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    Home»विशेष»बोरियो विधानसभा क्षेत्र में लोबिन की फाइट खुद लोबिन से
    विशेष

    बोरियो विधानसभा क्षेत्र में लोबिन की फाइट खुद लोबिन से

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 24, 2024Updated:September 24, 2024No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    पूरे इलाके में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बने हुए हैं झामुमो के पूर्व दिग्गज
    साढ़े तीन दशक से इस क्षेत्र में है दबदबा, छह बार जीत चुके हैं चुनाव
    पार्टी बदलने से कोई नाराज है तो कोई खुश, लेकिन छवि मददगार वाली ही है

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड विधानसभा की सबसे चर्चित सीटों में से एक है बोरियो, जहां का राजनीतिक परिदृश्य इस बार पूरी तरह चर्चा का केंद्र बना हुआ है। आदिवासियों के लिए आरक्षित यह विधानसभा सीट झामुमो का गढ़ है और इस गढ़ के निर्विवाद नायक हैं लोबिन हेंब्रम, जो अब भाजपा का दामन थाम चुके हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि लोबिन हेंब्रम की बदौलत झामुमो यहां मजबूत होता चला गया। लेकिन आज यही लोबिन खुद के लिए चुनौती बने हुए हैं। राजमहल लोकसभा क्षेत्र के तहत आनेवाली बोरियो विधानसभा सीट पर आलम यह है कि यहां सब कुछ लोबिन हेंब्रम ही हैं। वह यहां सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा हैं और सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती। साढ़े तीन दशक से झामुमो का झंडा बुलंद करनेवाले लोबिन अब भाजपा में हैं, और इस क्षेत्र में वह कमल खिलाने के लिए दिन-रात एक किये हुए हैं। क्योंकि यहां लोबिन की फाइट खुद लोबिन से है। एक लोबिन जो कभी तीर-धनुष का झंडा बुलंद करते रहे और जिनके आदर्श रहे शिबू सोरेन और एक लोबिन जिसके हाथों में आज कमल है और नरेंद्र मोदी जिनके आदर्श बन गये हैं। आज के बोरियो का आलम यह है कि क्रॉस लगे घर में भी भाजपा का झंडा दिखाई पड़ने लगा है। यानी लोबिन दा पूरे एक्टिव मोड में आ चुके हैं। बोरियो का बाजार हो या लोबिन हेंब्रम का नाम दोनों ही अपने क्षेत्र में सबसे चर्चित हैं। लोबिन ने 2005 और 2014 को छोड़ कर 1990 के बाद से हमेशा यहां से जीत हासिल की है। बोरियो में होनेवाली कोई भी राजनीतिक चर्चा लोबिन हेंब्रम से शुरू होकर उन पर ही खत्म होती है। लोबिन यहां की मिट्टी और हवाओं में घुल-मिल गये हैं, यानी बोरियो और लोबिन का अस्तित्व एक-दूसरे से इस तरह मिल गया है कि उसे अलग करना नामुमकिन हैं। इसलिए आसन्न विधानसभा चुनाव में बोरियो विधानसभा क्षेत्र का खास महत्व हो गया है। क्या है बोरियो विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास और क्या है वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड के 81 विधानसभा क्षेत्र में से बोरियो विधानसभा क्षेत्र भी एक है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है। 1957 में अस्तित्व में आया यह विधानसभा क्षेत्र साहिबगंज और गोड्डा जिले से जुड़ा हुआ है और राजमहल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यहां की राजनीति थोड़ी अलग लेवल की है, क्योंकि यह इलाका विकास की दौड़ में पिछड़ा तो है, लेकिन राजनीतिक रूप से बेहद उर्वर है। यहां की राजनीति किसी दल या संगठन के भरोसे नहीं, एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती रहती है और वह व्यक्ति है लोबिन हेंब्रम। हाल के दिनों तक झामुमो के कद्दावर नेता रहे लोबिन हेंब्रम अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। बोरियो विधानसभा क्षेत्र में उनकी स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां हर बात में कहीं न कहीं से घूम-फिर कर लोबिन दा आ ही जाते हैं। यानी बोरियो में आप लोबिन हेंब्रम का पक्ष लें या विरोध करें, लेकिन उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। लोबिन हेंब्रम के बारे में बोरियो की जनता का कहना है कि वह जात-पात, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब नहीं देखते, वह सबकी मदद करते हैं। दिन हो या रात अगर कोई उनसे मदद मांगे तो वह हमेशा हाजिर रहते हैं। लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं। लोबिन हेंब्रम इधर-उधर की बातें नहीं करते, वह सीधी बात करते हैं और सीधा प्रहार भी करते हैं। मुद्दों से वह भटकते नहीं, वह मुद्दों को अंजाम तक पहुंचाने में विश्वास करते हैं। फिर चाहे अपनी ही सरकार के खिलाफ ही क्यों न खड़ा होना पड़े। बोरियो की जनता भी यस या नो में विश्वास करती है। सवाल: लोबिन दा भाजपा में चले गये, इसे लेकर आप क्या सोचते हैं ? एक कहता है- ना ठीक नहीं किया, वहीं दूसरा व्यक्ति कहता है-बिल्कुल सही किया। लोगों से बातचीत के क्रम में लोबिन हेंब्रम की एक खासियत पता चली कि वह मदद करने में भेदभाव नहीं करते हैं। कोई उन्हें वोट दे या नहीं दे, वह सबको समान दृष्टि से देखते हैं। जनता में उनको लेकर कहीं-कहीं नाराजगी हो सकती है, लेकिन उस व्यक्ति ने सम्मान कमाया है।

