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    Home»देश»मोदी युग में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक भारत का उदय
    देश

    मोदी युग में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक भारत का उदय

    adminBy adminOctober 12, 2022No Comments12 Mins Read
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    विशेष
    मोदी है तो मुमकिन है, यूं ही नहीं कहा जाता

    सदियों से भारत अपनी धार्मिक आस्था, संस्कृति और अध्यात्म के लिए विख्यात है। यह देश ऋषि मुनियों का देश रहा है। यह देश विद्वानों का देश रहा है। यहां शुरू से ही अध्यात्म और ज्ञान का मोती चुनने देश-विदेश से लोग आते रहे हैं। अभी भी आते हैं। यहां बहने वाले आस्था के सैलाब, दुनिया को प्रभावित और आकर्षित करते रहे हैं। अनेक विदेशी यात्रियों और पर्यटकों ने भी अपनी-अपनी किताबों में इनका उल्लेख किया है। हजारों साल के गौरवशाली इतिहास को भारत ने संजोये रखा है। लेकिन समय-समय पर विधर्मियों, इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा यहां की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों को ध्वस्त किया गया, उन्हें नष्ट किया गया। उन विधर्मियों का मकसद हिंदुओं के सम्मान को आघात पहुंचाना और उन्हें खून के आंसू रुलाना भी था। यह वो दौर था, जब हिंदुओं के धार्मिक स्थलों और ऐतिहासिक विरासत को तोड़ा गया, जलाया गया और लूटा गया। लूट का माल इतना था कि उन फकीरों के पास इतने साधन भी नहीं थे कि वे सारी संपत्तियों को ढो पाते। शौचालय विहीन उन देशों के लुटेरों ने भारत के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों पर दावा ठोकना शुरू किया। दरबारी इतिहासकारों की मदद से उन लुटेरों ने खुद की शान में कसीदे लिखवाये। देश के हिंदुओं की अनेकता का फायदा उन इस्लामिक आक्रांताओं ने खूब उठाया। चंद जयचंदों के कारण भारत के वीर सपूत देश को गुलामी की बेड़ियों से नहीं बचा पाये। लेकिन हिंदुओं की आस्था के सागर को आक्रांताओं के तोप के गोले सुखा नहीं पाये। राम मंदिर से लेकर, काशी विश्वनाथ तक, श्रीकृष्ण जन्मस्थान से लेकर महाकाल मंदिर तक, सोमनाथ मंदिर से लेकर हंपी के मंदिरों तक लाखों हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया। उन्हें ध्वस्त किया गया। वहां की कलाकृतियों को नष्ट किया गया। कई मंदिरों को ध्वस्त कर उन पर मस्जिदों का निर्माण करवाया गया। मंदिरों में विराजे शिवलिंग से लेकर मूर्तियों तक को अपमानित किया गया। उन्हें खंडित किया गया, लेकिन हिंदुओं ने धैर्य नहीं खोया, क्योंकि हिंदू जानता है कि हमारी चंद गलतियों के कारण तुम्हारा समय आया था, लेकिन प्रायश्चित से, हमारा दौर आयेगा। शुरूआत रामजी के आशीर्वाद से होगी, फिर बाबा मिलेंगे, उसके बाद लल्ला को झूला भी झुलायेंगे। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।
    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ अर्थात मैं प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं आता हूं, जब-जब अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए, मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए, मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए, मैं आता हूं और युग-युग में जन्म लेता हूं। आज मोदी का युग है। वह इस युग में भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों को सहेज रहे हैं। कैसे मोदी युग में भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक उदय हो रहा है, कैसे भारत के वैभव और गौरव की पुनर्स्थापना हो रही है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    1947 में देश आजाद हुआ। धर्म के आधार पर भारत का बंटवारा भी हो गया। पाकिस्तान मुस्लिम देश के रूप में मुसलमानों को मिल गया, लेकिन भारत अखंड हिंदू राष्ट्र नहीं बन पाया, क्योंकि भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाना था। बहरहाल, आजादी का सूरज निकलने के बाद हिंदुओं को उम्मीद थी कि स्वाधीन भारत की सरकारें उनकी आस्था के केंद्र को प्राचीन अवस्था में पुनर्स्थापित करेंगी, लेकिन उस दौरान एक खास तरह की तुष्टिकरण की राजनीति ने पैर पसारना शुरू किया। भारत के अनेकों ऐतिहासिक धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल विकास की राह जोहते रहे। कांग्रेस के शासन में हिंदुओं को कमजोर करने और मुसलमानों को खुश करने की परिपाटी शुरू हुई। सो इस क्रम में नये-नये कानून बनाये गये। जैसे 1991 का प्लेसेस आॅफ वर्शिप एक्ट, 1995 का वक्फ एक्ट। यह कांग्रेस सरकारों द्वारा कुछ ऐसे बनाये गये कानून हैं, जो आज हिंदुओं को खून के आंसू रुला रहे हैं। आज हिंदुओं के कई धार्मिक स्थल, प्लेसेस आॅफ वर्शिप एक्ट के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। वहीं वक्फ कानून के तहत वक्फ बोर्ड अगर किसी भी संपत्ति पर दावा कर दे, पुश्त दर पुश्त खत्म हो जायेंगी, लेकिन उसका दावा खत्म नहीं होगा। वक्फ बोर्ड इसी कानून का फायदा उठा कर देश के गांव के गांव को कब्जिया रहा है। यहां तक कि 1500 साल पुराने मंदिरों पर दावा करने से नहीं हिचकता। 1990 का गोली कांड कौन भूल सकता है। जब मुलायम राज में अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां बरसायी गयी थीं। दर्जनों निर्दोष कारसेवकों के खून से अयोध्या की गलियां रंग गयी थीं। सरयू की धारा लाल हो गयी थी। मुलायम को मुल्ला मुलायम कहा गया, लेकिन मैं आज इन दोनों एक्ट के बारे में बात नहीं करूंगा। मैं मुलायम सिंह यादव की भी बात नहीं करूंगा। कांग्रेस की अति तुष्टीकरण की राजनीति के बारे में भी बात नहीं करूंगा। आज बात होगी एक ऐसे सनातनी की, जो सीना ठोक कर कहता है, जी हां मैं राष्टÑवादी हिंदू हूं। मैं सनातनी हूं।
    जो खुल कर सनातन धर्म के वैभव और गौरव की पुनर्स्थापना में लगा हुआ है। जो काल के कपाल के शिलालेख पर नये कालखंड का सूत्र गढ़ रहा है। जो आज विश्व के मानचित्र पर भारत को नयी उड़ान प्रदान कर रहा है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की। सच में यह संयोग ही है कि 2014 से भारत के आध्यात्मिक जगत में सांस्कृतिक और धार्मिक उत्थान के एक नये युग की शुरूआत हुई। मोदी युग में 500 वर्षों से लंबित राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ और आज भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य भी चल रहा है। भारी प्राकृतिक आपदा झेल चुके हमारे चार धाम में से एक, केदारनाथ धाम का कायाकल्प भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति से संपन्न हो चुका है। उत्तराखंड में चार धाम यात्रा नामक परियोजना परवान चढ़ चुकी है और लगभग सभी दुर्गम आस्था केंद्रों पर अब 12 महीने आसानी से पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश और कर्णप्रयाग को रेलवे मार्ग से भी जोड़ा जा रहा है, जो 2025 तक पूरा होगा। कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद मंदिरों के पुनरुद्धार का काम जोरों पर है। श्रीनगर स्थित रघुनाथ मंदिर हो या माता हिंगलाज का मंदिर, सभी प्रमुख मंदिरों के स्वरूप को नवजीवन दिया जा रहा है। पिछले साल भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी का पुनरुद्धार नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति से ही संभव हुआ। क्या किसी ने कभी कल्पना भी की थी कि काशी की संकरी गलियों में विश्वनाथ भागवान के लिए कॉरीडोर बन सकता है। क्या डायरेक्ट गंगा नदी से काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर प्रवेश किया जा सकता है। जी नहीं, यह संभव नहीं था, लेकिन असंभव शब्द शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिक्शनरी में नहीं है। आज काशी अपने नये रंग रूप में अपनी आध्यात्मिक पहचान के साथ चमचमा रही है। काशी न्यारी हो गयी है। जहां दुनिया भर के लोग आकर वास्तविक भारत और उसकी आध्यात्मिक