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    Home»विशेष»कहीं यह लोकसभा चुनाव जल्द कराने की तैयारी का संकेत तो नहीं!
    विशेष

    कहीं यह लोकसभा चुनाव जल्द कराने की तैयारी का संकेत तो नहीं!

    adminBy adminAugust 30, 2023No Comments11 Mins Read
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    -चंद्रयान 3 की सफलता और गैस की कीमत में कमी से राजनीतिक गलियारों में चचार्एं तेज
    -पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भी कमी के लगाये जाने लगे कयास
    -भाजपा चुनाव के मूड में, विपक्ष अभी गठबंधन-गठबंधन खेल रहा

    अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कोई कमी नहीं आयी है, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार ने घरेलू गैस की कीमत में दो सौ रुपये प्रति सिलेंडर की सब्सिडी देने का निर्णय कर आम उपभोक्ताओं को बड़ा लाभ पहुंचाया है। उज्ज्वला योजना की लाभार्थियों को यह लाभ दो गुना होगा, यानी उन्हें हर सिलेंडर पर चार सौ रुपये की छूट मिलेगी। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के पास पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी करने का विकल्प भी मौजूद है। यदि वह ऐसा करती है, तो इससे त्योहारी सीजन के बीच देश के मध्यवर्गीय आम उपभोक्ताओं को बड़ा लाभ पहुंचाया जा सकता है। इससे महंगाई के मोर्चे पर भी लड़ने में बड़ी मदद मिल सकती है। लेकिन अब राजनीतिक गलियारों और लोगों के मन में प्रश्न उठने लगा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कोई गिरावट न होने के बाद भी सरकार ने गैस कीमतों में बड़ी सब्सिडी देने का विकल्प क्यों अपनाया। अगर गैस की कीमत कम हुई है, तो क्या पेट्रोल-डीजल के दाम भी कम होंगे। लेकिन असली सवाल यह नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि कहीं लोकसभा चुनाव तो नजदीक तो नहीं आनेवाला। एक तरफ चंद्रयान 3 की सफलता, महंगाई से लड़ने का अस्त्र भी तैयार और धार्मिक मोर्चे पर जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन से क्या भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा तेज है कि केंद्र की मोदी सरकार जनवरी-फरवरी में लोकसभा चुनाव करा सकती है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को कहा कि भाजपा दिसंबर में ही लोकसभा चुनाव करा सकती है। उन्होंने दावा किया कि भगवा पार्टी ने प्रचार के लिए सभी हेलीकॉप्टर बुक कर लिये हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार के हालिया बयान से भी इन चचार्ओं में दम नजर आ रहा है। इन चचार्ओं ने विपक्षी पार्टियों के होश उड़ा दिये हैं, क्योंकि विपक्ष महंगाई को मुद्दा बना मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में घेरना चाहता है। अब अगर मोदी सरकार ने अपने भरे-पूरे तरकश से महंगाई नाशक एक तीर चलाया है, तो लोगों को महंगाई से राहत तो जरूर मिलेगी। लेकिन यह राहत विपक्ष की रातों की नींद उड़ाने के लिए काफी है। क्या होगा आइएनडीआइए का हाल मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक से, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    लोकसभा चुनाव कब
    लोकसभा चुनाव कब होंगे, इसे लेकर अलग-अलग संभावनाएं जतायी जा रही हैं। पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिसंबर-जनवरी में लोकसभा चुनाव कराये जाने की बात कही थी। अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी ऐसा ही कुछ दावा किया है। देखा जाये तो आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की तैयारियां जोरों पर हैं। लोकसभा चुनाव चाहें समय पर हों या उससे पहले, भगवा पार्टी अभी से एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। राजनीतिक हलकों में मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों के प्रचार पर जोर को भी इसी के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। वैसे तो भाजपा नेता अक्सर कहते हैं कि उनका दल किसी भी वक्त चुनाव के लिए तैयार रहता है, लेकिन इन दिनों जिस तरह भारतीय जनता पार्टी में शीर्ष स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा है, मंत्रियों और सांसदों को जिले-जिले भेज कर मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों का प्रचार किया जा रहा है और प्रचार का सारा जोर मोदी सरकार के नौ साल के नारे पर है, उससे संकेत हैं कि भाजपा किसी भी समय (समय से पूर्व या समय पर) लोकसभा चुनावों का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर रही है, जबकि विपक्ष अभी एकजुटता की रट से आगे नहीं बढ़ सका है। मई के आखिरी सप्ताह में मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में भाजपा ने मीडिया के साथ जो संवाद किया, उसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सरकार के नौ साल के कामकाज पर सारा जोर दिया और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जो प्रस्तुतिकरण (पीपीटी) दिखायी, उसमें विस्तार से मोदी सरकार के नौ सालों की उपलब्धियों की तुलना यूपीए सरकार के दस साल के कामकाज से करते हुए बताया गया कि कैसे मोदी सरकार ने नौ सालों में कितना बेहतर काम किया है। भाजपा ने अपने प्रचार के लिए जो नया नारा गढ़ा है, वह है सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण।