    बोरिया विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
    बोरियो विधानसभा सीट पर झामुमो का प्रभाव रहा है, लेकिन झारखंड अलग राज्य निर्माण के बाद इस सीट पर झामुमो और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला होता रहा है। वर्ष 2019 में यहां से झामुमो के टिकट पर लोबिन हेंब्रम ने जीत हासिल की। हालांकि इस सीट पर झामुमो के लोबिन हेंब्रम वर्ष 1990, 1995, 2000, 2009 और 2019 में जीत हासिल कर चुके हैं। लेकिन 1995 में पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने की वजह से झामुमो ने उनका टिकट काट दिया था। इसके बावजूद वह उस चुनाव में भी बतौर निर्दलीय जीत दर्ज करने में सफल हुए थे। 2005 और 2014 में उन्हें भाजपा के ताला मरांडी के हाथों पराजित होना पड़ा था।

    बोरियो का सामाजिक समीकरण
    बोरियो में सबसे अधिक संथाल, फिर हिंदू और तीसरे नंबर पर अल्पसंख्यक मतदाता हैं। संथाल मतदाताओं के साथ अल्पसंख्यक मतदाताओं के मिलते ही झामुमो भारी पड़ जाता है। यहां संथाल और पहाड़िया आदिवासी मतदाताओं की आबादी लगभग 60 प्रतिशत हैं। वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 10 प्रतिशत है। इस तरह आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के करीब 70 प्रतिशत मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में वैश्य, कोयरी, कुर्मी और यादव सहित अन्य समुदाय के मतदाताओं की गोलबंदी चुनाव परिणाम में निर्णायक सिद्ध होती है।

    विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज
    हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में लोबिन हेंब्रम ने झामुमो से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में जोर-आजमाइश की, लेकिन वह अपने बोरियो विधानसभा क्षेत्र में भी सम्मानजनक वोट नहीं बटोर सके। बोरियो में इस बार क्या होगा, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन इतना तय है कि आसन्न विधानसभा चुनाव में लोबिन हेंब्रम को खुद से ही मुकाबला करना होगा।

    बोरियो में हर तरफ लोबिन हेंब्रम की ही चर्चा
    बोरियो विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास भले ही कुछ भी रहा हो, एक बात साफ दिखती है कि यहां लोबिन हेंब्रम ही सबसे बड़े राजनीतिक फैक्टर हैं। चाहे विधायक के रूप में कामकाज की बात हो या फिर नये राजनीतिक समीकरण की, लोबिन हेंब्रम के बिना कुछ भी पूरा नहीं होता। लोग कहते हैं कि लोबिन दा बोरियो विधानसभा क्षेत्र की हवाओं-मिट्टी में इस कदर घुले-मिले हैं कि दोनों को अलग करना नामुमकिन है। भले ही विधायक के रूप में उन्होंने कोई बड़ा काम नहीं किया हो, लेकिन लोगों के दिलों में उनका अलग ही स्थान है।