राजधानी को निहार रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जितना ध्यान देश मंदिरों के पुनरुद्धार पर दिया है, उतना ही ध्यान विदेशों में भी जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़े पुराने मंदिरों की योजनाओं पर भी लगाया है। इस दिशा में सबसे पहले बहरीन स्थित 200 साल पुराने श्रीनाथ जी के मंदिर के लिए 4.2 मिलियन डॉलर खर्च किये जाने की योजना है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने अबूधाबी में भी यहां के पहले मंदिर की 2018 में आधारशिला रखी। अभी पिछले सप्ताह संयुक्त अरब अमीरात में विशाल हिंदू मंदिर का लोकार्पण आधिकारिक रूप से वहां की सरकार ने किया। जबेल अली अमीरात के कॉरिडोर आॅफ चॉलरेस में स्थित इस विशाल मंदिर के बनने से वहां के हिंदुओं का दशकों पुराना सपना पूरा हुआ है, जिसके पीछे भारत की मोदी सरकार का अथक प्रयास है। बीते रविवार को गुजरात के मेहसाणा जिले में चालुक्य शासन में बनाये गये मोढेरा के सूर्य मंदिर का भी पुनरुद्धार हुआ।
    वहां 3डी प्रोजेक्शन लाइट एंड साउंड शो के उद्घाटन के दौरान देश के प्रधानमंत्री मोदी जब उसके अतीत का स्मरण कर रहे थे, तब उन्होंने कहा कि इस स्थान पर अनगिनत आक्रमण किये गये। मोढेरा अपने प्राचीन चरित्र को बनाये रखते हुए आधुनिकता के साथ बढ़ रहा है। वह देश की जनता को यह संदेश दे रहे थे कि भारत के सभी प्राचीन आस्था स्थल अपनी गौरवशाली पहचान के साथ आधुनिक सुविधाओं से लैस हो सकते हैं। एक साल पहले ही सोमनाथ के मंदिर के पुनरुद्धार और अन्य सुविधाओं के लिए पीएम ने कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया था। आने वाले समय में सोमनाथ भी आधुनिक सुविधाओं से लैस दिखेगा। विगत जून महीने में पुणे के देहू में नये तुकाराम महाराज मंदिर और गुजरात के पावागढ़ मंदिर के ऊपर बने कालिका माता मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित है। इस 11वीं शताब्दी के मंदिर के शिखर को लगभग 500 साल पहले सुल्तान महमूद बेगड़ा ने नष्ट कर दिया था। मंदिर के पुनर्विकास के हिस्से के रूप में इसे अब बहाल कर दिया गया है। पावागढ़ में मां कालिका को नमन करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हमारे श्रद्धास्थल हर भारतीय के प्रेरणा केंद्र हैं और ये स्थल आस्था के साथ-साथ नयी संभावनाओं का स्रोत भी बन रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस बात के बड़े गहरे अर्थ हैं, क्योंकि यह स्वाभाविक है कि जिन मंदिरों या आस्था केंद्रों का पुनरुद्धार हो रहा है, वहां केवल मंदिर परिसर का ही कायाकल्प नहीं होता, बल्कि उसके साथ उस क्षेत्र का समग्र विकास भी होता है। हाल ही में नवरात्र में शक्तिपीठ अंबाजी मंदिर में उन्होंने दर्शन-पूजन करते हुए कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया। देश ने विगत आठ साल में अनेक ऐसे अवसर देखे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान से पहले मोदी ने माता वैष्णो देवी के दर्शन किये, तो चुनाव समाप्त होते ही एक दिन के लिए केदारनाथ स्थित गुफा में ध्यान किया। यह नरेंद्र मोदी की ही प्रेरणा है कि राज्य सरकारों ने भी देवालयों पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है। उत्तरप्रदेश का मथुरा, विंध्याचल, प्रयागराज हो या मध्यप्रदेश का उज्जैन हो, अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जहां आधुनिक सुविधाओं से लैस विकास कार्य हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने उज्जैन की पावन धरा पर महाकाल लोक के नये कॉरिडोर और अन्य लोकमुखी सुविधाओं का उद्घाटन भी इस कड़ी में एक ऐतिहासिक पड़ाव है। भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, धार्मिक पुनरुत्थान का नया अध्याय प्रारंभ होगा। महाकाल की नगरी विश्व भर में विशेष धार्मिक महत्व रखती है, जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं। पीएम मोदी ने उज्जैन में 11 अक्टूबर 2022 को अति भव्य महाकाल लोक का लोकार्पण किया। पीएम बोले कि उज्जैन के क्षण-क्षण में पल-पल में इतिहास सिमटा हुआ है। कण-कण में अध्यात्म समाया हुआ है। कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा संचारित हो रही है। यहां कालचक्र का 84 कल्पों का प्रतिनिधित्व करते 84 शिवलिंग हैं। यहां चार महावीर हैं। छह विनायक हैं। आठ भैरव हैं। अष्टमातृकाएं हैं। नवग्रह हैं। दस विष्णु हैं। ग्यारह रुद्र हैं। बारह आदित्य हैं। 