लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न शहरों में रह रहे श्रमिकों और कामगारों की बड़ी संख्या में हुई घर वापसी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए गए आत्मनिर्भर भारत नारा का बड़ा असर पड़ा है। आत्मनिर्भर भारत निर्माण के मंत्र और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान के शुरुआत की जानकारी मिलते ही परदेस में रह रहे शेष श्रमिक भी अपने घर की ओर चल पड़े हैं। आने वालों में सिर्फ बिहारी मजदूर ही नहीं हैं, बल्कि विभिन्न फैक्ट्रियों में, औद्योगिक संस्थानों में स्थाई रूप से काम कर रहे मजदूर तथा छोटे-छोटे व्यवसायी भी हैं। इन लोगों ने गांव में रहकर आत्मनिर्भर बनने और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान में काम करने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया है। प्रत्येक दिन ट्रेन के अलावा बस एवं अन्य वाहनों से लौट रहे श्रमिकों में एक नया जोश है। यह लोग परदेस के शहर में लॉकडाउन के कारण हुई जलालत को भूल तो नहीं पा रहे हैं, लेकिन उसे याद भी नहीं करना चाहते हैं। बिहार में स्थानीय स्तर पर काम की कमी रहने के कारण बड़ी संख्या में यहां के श्रमिक देश के विभिन्न शहरों में रोजी-रोजगार करने के लिए दशकों से जाते रहते हैं। लेकिन 2007 में जब बेगूसराय में बूढ़ी गंडक और करेह नदी ने तीन महीने तक बाढ़ का तांडव मचाया तो यहां से कभी परदेस नहीं जाने वाले हजारों श्रमिक रोजी रोटी के लिए देश के विभिन्न शहरों में जाने को मजबूर हो गए। खोदाबंदपुर के नारायण महतों, सहदेव महतों और शंभू महतो समेत पांच लोगों का परिवार जब बाढ़ के कारण पूरी तरह से तबाह हो गया था तो यह लोग गुवाहाटी चले गए। वहां खोजते-खोजते ओके ब्रांड के सर्फ और साबुन के फैक्ट्री में काम मिल गया। आठ हजार रुपया महीना मजदूरी मिलना शुरू हो गया। इन लोगों ने ईमानदारी से काम किया तो मालिक खुश हो गया और बीते 12 सालों में काम करते-करते इनके मेहनत को देख मजदूरी बढ़कर 17 हजार महीना हो गई। वहां यह लोग परिश्रम करते थे, साल में घर आते थे, कुछ पैसा जमा हुआ तो यहां घर बनाया। लेकिन जब लॉकडाउन हो गया तो इन लोगों का काम बंद हो गया, करीब दो महीने तक वहां बेरोजगार बैठे रहे।
इसी बीच लॉकडाउन में जब हैंड वॉश की मांग बढ़ी तो फैक्ट्री मालिक ने हैंड वॉश बनवाना शुरू कर दिया। हालांकि वहां काफी परेशानी हो रही थी, यहां घर के लोग भी परेशान थे, डर था कि बाहर में रहते रहते कहीं कोरोना नहीं हो जाए। इसी बीच आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत हो गई तो इन लोगों ने भी मालिक से अनुनय-विनय कर अपना हिसाब करवा लिया और आ गए घर। सहदेव महतों एवं शंभू महतों ने बताया कि करीब 12 साल में हम लोगों ने सर्फ, साबुन और हैंड वाश बनाने में परिपक्वता हासिल कर ली है। कच्चा सामान कहां से आता है इसकी भी जानकारी हो गई है। मालिक को जब हम लोगों ने काम छोड़कर गांव जाने और वही अपना स्वरोजगार शुरू करने का अनुरोध किया तो उन्होंने स्वीकृति दे दी। कच्चा माल कहां से आ सकता है, इसकी भी जानकारी दे दी है, कच्चा माल सप्लाई करने वालों से संपर्क करवा दिया है। अब हम लोग गांव में ही सर्फ, साबुन और हैंड वाश बनाएंगे, अच्छे क्वालिटी का सामान बनाकर बेगूसराय और समस्तीपुर के साथ-साथ आसपास के बाजार में भी सप्लाई करेंगे। हमारे इस स्वरोजगार से गांव के शिक्षित बेरोजगार युवा को भी स्वरोजगार मिलेगा, वह भी आत्मनिर्भर बनेंगे। कोरोना ने भले ही बहुत दर्द दिए हैं, लेकिन इसने बहुत कुछ सिखाया भी है। प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जो आत्मनिर्भर भारत का मूल मंत्र दिया है, हम सब उस मूल मंत्र को आगे बढ़ाने में जी जान से अब लग जाएंगे। परदेस में भी मेहनत मजदूरी करते थे तो यहां क्यों नहीं करेंगे, घर पर रहेंगे, परिवार के साथ रहेंगे तो कमाई भी बेहतर तरीके से होगा।