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    Home»राजनीति»राजशक्ति पर अंकुश लगाने के लिए लोकशक्ति की ज़रूरत: यशवंत सिन्हा
    राजनीति

    राजशक्ति पर अंकुश लगाने के लिए लोकशक्ति की ज़रूरत: यशवंत सिन्हा

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीOctober 16, 2017No Comments3 Mins Read
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    पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा. (फोटो: यूट्यूब/द वायर)

    मुंबई: पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने रविवार को एक बार फिर नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर अपना निशाना साधा और राजशक्ति पर अंकुश के लिए लोकशक्ति का आह्वान किया.

    विदर्भ के अकोला में किसानों के गैर सरकारी संगठन शेतकारी जागर मंच द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने जीएसटी और नोटबंदी को लेकर भी केंद्र सरकार को निशाना बनाया.

    जयप्रकाश नारायण का उल्लेख करते हुए सिन्हा ने लोकशक्ति आंदोलन की अपील की जो राजसत्ता पर नियंत्रण रखेगी. उन्होंने कहा, हम यह लोकशक्ति पहल अकोला से शुरू करें.

    सिन्हा ने कहा, हम पहले से मंदी का सामना कर रहे हैं. और आंकड़ों का क्या, आंकड़े एक चीज साबित कर सकते हैं तो उसी आंकड़े से दूसरी चीज भी साबित की जा सकती है.

    मोदी पर निशाना साधते हुए भाजपा नेता ने कहा, हमारी सरकार के मुखिया ने हाल ही में एक घंटे के भाषण में भारत की प्रगति दिखाने के लिए आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि इतनी सारी कार और मोटरसाइकिल बिकीं.

    उन्होंने कहा, क्या इसका मतलब देश प्रगति कर रहा है. बिक्री तो हुई लेकिन क्या कोई उत्पादन हुआ. उन्होंने कहा, ‘मैं इस कार्यक्रम में नोटबंदी पर बोलने से बच रहा हूं क्योंकि जो चीज फेल हो चुकी है उसके बारे कोई क्या कहे.’

    सिन्हा ने कहा, ‘जब हम विपक्ष में थे, हम आरोप लगाते थे कि सरकार की तरफ से टैक्स टेरेरिज्म और ‘छापा राज’ चलाया जा रहा है. आज मेरे पास कहने के लिए शब्द नहीं है कि आज जो कुछ भी चल रहा है उस सबके लिए आतंकवाद अंतिम शब्द है.’

    जीएसटी पर सिन्हा ने कहा, ‘जीएसटी ‘गुड एंड सिंपल टैक्स’ हो सकता था, लेकिन सत्ता में बैठे लोगों ने इसे ‘बैड एंड कॉम्प्लीकेटेड टैक्स बना दिया. यह सरकार की ड्यूटी है कि वह जीएसटी के क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं को दूर करे.’

    गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता यशवंत सिन्हा लगातार केंद्र सरकार की आलोचना कर रहे हैं. हाल ही में उन्होंने एक लेख लिखकर सरकार को नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों के लिए आड़े हाथ लिया था और लगातार गिरती विकास दर पर गंभीर चिंता जताई थी.

    इसे भी पढ़ें: ‘भाजपा में लोग जानते हैं कि अर्थव्‍यवस्‍था तेज़ी से नीचे जा रही है लेकिन डर के कारण सब चुप हैं’

    उन्होंने अपने लेख लिखा था, ‘वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था की जो दुर्गति कर रखी है, उसे लेकर मैं अगर अब नहीं बोलूंगा तो इसका मतलब होगा कि मैं देश के प्रति अपने कर्तव्य में असफल हो गया हूं. मैं ये बात भी जानता हूं कि मैं जो बोलूंगा वह भाजपा में मौजूद ढेरों लोगों सहित वे कई लोग मानते हैं, जो किसी डर की वजह से बोल नहीं रहे है.’

    अर्थव्यवस्था पर चिंता जताते हुए उन्होंने लिखा, ‘आज भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर क्या है? निजी निवेश इतना कम हो चुका है, जितना पिछले 20 सालों में नहीं हुआ. औद्योगिक उत्पादन ढह चुका है, खेती संकट में है. निर्माण उद्योग जो एक बड़े कार्यबल को नौकरी देता है, मंदी की चपेट में है. बाकी सेवा क्षेत्रों में भी धीमी प्रगति है. निर्यात घट गया है. अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र के बाद दूसरा क्षेत्र मंदी की चपेट में है.’

    सिन्हा के मुताबिक, ‘नोटबंदी एक लगातार चलने वाली आर्थिक आपदा साबित हुई, तो वहीं जीएसटी को गलत तरह से समझा गया, बेहद खराब ढंग से लागू किया गया, जिस कारण लोगों का बिजनेस डूब गया. लाखों लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. जबकि श्रम बाज़ार में आने वाले लोगों के लिए नए अवसरों में पहले से ही मुश्किल आ रही है.’

     

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