़ी की धार तेज करने के निर्देश देकर अन्याय के विरुद्ध महायुद्ध का शंखनाद किया। अगस्त 1897 में बिरसा और उनके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोल अंग्रेज सिपाहियों के छक्के छुड़ा दिए। वे अभी संभले भी नहीं थे कि 1898 में तांगा नदी के किनारे वनवासियों से भिड़ंत में अंग्रेज सेना पुनः हार गई। इन हमलों से घबराकर अंग्रेजों ने हजारीबाग और कलकत्ता से सेना बुलवानी पड़ी।

    24 दिसम्बर 1899 को हुई लड़ाई में बिरसा के लगभग चार सौ साथी मारे गये। इसके बाद जनवरी 1900 में डोमबाड़ी पहाड़ी पर जब बिरसा एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे, अंग्रेजी सेना ने अचानक धावा बोल दिया। इस हमले में बहुत सी स्त्रियां और बच्चे भी मारे गए और बिरसा के कई अनुयायियों की गिरफ्तारी भी हुई। अंततः 500 रुपये के सरकारी इनाम के लालच में जीराकेल गांवों के कुछ विश्वासघातियों के कारण बिरसा 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ्तार कर लिए गए। जंजीरों में जकड़कर उन्हें रांची जेल में डाल दिया गया। वहां लंबे समय तक हंसते-हंसते कठोर यातनाएं सहते हुए यह महान योद्धा 09 जून 1900 को सदा-सदा के लिए इस संसार से विदा हो गया। कहते हैं कि जेल के भोजन में संभवतः उन्हें मीठा जहर दिया गया था जबकि प्रचारित यह किया गया कि उनकी मृत्यु हैजा हो जाने से हुई।

    महत्वपूर्ण घटनाचक्र

    1720ः स्वीडन और डेनमार्क ने तीसरी स्टॉकहोम संधि पर हस्ताक्षर किए।

    1752: फ्रांसीसी सेना ने त्रिचिनोपोली में ब्रिटेन के समक्ष आत्मसमर्पण किया।

    1789: स्पेन ने वैंकूवर द्वीप के निकट ब्रिटिश जहाजों पर कब्जा किया।

    1940: नार्वे ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के सामने आत्मसमर्पण किया।

    1956: अफगानिस्तान में भूकंप। 400 लोगों की मौत।

    1960: चीन में तूफान से 1,600 लोगों की मौत।

    1964: जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लालबहादुर शास्त्री ने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला।

    1970: जॉर्डन के शाह हुसैन के वाहन पर गोलियां चलाई गईं। शाह हुसैन तो बच गए, लेकिन उनका वाहन चालक इस हमले में घायल हुआ।

    1980: अंतरिक्ष यान सोयूज टी-2 पृथ्वी पर लौटा।

    1983: मार्गरेट थैचर के नेतृत्व में ब्रिटेन के आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी ने लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल किया।

    1999ः कुली ओडैजो (दक्षिण अफ्रीका) माउंट एवरेस्ट पर दक्षिण तथा उत्तर दोनों छोर से चढ़ाई करने वाली विश्व की प्रथम महिला बनीं।

    1999ः युगोस्लाविया एवं नाटो के बीच कोसोवो में सर्बियाई सैनिक वापस बुलाने पर सहमति।

    2001ः ईरान में मोहम्मद खातमी की पुन: जीत।

    2001ः पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमत्री बेनजीर भुट्टो को तीन साल की सजा।

    2006ः म्यूनिख में विश्वकप फुटबाल की रंगारंग शुरुआत।

    2008ः चंडीगढ़ को तम्बाकू मुक्त घोषित किया गया।

    2008ः अभिनेता शाहरुख खान ने नौवें आइफा पुरस्कार समारोह में फिल्म ‘चक दे इंडिया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीता।

    जन्म

    1931ः ओडिशा की पूर्व मुख्यमंत्री और लेखिका नंदिनी सत्पथी।

    1942ः लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के अध्यक्ष अनिल मनीभाई नाईक।

    1949ः भारत की प्रथम महिला आईपीएस किरण बेदी।

    1981ः भारतीय संगीतकार अनुष्का शंकर।

    निधन

    1900ः आदिवासी नेता और लोकनायक बिरसा मुंडा।

    1990ः प्रसिद्ध गीतकार और शायर असद भोपाली।

    1991ः फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक राज खोसला।

    1994ः भारतीय योगाचार्य धीरेन्द्र ब्रह्मचारी।

    1995ः स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध किसान नेता एनजी रंगा।

    2011ः प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन।

    महत्वपूर्ण दिवस

    -अमर शहीद बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि।

    -अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस।

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