    महंगाई पर चोट करने के लिए तैयार मोदी सरकार
    अब जैसे ही मोदी सरकार ने गैस के दामों में अप्रत्याशित कमी की है, उससे तो लोगों में मैसेज यही गया है कि मोदी सरकार अब महंगाई पर चोट करने के लिए तैयार है। केंद्र सरकार ने घरेलू गैस की कीमतों में दो सौ रुपये प्रति सिलेंडर की सब्सिडी देने का निर्णय कर आम उपभोक्ताओं को बड़ा लाभ पहुंचाया है। उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को यह लाभ दोगुना होगा, यानी उन्हें हर सिलेंडर पर चार सौ रुपये की छूट मिलेगी। वहीं अब मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल के दाम कम करने पर भी विचार कर सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में लंबे समय से तेल की कीमतें ऊंची बनी हुई थीं। अंतरराष्ट्रीय कारणों से दबाव में आने के बाद तेल की कीमतों में कमी आयी और इस समय यह लगभग 80 डॉलर प्रति बैरल पर बनी हुई है। लेकिन तेल की कीमतों के कम होने के बाद भी तेल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं घटाये थे। इससे उन्हें यह लाभ हुआ कि वे अपनी बैलेंस शीट बेहतर कर सके। तेल कंपनियों की बैलेंस शीट इस समय बेहतर स्थिति में है। यही कारण है कि अब तेल कीमतों को कम करने पर भी विचार किया जा सकता है। सरकार के पास यह मजबूत विकल्प मौजूद है। सिलेंडर के दाम कम करने से आम उपभोक्ताओं को सस्ती गैस मिलेगी। इसी प्रकार यदि तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी करती हैं, तो इससे आम उपभोक्ताओं को काफी राहत मिलेगी। पेट्रोल-डीजल ऐसी वस्तुएं हैं, जिनकी कीमतों का सीधा असर दूसरी वस्तुओं की कीमतों पर होता है। इनकी कीमतों में कमी आने से ट्रकों के जरिये होनेवाले माल भाड़े में कमी आती है और वस्तुएं सस्ती होती हैं। यानी यदि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी होती है, तो इससे अन्य वस्तुओं की कीमतें भी कम होंगी और आम उपभोक्ताओं को लाभ होगा। सरकार के लिए इस समय सबसे बड़ी चिंता महंगाई के मोर्चे पर निपटना है। लेकिन यदि सरकार पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतों में कमी करती है और उसका दूसरी वस्तुओं पर भी असर पड़ता है, तो इससे महंगाई के मोर्चे पर बड़ी सफलता मिलेगी। इससे महंगाई को कम करने में मदद मिलेगी।

