-घाटशिला को जिला बना कर उप चुनाव में खेल सकते हैं बड़ा दांव
-इस मुद्दे के साथ मैदान में उतरा झामुमो, तो विरोधी भी हो जायेंगे चित
-डॉ दिनेश षाड़ंगी की पहल से हुई घाटशिला को जिला बनाने की मांग
झारखंड में घाटशिला विधानसभा की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। ऐसी उम्मीद है कि बिहार में विधानसभा चुनाव के साथ ही घाटशिला में भी उप चुनाव कराया जायेगा। झामुमो के कद्दावर नेता रहे रामदास सोरेन के निधन के बाद यह उप चुनाव जरूरी हो गया है। झामुमो ने यहां से स्वर्गीय रामदास सोरेन के पुत्र सोमेश सोरेन को मैदान में उतारने का मन लगभग बना लिया है। मतदाताओं की सहानुभूति होने के बावजूद झामुमो इस उप चुनाव को हल्के में नहीं लेगा। इसलिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अभी से ही सक्रिय हो गये हैं। झामुमो को पता है कि घाटशिला से भाजपा की तरफ से चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को उतारा जा सकता है। इसलिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक ऐसी रणनीति तैयार की है, जिसमें फंस कर विपक्ष भी चारों खाने चित हो सकता है। यह रणनीति है घाटशिला को जिला घोषित करने की, जिसकी मांग पिछले 25 साल से की जा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन यदि विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले घाटशिला को अलग जिला बनाने की घोषणा कर देते हैं, तो इससे न केवल झामुमो की जीत एक बार फिर पक्की होगी, बल्कि स्वर्गीय रामदास सोरेन के अधूरे सपने को पूरा करने का श्रेय भी उन्हें मिल जायेगा और इसका राजनीतिक असर दूरगामी हो सकता है। घाटशिला उप चुनाव की पृष्ठभूमि में क्या है अलग घाटशिला जिले की मांग का इतिहास और जिला घोषित हो जाने पर चुनाव में क्या होगा इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के घाटशिला ब्यूरो प्रमुख अरुण सिंह।
राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री रहे रामदास सोरेन के निधन के बाद घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के लिए उप चुनाव होना तय है। चुनाव आयोग के निर्देश पर उपायुक्त द्वारा मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य जारी है। इस बात की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है कि बिहार के विधानसभा चुनाव के साथ ही घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के लिए चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग द्वारा कर दी जायेगी। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कोलकाता से रांची लौटने के क्रम में बहरागोड़ा और चाकुलिया के साथ-साथ घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख कार्यकतार्ओं को आवश्यक दिशा-निर्देश दिया था। इसी क्रम में बहरागोड़ा क्षेत्र के विधायक समीर कुमार मोहंती को उन्होंने घाटशिला विधानसभा चुनाव की विशेष जिम्मेवारी सौंपी थी। झामुमो की ओर से औपचारिक घोषणा बाकी है, लेकिन स्वर्गीय रामदास सोरेन के पुत्र सोमेश सोरेन का उम्मीदवार बनाया जाना लगभग तय है। सोमेश के साथ घाटशिला विधानसभा के लगभग प्रमुख नेता एवं कार्यकर्ता हैं। औपचारिक बैठक भी हो चुकी है। आठ कोसी और मुसाबनी का दौरा उन्होंने पूरा कर लिया है। चंपाई सोरेन ने तीन दिन पहले घाटशिला क्षेत्र का दौरा किया एवं अपने पुत्र बाबूलाल सोरेन के लिए फील्डिंग सजाने में जुटे हैं। यह विदित है कि भाजपा में बड़े नेताओं का अपना-अपना कुनवा है। बाबूलाल सोरेन की उम्मीदवारी तभी पक्की हो सकती है, जब अन्य बड़े नेता सहमति जतायेंगे।