24 देवियां हैं। 88 तीर्थ हैं। महाकाल लोक से नरेंद्र मोदी कहते हैं कि आज जब हम उत्तर से दक्षिण तक, पूर्व से पश्चिम तक हमारे प्राचीन मंदिरों को देखते हैं तो उनका वास्तु, विशालता हमें आश्चर्य से भर देता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या एलोरा का कैलाश मंदिर… गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर भी है, जहां सूर्य की किरणें सीधे गर्भ गृह में प्रवेश करती है। तंजावुर में ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम में वरदराजा मंदिर, बेलुर का चन्नकेशवा मंदिर, मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, तेलंगाना का रामपप्पा मंदिर, श्रीनगर में शंकराचार्य मंदिर… यह मंदिर बेजोड़ है। न भूतो न भविष्यति के उदाहरण है। जब हम देखते हैं तो सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि उस युग में, उस दौर में किस तकनीक से यह मंदिर बने होंगे। हमारे प्रश्नों के उत्तर भले ही न मिलते हों, पर इसके आध्यात्मिक संदेश हमें आज भी सुनाई देते हैं। इन सबके केंद्र में राजाधिराज, कालाधिराज महाकाल विराजमान है। यानी एक तरह से हमारे पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा को हमारे ऋषियों ने उज्जैन में प्रत्येक स्वरूप में स्थापित किया है। इसलिए उज्जैन ने हजारों वर्षों तक भारत की संपन्नता और समृद्धि का, ज्ञान और गरिमा का, सभ्यता और साहित्य का नेतृत्व किया है। इस नगरी का वास्तु कैसा था, वैभव कैसा था, शिल्प कैसा था, सौंदर्य कैसा था, इसके दर्शन हमें महाकवि कालिदास के मेघदूतम में होते हैं।
    देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में उज्जैन का महाकाल मंदिर अकेला दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना है। कई बार मंदिर को ध्वस्त करने की आक्रांताओं ने कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे। करोड़ों भारतीयों की आस्था आक्रमणकारियों पर भारी पड़ी। नि:संदेह ऐसे सभी क्षेत्रों में अध्यात्म-संस्कृति का नया सवेरा हुआ है, तो विकास की अनेकों धाराएं भी प्रवाहित हुई हैं। रोजगार सृजन का भी मार्ग प्रशस्त हुआ है। पर्यटन से राजस्व में भी वृद्धि होगी। देश की अर्थव्यवस्था को भी इससे नयी उड़ान मिलेगी। कहते हैं कि जो देश मूल सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को सहेजता है, वही देश विश्व गुरु की राह पर चलता है। भारत इस राह पर चल चुका है। यह कार्य नरेंद्र मोदी के महज आठ साल के कार्यकाल में हो पाया है। समझा जा सकता है मोदी है तो मुमकिन है यूं ही नहीं कहा जाता।
    भारतीय संस्कृति का आधार-आदर्श आध्यात्मिकता है। यही वह धुरी है, जिससे भारत में व्यक्तिगत जीवन, सामाजिक जीवन, राष्ट्रीय जीवन और आर्थिक जीवन के मध्य सदियों से सामंजस्य रहा है।
    देश के ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों की सांस्कृतिक विरासत पर नरेंद्र मोदी की सनातन भक्ति से विगत 70 साल से जमी धूल हट रही है। इस भक्ति की शक्ति की जागृति से भारत की सांस्कृतिक अस्मिता का पुनर्जागरण संभव हो रहा है। विश्व कल्याण में आध्यात्मिक अभ्युदय का नया दौर शुरू हुआ है। इस दौर का जब भी इतिहास लिखा जायेगा, तब नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के आध्यात्मिक पुनरुत्थान का योगदान स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा।

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