झारखंड सरकार के खिलाफ भूमि अधिग्रहण कानून, धर्मांतरण सहित अन्य मुद्दों पर बुलाई गई संयुक्त विपक्ष की बैठक लोकसभा चुनाव की कवायद साबित हुई. बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई. लेकिन अंतिम तौर पर सहमति बनी की एकता बनाकर केंद्र और राज्य से भाजपा को सत्ता से बेदखल करना है.
झारखंड की मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान सोमवार को संयुक्त विपक्ष चौथी बार एकत्र हुआ. पिछली बार 19 जून को संयुक्त विपक्ष की बैठक हुई थी. तब सरकार के खिलाफ धारदार आंदोलन चलाने की बात हुई थी. बैठक खत्म होते ही आंदोलन के एजेंडे की अकाल मौत हो गई. पांच माह बाद एक बार फिर विपक्ष को लगा कि सरकार तानाशाह हो गई है. आंदोलन करने की जरूरत है. इसलिए तमाम विपक्षी दल एक साथ बैठे. साथ ही कई सामाजिक संगठन के लोग भी बैठे. लेकिन अंतिम तौर पर साथ आंदोलन और चुनाव लड़के भाजपा की सरकार को केंद्र और राज्य से उखाड़ फेंकने पर सहमति बनी.
दरअसल हाल के दिनों में कई ऐसे मुद्दे राज्य के सामने आए जिसने विपक्ष को बैठे बिठाए दोगुनी ताकत दे दी. सिमडेगा में भूख से मौत का मामला हो या फिर धर्मांतरण बिल या फिर धनबाद में रिक्शा चालक की मौत. ये तमाम मुद्दे ऐसे हैं जिससे सरकार बैकफुट पर है और विपक्ष आक्रामक होता जा रहा है. जाहिर तौर पर विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश में जुट गया है.
राजनीति की रवायत जानने वाले बेहतर जानते हैं कि राजनीति में कोई भी साधु सन्यासी बनने नहीं आता. आज की बैठक में बेशक सामाजिक मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई. लेकिन इसी बैठक में नेताओं से यह भी कहा गया कि आप आपसी मतभेद भुलाकर महागठबंधन बनाएं. लेकिन सवाल फिर वही कि महागठबंधन का नेता कौन होगा. बाबूलाल के रहते हेमंत सोरेन आगे नहीं आ सकते और जेवीएम को हेमंत सोरेन का नेतृत्व पसंद नहीं होगा. फिलहाल कहा जा सकता है कि राज्य में लोस चुनाव तक विपक्ष की यह बैठक किस्तों में जारी रहेगी.