चुनाव को हल्के में नहीं लेगा झामुमो
झारखंड मुक्ति मोर्चा घाटशिला विधानसभा चुनाव को हल्के में नहीं लेने जा रहा है। यह सही है कि रामदास सोरेन की लोकप्रियता, क्षेत्र में उनकी पकड़ और सहानुभूति का लाभ झामुमो उम्मीदवार को मिलेगा। इसके बावजूद झामुमो के लोग धरातल पर काम करने में जुटे हैं। बहरागोड़ा क्षेत्र से विधायक समीर मोहंती और युवा नेता पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी की घाटशिला विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इन सबसे इतर झामुमो की ओर से मास्टर स्ट्रोक कार्ड खेले जाने की तैयारी की जा रही है। वह मास्टर स्ट्रोक कार्ड ऐसा है, जिसका शायद ही कोई राजनीतिक दल विरोध करे। ऐसी चर्चा है कि चुनाव की घोषणा के ठीक पहले हेमंत सोरेन सरकार द्वारा घाटशिला को जिला बनाने की घोषणा की जा सकती है। यदि ऐसा होता है, तो इस मास्टर स्ट्रोक के सामने विरोधी चारों खाने चित हो जायेंगे, ऐसा यूपीए गठबंधन का मानना है।
लंबे समय से लंबित है घाटशिला को जिला बनाने की मांग
घाटशिला को जिला बनाने का पहला प्रस्ताव राज्य सरकार के पास तत्कालीन एसडीओ रमेश दुबे की ओर से उपायुक्त पूर्वी सिंहभूम के माध्यम से भेजा गया था। उस समय बहरागोड़ा क्षेत्र के तत्कालीन विधायक डॉ दिनेश कुमार षाड़ंगी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री थे। उन्होंने घाटशिला को जिला बनाने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखा था। लेकिन उक्त प्रस्ताव को उसे समय की सरकार द्वारा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। घाटशिला कांग्रेस के नेता एवं घाटशिला में धरातल पर कार्य करने वाले तापस चटर्जी ने लगातार इसके लिए आंदोलन किया। स्थानीय लोगों का उन्हें काफी समर्थन भी प्राप्त हुआ था। पिछले 25 वर्ष के इतिहास को उठाकर देखें, तो घाटशिला को जिला बनाने की मांग यूपीए हो अथवा एनडीए, दोनों गठबंधनों के प्रमुख दल इसकी मांग करते रहे हैं। घाटशिला अनुमंडल के सभी प्रखंड क्षेत्र के लोगों की यह एक बड़ी आकांक्षा है।
क्या है घाटशिला अनुमंडल की सीमा
घाटशिला अनुमंडल के अंतिम छोर की बात करें, तो पश्चिम बंगाल की सीमा चिचड़ा से शुरू होती है। जिला कार्यालय जमशेदपुर से इसकी दूरी 117 किलोमीटर है। ओड़िशा की दूरी, जो कि जामशोला सीमा है, वह 107 किलोमीटर पर अवस्थित है। गुड़ाबांधा और डुमरिया की सीमाएं ओड़िशा से सटी हैं। यह भी 110 किलोमीटर की दूरी पर है। घाटशिला जिला में घाटशिला, मुसाबनी, डुमरिया, गुड़ाबांधा, धालभूमगढ़, बहरागोड़ा और चाकुलिया प्रखंड शामिल किये जायेंगे। आबादी की दृष्टि से देखें, तो यहां की आधी आबादी शहर में है और आधी ग्रामीण क्षेत्र में। शहर की बढ़ती आबादी में प्रशासन को शहर के दायित्व के निर्वहन में व्यस्त कर रखा है। ऐसे में घाटशिला को जिला बनाया जाना अति आवश्यक माना जा रहा है। छोटे से छोटे काम के लिए 117 से अथवा 110 किलोमीटर की दूरी तय करना आम आदमी के लिए काफी परेशानी की बात है। घाटशिला का अवस्थान एकदम बीच में है। प्रशासनिक दृष्टि से हो अथवा पुलिस प्रशासन की दृष्टि से क्षेत्र पर पकड़ बनाकर रखना और आम आदमी की समस्याओं का निराकरण करने में इससे प्रशासन को काफी सुविधा होगी।
हेमंत सोरेन ने दिया है संकेत