    कौन हैं लोबिन हेंब्रम
    लोबिन हेंब्रम झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं। वह झामुमो में पहली कतार के नेता थे। उनकी पहचान शिबू सोरेन के सबसे विश्वसनीय सहयोगियों के रूप में थी। पार्टी की नीतियां तय करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। उन्होंने हमेशा जल-जंगल-जमीन और आदिवासी हितों की बात की है। गुरुजी के नेपथ्य में जाने के बाद से लोबिन के तेवर बदल गये। झामुमो का विधायक होने के बावजूद उन्होंने झारखंड की पांचवीं विधानसभा में हमेशा अपनी ही सरकार का विरोध किया। स्थानीय नीति, 1932 का खतियान और दूसरे कई ऐसे मुद्दे थे, जिन पर उन्होंने झामुमो सरकार की मुखालफत की। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में वह राजमहल सीट से निर्दलीय खड़े हो गये, तो झामुमो ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद उनकी विधायकी भी चली गयी और फिर वह भाजपा में शामिल हो गये।

    क्या हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में
    हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में लोबिन हेंब्रम बतौर निर्दलीय मैदान में थे। लेकिन उन्हें अपेक्षित वोट नहीं मिल सका। बोरियो विधानसभा क्षेत्र में जहां झामुमो के विजय हांसदा को 77537 वोट और भाजपा के ताला मरांडी को 74876 वोट मिले, वहीं लोबिन हेंब्रम महज 14133 वोट ही ला सके।

    2019 के विधानसभा चुनाव का परिणाम
    वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में बोरियो सीट से झामुमो के प्रत्याशी लोबिन हेंब्रम ने जीत दर्ज की थी। लोबिन हेंब्रम ने भाजपा के सूर्यनारायण हांसदा को 17924 मतों से हराया था। लोबिन हेंब्रम को 77365 वोट मिले थे, जबकि सूर्य नारायण हांसदा को 59441 वोट मिले थे।

    क्या है इस बार का चुनावी मुद्दा और परिदृश्य
    जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, बोरियो में चुनावी मुद्दा लोबिन हेंब्रम ही हैं। उनके समर्थन और विरोध पर ही चुनावी परिदृश्य भी नजर आ रहा है। जहां तक मुद्दों की बात है, तो लोबिन हेंब्रम के सामने चुनौती बड़ी है। इतने दिनों से विधायक रहने के बावजूद उनके पास गिनाने लायक कोई बड़ा काम नहीं है। अब तक उन्हें आदिवासियों का वोट मिल जाता था, लेकिन इस बार भाजपा का झंडा थामने के कारण उन्हें परेशानी हो रही है। हालांकि इस परेशानी को लोबिन हेंब्रम इलाके से अपने जुड़ाव की मदद से काफी हद तक दूर करने में सफल होते दिख रहे हैं। झामुमो से उनके सामने कौन होगा, यह तय नहीं है, लेकिन जो भी होगा, उसका राजनीतिक कद लोबिन दा से कम ही होगा, इतना निश्चित है।

    बोरियो से कब कौन रहा विधायक
    वर्ष विजयी उम्मीदवार का नाम पार्टी का नाम
    1957 जेठा किस्कू झारखंड पार्टी
    1962 डा सिंहराय मुर्मू जनता पार्टी
    1967 जे. किस्कू स्वतंत्र पार्टी
    1969 सेत हेंब्रम प्रजातांत्रिक हुल झारखंड पार्टी
    1972 सेत हेंब्रम प्रजातांत्रिक हुल झारखंड पार्टी
    1977 बेंजामिन मुर्मू जनता पार्टी
    1980 जोन हेंब्रम कांग्रेस
    1985 जोन हेंब्रम कांग्रेस
    1990 लोबिन हेंब्रम झामुमो
    1995 लोबिन हेंब्रम निर्दलीय
    2000 लोबिन हेंब्रम झामुमो
    2005 ताला मरांडी भाजपा
    2009 लोबिन हेंब्रम झामुमो
    2014 ताला मरांडी भाजपा
    2019 लोबिन हेंब्रम झामुमो

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