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    Home»विशेष»प्रेम की जीत
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    प्रेम की जीत

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीOctober 21, 2017No Comments4 Mins Read
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    केरल उच्च न्यायालय का ताजा फैसला यों तो नागरिक अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य अदालती फैसलों जैसा ही है, पर मौजूदा परिदृश्य में इसकी अहमियत कहीं बढ़ जाती है। कई राज्यों में और पिछले कुछ महीनों से खासकर केरल में ‘लव जिहाद’ का विवाद रह-रह कर सुर्खियों में रहा है। न्यायालय ने उस प्रवृत्ति पर रोष जताया है जो हर अंतर-धार्मिक विवाह को, स्त्री-पुरुष की अपनी मर्जी को नजरअंदाज या दरकिनार करके, केवल धार्मिक चश्मे से देखती है। अगर किसी हिंदू स्त्री ने किसी मुसलिम पुरुष से विवाह कर लिया हो, तो यह प्रवृत्ति उसे ‘लव जिहाद’ करार देकर उसके खिलाफ आसमान सिर पर उठा लेती है। अदालत ने आगाह किया है कि हर अंतर-धार्मिक विवाह को ‘लव जिहाद’ या ‘घर वापसी’ का नाम देकर उसे नाहक तूल देने, सनसनी फैलाने और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश हरगिज नहीं होनी चाहिए। आखिर यह कहने की जरूरत क्यों पड़ी? अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें कन्नूर की एक हिंदू युवती ने अपनी मर्जी से एक मुसलिम युवक से विवाह किया था, पर युवती के घरवाले इस विवाह को ‘लव जिहाद’ यानी जबर्दस्ती या कुचक्र का परिणाम बता रहे थे।युवती मई में अपना घर छोड़ कर प्रेमी के साथ चली गई थी। उसके माता-पिता की शिकायत पर पुलिस ने दोनों को हरियाणा के सोनीपत से पकड़ लिया। फिर, एक निचली अदालत ने युवती को उसके माता-पिता के साथ जाने दिया, जिन्होंने उसे अर्णाकुलम के एक कथित ‘योगा सेंटर’ में टिका दिया। युवती का आरोप है कि वहां उस पर इस बात के लिए दबाव डाला जाता रहा कि वह अपने प्रेमी से कोई रिश्ता न रखे, और यह दबाव डालने के क्रम में उसे तरह-तरह से डराया-धमकाया जाता था। युवती को अगस्त में हाइकोर्ट में पेश किया गया, जहां सुनवाई कर रही एक-सदस्यीय पीठ के जज से हुई बातचीत में उसने अपने माता-पिता के साथ लौट जाने की इच्छा जताई। लेकिन जल्दी ही असलियत सामने आ गई। चार दिन बाद, मामले की अगली सुनवाई के दौरान उसने खंडपीठ को बताया कि उससे पिछला बयान दबाव डाल कर दिलवाया गया था। अदालत के सामने यह मामला युवती के पति की याचिका के कारण आया, जिसने याचिका में कहा था कि उसकी पत्नी के माता-पिता ने उसे एक ‘पुन: धर्मान्तरण केंद्र’ में कैद कर रखा है। यह केंद्र इसी तरह के एक और मामले की वजह से खबरों में आया था, जिसमें पेशे से आयुर्वेद चिकित्सक एक युवती ने एक ईसाई पुरुष से विवाह के बाद अपने माता-पिता द्वारा वहां कैद किए जाने की शिकायत की थी। हाइकोर्ट ने कन्नूर की युवती को अपने पति के साथ रहने की इजाजत देने के

    साथ ही पुलिस से ऐसी संस्थाओं का पता लगा कर उन्हें बंद करने का भी आदेश दिया है जो जबरदस्ती धर्मान्तरण या पुन: धर्मान्तरण के काम में लगी हैं।

    केरल का इसी तरह का एक और मामला चर्चित है, जिसमें विडंबना यह है कि हाइकोर्ट की ही एक अन्य खंडपीठ ने चौबीस साल की अखिला उर्फ हादिया का एक मुसलिम पुरुष से विवाह रद््द कर दिया था, उसके माता-पिता की इस शिकायत की बिना पर कि उससे जबर्दस्ती इस्लाम कबूल करवाया गया। अलबत्ता हादिया ने इस शिकायत को निराधार बताया है। इन मामलों से समझा जा सकता है कि परंपरागत घेरे से बाहर जाकर विवाह करने वालों को पग-पग पर कैसा जोखिम उठाना पड़ता है। दक्षिणपंथी समूह तो जान के पीछे पड़ ही जाते हैं, अपने परिजन भी बैरी बन जाते हैं। अंतर-धार्मिक विवाहों में यह ज्यादा होता है, पर कई बार अंतर-जातीय विवाहों को भी तिरस्कार से लेकर हिंसा की धमकी और उत्पीड़न तक सबकुछ झेलना पड़ता है। परिवार के लोग अगर ऐसे विवाह से राजी न हों, तो वे अधिक से अधिक संबंधित युगल से नाता तोड़ सकते हैं, पर कोई बालिग लड़का-लड़की अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनना चाहें तो न जाति के आधार पर उनका यह हक छीना जा सकता न धर्म के आधार पर।

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