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    Home»राज्य»उत्तर प्रदेश»आचार्य नरेन्द्र देव के कहने पर पीएचडी छोड़ राजनीति में आ गए थे पूर्व पीएम चन्द्रशेखर
    उत्तर प्रदेश

    आचार्य नरेन्द्र देव के कहने पर पीएचडी छोड़ राजनीति में आ गए थे पूर्व पीएम चन्द्रशेखर

    sonu kumarBy sonu kumarJuly 8, 2020No Comments4 Mins Read
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    बलिया, 08 जुलाई (हि.स.)। चन्द्रशेखर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में सक्रिय थे। एमए करने के बाद पीएचडी करने के लिए बीएचयू चले आये थे। उसी दौरान आचार्य नरेन्द्र देव ने उनसे बलिया जाकर पार्टी के लिए काम करने को कहा।
     चन्द्रशेखर ने कहा कि आचार्य जी थीसिस कंप्लीट हो जाए तो चला जाऊंगा। इस पर आचार्य जी ने कहा कि जब समाज ही नहीं बचेगा तो तुम्हारी थीसिस पढ़ेगा कौन? और आचार्य नरेन्द्र देव के इतना कहने पर चन्द्रशेखर अपनी पीएचडी छोड़ बलिया चले आए थे।
    चन्द्रशेखर के सहयोगी रहे ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने ‘चन्द्रशेखर के बगैर’ किताब में चन्द्रशेखर व्यक्तित्व के बारे में लिखा है। चन्द्रशेखर की जेल डायरी भी काफी सुर्खियों में रही। इमरजेंसी के दौरान लिखी गई डायरी के मुताबिक पूरा देश चन्द्रशेखर के लिए एक परिवार जैसा था। उनकी शख्सियत की यह विशेषता रही है कि वे किसी भी परिस्थिति के आगे कभी विचलित नहीं हुए। केंद्र में चार महीने की सरकार चलाने के बाद वे हमेशा कहते थे कि मैंने देश को नजदीक से देखा है। सरकार और सरकार चलाने वालों को देखा।
    उनके अनुसार मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि भारत में जो कुछ सभ्यता, साधन व शक्ति है, यदि हम सब मिलकर प्रयास करें तो देश की ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान न कर सकें। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चन्द्रशेखर तब रामजन्मभूमि-बाबरी विवाद के हल के काफी करीब थे। वे कहा करते थे कि हम दूसरों के सामने बेबस नहीं हैं। जिंदगी सुख का सुहाना सपना ही नहीं संतापों की सृष्टि भी है। ये संतापों की सृष्टि जब प्रेरणा देती है तो व्यक्ति रचनात्मक विधा को ओर जाता है।
    उनके संसदीय क्षेत्र व गृह जिला बलिया के बारे में जब भी चर्चा होती तो वे कहते कि बलिया की धरती पर मैंने बेबसी को देखा है। बेबसी में एक शक्ति होती है, ये भी मैं मानता हूं। कहा करते थे कि हमारे जितने भी धर्मग्रंथ, उपनिषद, वेद व ज्ञान के भंडार हैं, वे राजमहलों में नहीं लिखे गए थे। वे पर्वतों की उपत्यकाओं, जंगलों की झाड़ियों व वीराने में लिखे गए।
    बुधवार को उनकी 13वीं पुण्यतिथि है। कोरोना काल में पहला अवसर होगा जब बलिया से लेकर दिल्ली तक कोई बड़ा श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित नहीं हो रहा। उनके पुत्र व राज्यसभा सांसद नीरज शेखर ने अपील किया था कि लोग अपने दिलों में याद कर पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को श्रद्धांजलि दें। ऐसे में चन्द्रशेखर की ही कही बात कि “अगर हौसला नहीं होगा तो एक भी फैसला नहीं होगा” समीचीन हो जाती है।
    नीरज ने चन्द्रशेखर की समाधि पर चढ़ाए फूल 
    राज्यसभा सांसद नीरज शेखर ने दिल्ली में अपने पिता स्व. चन्द्रशेखर की समाधि पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। वे अकेले ही राजघाट गए और युवा तुर्क को नमन किया। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि चन्द्रशेखर जी के आदर्शों पर चलकर ही समाज का भला किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पिता जी हमेशा समाज में बराबरी के लिए प्रयासरत रहे। इधर, बलिया में भी चंद्रशेखर चाहने वाले लोगों ने घरों में ही उनके चित्र के समक्ष दिए जलाकर श्रद्धांजलि दी। एमएलसी रविशंकर सिंह पप्पू ने भी चन्द्रशेखर उद्यान में कोई बड़ा आयोजन न कर घर से ही नमन किया।
    जन्म से मृत्यु तक 7 अंक का कनेक्शन
    सबको साथ लेकर चलने वाले युवा तुर्क चंद्रशेखर के साथ 7 का अ आंकड़ा जीवन भर जुड़ा रहा। जन्म 1-7-1927 में हुआ था। यानी वर्ष के सातवें महीने में जन्म हुआ और उस वर्ष के अंत में भी 7 साथ रहा। पीएम के रूप में भी उनका कार्यकाल कुल सात माह तक रहा। मृयु भी 08-07-2007 में हुई। इसमें भी 7 जुड़ा रहा। यानी दो हजार सात के सातवें महीने में।
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