कोलकाता से रांची लौटने के क्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हाल में बहरागोड़ा वन विश्रामगर में 45 मिनट रुके थे। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ दिनेश षाड़ंगी ने कई अन्य मांगों से संबंधित ज्ञापनों के अतिरिक्त घाटशिला को जिला बनाये जाने की मांग को उनके समक्ष रखा था। वैसे तो मुख्यमंत्री द्वारा खुले तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया, लेकिन यह भरोसा दिलाया गया कि घाटशिला और बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र के साथ ही पोटका का क्षेत्र के लोगों की बहुप्रतीक्षित मांग पर निश्चित तौर पर विचार करेंगे। इतना ही नहीं, डॉ दिनेश कुमार षाड़ंगी ने राज्य की मुख्य सचिव अलका तिवारी से भी आग्रह किया है कि घाटशिला को जिला बनाने की दिशा में शीघ्र प्रयास किया जाये। डॉ षाड़ंगी ने यह विश्वास जताया है कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कोल्हान के प्रति विशेष लगाव रखते हैं। घाटशिला और बहरागोड़ा के प्रति भी उनके मन में विकासोन्मुख सोच है। उन्होंने विश्वास जताया है इस क्षेत्र के लोगों की बहुप्रतीक्षित मांग राज्य सरकार बहुत जल्द ही पूरा करेगी और इसके लिए घाटशिला को जिला बनाने की घोषणा की जायेगी, इसकी प्रबल संभावना है। उन्होंने तो इतना तक कहा है कि उन्हें विश्वास है कि महीने भर के अंदर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा घाटशिला अलग जिला की घोषणा कर दी जायेगी।
कागजी प्रक्रिया बढ़ चुकी है आगे
घाटशिला को अलग जिला बनाने की मांग पिछले 25 वर्ष से की जा रही। राज्य सरकार की ओर से कई बार कागजी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया। हाल के महीने में राज्य सरकार के निर्देश पर उपायुक्त पूर्वी सिंहभूम द्वारा अनुमंडल अधिकारी द्वारा प्राप्त प्रतिवेदन को सामने रखते हुए संभावित जिला का खाका तैयार कर राज्य सरकार को भेज दिया गया है। जिला प्रशासन द्वारा राज्य सरकार को घाटशिला को जिला बनाने संबंधित प्रस्ताव में प्रखंडों की संख्या, उनके नाम, कुल आबादी, प्रखंड वार आबादी, महिला-पुरुष की आबादी, महिला-पुरुष मतदाताओं की संख्या, जातीय आधार पर संख्या, सड़क और रेलवे से कनेक्टिविटी समेत सभी सूचनाओं और नक्शा भी बनाकर भेजा गया है। वर्तमान में प्रस्तावित जिला में विभिन्न प्रखंडों में एवं थाने में पदस्थापित अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या का भी उल्लेख है। इतना ही नहीं, प्रस्तावित जिला का मुख्यालय और उसके लिए उपलब्ध जमीन का विस्तृत विवरण भी राज्य सरकार को जिला प्रशासन की ओर से भेजे जाने की सूचना है। एक प्रकार से घाटशिला को जिला बनाये जाने की तमाम प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है। मामला राज्य सरकार के पास है।
रामदास सोरेन का सपना था जिला
स्वर्गीय रामदास सोरेन ने विधायक रहते हुए भी कई बार घाटशिला को जिला बनाये जाने की मांग की थी। बतौर मंत्री, उन्होंने मुख्यमंत्री के समक्ष इस मांग को रखा था। उनका सपना था कि इस कार्यकाल में घाटशिला को एक स्वतंत्र जिला का आकार प्रदान करेंगे। उन्होंने घाटशिला के लोगों को इस बात का भरोसा दिया था कि धैर्य रखें, अगले चुनाव के पूर्व ही आप स्वतंत्र जिले में रहेंगे। दुर्भाग्यवश रामदास सोरेन नहीं रहे। झारखंड मुक्ति मोर्चा ही नहीं, यूपीए के तमाम घटक दलों को विश्वास है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शीघ्र ही घाटशिला को जिला बनाने की घोषणा कर स्वर्गीय रामदास सोरेन के सपने को पूरा करेंगे। घाटशिला को जिला बनाये जाने की घोषणा विधानसभा चुनाव की दृष्टि से तुरूप का इक्का साबित हो सकता है।