झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के लिए वाकई संतोष देनेवाली बात है। अपने कार्यकाल के सात महीने में ही इसने राज्य के उस हक को हासिल करने में कामयाबी हासिल की है, जो आज तक किसी ने नहीं किया था। झारखंड को पहली बार कोयला खनन के लिए उपयोग की जानेवाली सरकारी जमीन के इस्तेमाल के बदले कोल इंडिया ने ढाई सौ करोड़ रुपये दिये हैं और बाकी रकम के जल्द भुगतान का भरोसा दिया है। एक तरफ यह जहां हेमंत सोरेन सरकारी की कामयाबी है, वहीं केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की शानदार पहल भी है, क्योंकि कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद से आज तक केंद्र की किसी भी सरकार ने किसी राज्य के जायज दावे को स्वीकार करते हुए इतना त्वरित फैसला नहीं किया था। इस लिहाज से केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी का झारखंड दौरा कामयाबी के नया कीर्तिमान बना गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ अपनी मुलाकात के बाद उन्होंने जिस विश्वास के साथ कोयला से जुड़े हर मुद्दे के सुलझ जाने का एलान किया, वह सचमुच बहुत सुकून देनेवाला था। इसके साथ ही यह घटना भारतीय राजनीति और इसकी संघीय शासन प्रणाली के एक सुनहरे अध्याय के रूप में हमेशा याद रखी जायेगी, क्योंकि इसमें किसी की पराजय नहीं हुई, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच परस्पर सहयोग की अवधारणा मजबूत हुई। इस घटना ने यह भी साबित किया कि दो विरोधी विचारधाराओं वाले दलों की सरकारें भी बातचीत के जरिये समाधान के बिंदु तक पहुंच सकती हैं और वह एक ऐसा बिंदु होगा, जहां केवल जन कल्याण की ही भावना होगी, कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं होगा। इस बड़े घटनाक्रम का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
30 जुलाई की सुबह, जब केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी अपनी एक दिवसीय यात्रा पर रांची पहुंचे, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि वह झारखंड का हक देने आये हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी यह एहसास नहीं था कि केंद्रीय मंत्री से मुलाकात के दौरान वह भारतीय राजनीति और संघीय शासन व्यवस्था के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ने जा रहे हैं। प्रोजेक्ट भवन स्थित झारखंड मंत्रालय के सन्नाटे भरे गलियारे में मौजूद अधिकारियों ने भी नहीं सोचा था कि वे इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनने जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ने मुख्यमंत्री से मुलाकात के दौरान कोयला क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की और इस दौरान उन्होंने हेमंत सोरेन को ढाई सौ करोड़ रुपये का चेक सौंप दिया। यह रकम झारखंड के उस दावे का हिस्सा थी, जो हेमंत सोरेन पिछले छह महीने से कर रहे थे। रकम मिलने के बाद हेमंत ने साफ कर दिया कि वह झारखंड का पूरा बकाया, जो करीब 65 हजार करोड़ होता है, वसूल करने के बाद ही चैन से बैठेंगे।
हेमंत सोरेन के नेतृत्व में दिसंबर में जब सरकार बनी और उसे विरासत में खाली खजाना मिला, तब से लगातार इस बात के प्रयास हो रहे हैं कि झारखंड की बदहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अतिरिक्त आय के साधन जुटाये जायें। इसी क्रम में झारखंड सरकार ने केंद्र के सामने राज्य में सरकारी और गैर-मजरुआ जमीन पर हो रहे कोयला खनन के एवज में मुआवजा देने की मांग रखी। झारखंड सरकार का तर्क था कि रैयती जमीन के अधिग्रहण के बदले कोल इंडिया जो मुआवजा देता है, वह रैयतों का अधिकार है। लेकिन राज्य सरकार की जो जमीन कोयला खनन के लिए ली जाती है, उसके मुआवजे से राज्य को क्यों वंचित रखा गया है। झारखंड सरकार ने केंद्र के सामने इस मद में 18 सौ करोड़ रुपये की दावेदारी प्रस्तुत की। उस समय हेमंत सोरेन सरकार के इस दावे पर नाक-भौं सिकोड़े गये थे, कानूनी प्रावधानों का हवाला दिया गया और इसे अनुचित करार दिया गया था। लेकिन हेमंत सोरेन अपनी दावेदारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे।
जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कोयला खनन को निजी क्षेत्रों के लिए खोलने का एलान किया, तब झारखंड सरकार ने इसका समर्थन करते हुए नीलामी प्रक्रिया को कुछ दिन तक रोकने का आग्रह किया। इस आग्रह पर ध्यान नहीं दिया गया, तब झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गयी। इसे केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव के रूप में देखा गया। लेकिन 30 जुलाई को केंद्र सरकार ने इस मुद्दे का समाधान बातचीत के जरिये निकालने के लिए केंद्रीय मंत्री को झारखंड भेजा। केंद्र सरकार ने झारखंड के दावे के पीछे दी गयी दलीलों को ध्यान से परखा और उसे पता चल गया कि यह दावा पूरी तरह उचित है। इसलिए मोदी सरकार ने झारखंड को तत्काल ढाई सौ करोड़ रुपये देने का फैसला किया।
मोदी सरकार की यह पहल इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि आज से पहले किसी भी सरकार ने किसी भी राज्य के किसी भी दावे को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं दिखायी थी। चाहे विशेष पैकेज हो या प्राकृतिक आपदाओं के कारण नुकसान, राज्यों के दावों को केंद्र में हमेशा संदेह की नजरों से देखे जाने की परंपरा रही है। यह स्थिति उस समय और गंभीर हो जाती है, जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार हो। ऐसा राजनीतिक वजहों से होता रहा है और इसे अब स्वाभाविक मान लिया गया है। लेकिन यह पहला अवसर है, जब दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले दलों की सरकारों के बीच इतने सकारात्मक तरीके से बातचीत हुई और केंद्र ने राज्य सरकार के दावे को मंजूर किया। बहरहाल झारखंड को उसका वाजिब अधिकार देकर केंद्र ने अपना रास्ता भी आसान बना लिया है। कमर्शियल माइनिंग का जो मुद्दा झारखंड के विरोध के कारण पेचीदा बनता जा रहा था, अब लगभग सुलझता नजर आ रहा है। केंद्र और झारखंड सरकार के बीच हुई इस बातचीत ने जहां हेमंत सोरेन को राजनीतिक रूप से और मजबूत बना दिया है, वहीं भाजपा को भी खूब सराहना मिल रही है। जाहिर है आनेवाले दिनों में इस बातचीत को दोनों ही पक्ष भुनाने का पूरा प्रयास करेंगे, लेकिन इसमें याद रखनेवाली बात यही है कि यह न किसी की जीत है और न किसी की हार। यह सिर्फ और सिर्फ झारखंड, इसके सवा तीन करोड़ लोगों और वृहत अर्थोंे में भारत की शालीन राजनीतिक व्यवस्था की जीत है, जहां लोक कल्याण को तमाम राजनीतिक मुद्दों से अधिक महत्व दिया जाता है।