    क्या लोकसभा चुनाव में हावी रहेगा रेवड़ी कल्चर
    हाल ही में हुए एक सर्वे में लोगों से यह प्रश्न किया गया था कि अगली बार चुनाव में वे सबसे बड़ा मुद्दा क्या देखते हैं। सर्वे में भाग लेनेवाले 72 प्रतिशत लोगों ने यह स्वीकार किया था कि महंगाई चुनाव में बड़ा मुद्दा साबित होनेवाला है। यानी यह संकेत मिलने लगे हैं कि महंगाई से उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ रही है और चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है। वैसे देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए कड़े कदम उठाने के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि उनके उपाय उस काढ़े की तरह होते हैं, जो पीने में थोड़े कड़वे होते हैं, लेकिन उसका शरीर के स्वास्थ्य पर बेहतर असर पड़ता है। पीएम की बातों का असर सही होता हुआ भी दिखाई पड़ा, जब कोरोना काल के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं ढहने लगीं, जबकि उसी दौर में भारत बेहतर विकास करते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। आज जब केंद्र सरकार ने गैस सिलेंडर की कीमतों में दो सौ रुपये प्रति गैस सिलेंडर की सब्सिडी देने की घोषणा की, तो यह प्रश्न उठने लगा कि क्या केंद्र सरकार ने भी चुनाव जीतने के लिए अब लोकलुभावन घोषणाओं पर विश्वास करने का विकल्प ही सही समझा है। यह प्रश्न भी उठने लगा है कि ह्यमुफ्त रेवड़ियांह्ण बांटने की जिस सोच को पीएम ने लाल किले से देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करनेवाला बताया है, अब वह स्वयं उसी रास्ते को अपनाने के लिए मजबूर हो गये हैं या फिर समय रहते सरकार ने लोगों को राहत पहुंचा कर महंगाई के मुद्दे को कमजोर करने की कोशिश की है। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस ने मुफ्त रेवड़ियों का बड़ा मुद्दा उछाला था। उसने लोगों को सस्ता गैस सिलेंडर देने, बेरोजगारी भत्ता देने और महिलाओं को कई योजनाओं का लाभ देने की घोषणा की। माना जाता है कि इन चुनावों में कांग्रेस को इन घोषणाओं का लाभ मिला और उसने जीत हासिल कर ली। कांग्रेस ने इस जीत से उत्साहित होकर इस साल में होनेवाले मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों से पहले ही बड़ी-बड़ी मुफ्त घोषणाएं करनी शुरू कर दी हैं। इसमें प्रियंका गांधी के द्वारा मध्यप्रदेश में पांच सौ रुपये में सिलेंडर देना और महिलाओं को हर महीने 15 सौ रुपये की आर्थिक सहायता पहुंचाना भी शामिल है। माना जा रहा है कि भाजपा ने इन घोषणाओं का असर स्वीकार कर लिया है। उसने यह मान लिया है कि यदि उसे इस दौड़ में बने रहना है, तो उसे भी विपक्षी दलों की तरह मुफ्त की घोषणाएं करनी पड़ेंगी। इसी का असर हुआ कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गैस सिलेंडर की कीमतें 450 रुपये करने की घोषणा कर दी। लाडली बहनों को आर्थिक सहायता राशि भी बढ़ा कर 1250 रुपये कर दी गयी है और सत्ता में लौटने पर इसे बढ़ा कर तीन हजार रुपये तक करने का उन्होंने वादा भी कर दिया है। भाजपा इन घोषणाओं के जरिये कांग्रेस के दांव को भोथरा करने की योजना बना रही है।
    भाजपा को सता रही थी चिंता, लेकिन मोदी के पास हैं कई अस्त्र
    जिस तरह 2022 के आखिर में हुए गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में दो जगह हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम में भाजपा की हार हुई, उससे पार्टी शीर्ष स्तर पर असहज हुई, लेकिन 2023 की शुरूआत में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में भी भले ही कांग्रेस की करारी हार हुई, लेकिन भाजपा को जैसी उम्मीद थी, वैसे नतीजे नहीं आये। त्रिपुरा में उसकी सरकार जरूर बनी, लेकिन सीटें कम हुईं और स्थिरता के लिए उसे गठबंधन करना पड़ा। मेघालय में कोर्नाड संगमा की जिस पार्टी से गठबंधन तोड़ कर भाजपा राज्य की सभी सीटों पर अकेली चुनाव लड़ी, वहां उसकी सीटें और मत प्रतिशत दोनों कम हुए। सिर्फ नगालैंड में जरूर भाजपा अपनी सहयोगी एनडीपीपी के सहारे कुछ बेहतर प्रदर्शन कर सकी। हालांकि पूर्वोत्तर के नतीजों को भाजपा ने अपनी प्रचार और मीडिया रणनीति से एक बड़ी विजय के रूप में प्रचारित करके अपने पक्ष में जो माहौल बनाया था, मई में हुए कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस के हाथों मिली करारी हार ने उसे बिगाड़ दिया। इसके बाद सरकार और पार्टी के शीर्ष स्तर पर देश के सियासी मूड और माहौल का आकलन शुरू हो गया। उधर भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि में लगातार सुधार और विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस के मजबूत होने और सरकार के खिलाफ लगातार बढ़ती विपक्षी दलों की गोलबंदी ने भाजपा में शीर्ष स्तर पर माथे पर बल ला दिये हैं। दक्षिण से उत्तर की भारत जोड़ो पद यात्रा की कामयाबी के बाद से ही सितंबर में पश्चिम से पूरब तक की दूसरी भारत जोड़ो यात्रा की चलनेवाली चर्चा भी कर्नाटक के नतीजों के बाद भाजपा के रणनीतिकारों को सोचने पर मजबूर कर रही है। लेकिन मोदी तो मोदी हैं। उनके तरकश में हर वह तीर मौजूद है, जिससे वह विपक्ष को कमजोर कर सकते हैं। उन्होंने समय पर यह प्रमाणित भी किया है। भाजपा के पास महंगाई से निपटने के लिए अभी और भी अस्त्र मौजूद हैं। सस्ती गैस तो एक बानगी भर है। अभी बहुत से ऐसे मोर्चे हैं, जहां मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों को गिनवाने में पीछे नहीं हटेगी। चंद्रयान 3 की सफलता ने मोदी सरकार को एक आत्मविश्वास भी दिया है। देश का भरोसा मोदी पर और प्रगाढ़ हुआ है। अभी जनवरी में राम मंदिर का उद्घाटन तो बाकी ही है। उसके बाद देश का माहौल क्या होगा, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं। देश राममय होगा। भाजपा को इसका पूरा लाभ भी मिलेगा। भाजपा तो चाहेगी ही कि चुनाव तब हो, जब देश का माहौल उसके पक्ष में अधिक हो और विपक्ष चारों खाने चित हो।

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