“अखाड़ों को अक्सर ‘मर्द’ या लड़कों का अड्डा कहा जाता है। लेकिन अब भारत में दंगल जैसी फिल्मों से लेकर…”
अखाड़ों को अक्सर ‘मर्द’ या लड़कों का अड्डा कहा जाता है। लेकिन अब भारत में दंगल जैसी फिल्मों से लेकर असल जीवन में भी बदलती रिवायतें की तस्वीरें नजर आ रही है। पहले वाराणसी के तुलसी घाट के स्वामीनाथ अखाड़े में सिर्फ पुरूष ही कुश्ती लड़ते दिखाई देते थे। लेकिन अब यहां लड़कियां भी दो-दो हाथ करती नजर आ रही हैं।
आस्था और नंदिनी लगभग 450 साल पुराने इस अखाड़े में प्रवेश पाने की लड़ाई लड़ी और 450 साल पुरानी परम्परा तोड़ कर अखाड़े का दरवाजा महिलाओं के लिए खोला। अब अनुमति मिलने के साथ ही महिला पहलवानों का रियाज भी इस अखाड़े में शुरू हो गया है।
एनडीटीवी के मुताबिक, इस अखाड़े का संचालन कर रहे महंत विशम्भरनाथ मिश्र बताते हैं, “अब हमने बेटियों को बढ़ाने के लिए यह परम्परा शुरू की है। यह समय की जरूरत है, क्योंकि आज आप बराबरी की बात करते हैं, यदि आप सिर्फ पढ़ाई के लिहाज से बराबरी की बात करते हैं, तो करते रहिए, हमारा मानना तो यह है कि समाज की आवश्यकता है कि जिस तरह लड़कों को मजबूत बनाया जाता है, जरूरी है कि लड़कियों को भी मजबूत बनाया जाए, जो परम्पराएं जीवित होती हैं, उनमें यह क्षमता होनी चाहिए कि नई चीजों को इन्कॉरपोरेट करे, और जो इस्तेमाल की चीज नहीं रह गई है, उसे डिलीट भी कर डाले।”
गौरतलब है कि अब तुलसी अखाड़े में पहलवान आस्था और नंदिनी दिखाई देती हैं, वे दोनों ही कुश्ती में स्टेट लेवल की खिलाड़ी हैं। अखाड़े की मिट्टी में रियाज के लिए इन्होंने समाज और पुरुष पहलवानों से अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी और बड़ी कामयाबी पाई।