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    Home»विशेष»झारखंड ने खोया अपना सबसे बड़ा दोस्त
    विशेष

    झारखंड ने खोया अपना सबसे बड़ा दोस्त

    shivam kumarBy shivam kumarOctober 11, 2024No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    जमशेदपुर को अपना दूसरा घर बताते थे रतन टाटा
    हमेशा करते थे झारखंड और यहां के लोगों की चर्चा

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    देश के मशहूर उद्योगपति रतन नवल टाटा अब इस दुनिया में नहीं हैं। वैसे तो वह पूरे देश के थे, लेकिन झारखंड से उनका अलग किस्म का रिश्ता था। टाटा समूह के मुख्यालय, यानी जमशेदपुर को अपना दूसरा घर बतानेवाले रतन टाटा ने उद्योग जगत में अपने करियर की शुरूआत अपने परदादा के नाम पर स्थापित इसी शहर से की थी। इसलिए जमशेदपुर से उन्हें खास लगाव था। रतन टाटा ने झारखंड और यहां के लोगों की चर्चा अपने कई संबोधनों और लेखों में की है। वह जब भी जमशेदपुर आते या यहां का कोई व्यक्ति उनसे कहीं भी मिलता, वह झारखंड के बारे में जरूर बात करते थे। रतन टाटा 2021 में आखिरी बार जमशेदपुर आये थे और उन्होंने शहरवासियों को सर दोराबजी पार्क की सौगात दी थी। रतन टाटा ने रांची में कैंसर अस्पताल की नींव रखी थी और अपने जीवन के अंतिम दिन तक वह इसकी स्थापना से जुड़ी जानकारी लेते रहे थे। झारखंड के लोक जीवन, यहां की आबोहवा और यहां की संस्कृति से उन्हें खासा लगाव था, इसलिए रतन टाटा हर जनजातीय त्योहार पर लोगों को बधाई संदेश भेजते थे। जमशेदपुर के लोग उनको कितना चाहते थे, इसका अंदाजा इसी बात से मिल जाता है कि बुधवार की रात जैसे ही उनके निधन की सूचना आयी, दुर्गा पूजा का उल्लास गम में बदल गया। जमशेदपुर ही नहीं, पूरा झारखंड अपने इस सच्चे दोस्त के निधन से शोक में डूबा हुआ है। रतन टाटा की शख्सियत क्या थी, यह उनसे जुड़ी कुछ कहानियों और झारखंड के बारे में उनकी कुछ टिप्पणियों के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    आज से 13 साल पहले की बात है। तब टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में रतन टाटा काम कर रहे थे। वह रांची आये और मीडिया से बातचीत में कहा, झारखंड से टाटा समूह का एक सौ साल से भी पुराना रिश्ता रहा है। यहां आकर मैं बेहद खुश हूं। हम झारखंड के पार्टनर इन प्रोग्रेस (विकास में भागीदार) हैं और रहेंगे भी। हम चाहते हैं कि यहां क्वालिटी आॅफ लाइफ इंप्रूव हो। टाटा इसमें साथ देगा। हमारा इरादा भी ऐसा ही है। राज्य में नॉलेज सिटी का प्रोजेक्ट बहुत अच्छा और जेनुइन है। हमारा समूह इसमें भी हरसंभव सहयोग करेगा। रतन टाटा के ये कुछ ही शब्द झारखंड से उनके दिली लगाव और जज्बातों को बयां कर देते हैं।

    टाटा समूह से झारखंड का संबंध बेहद खास है और रतन टाटा इसे बखूबी जानते थे। इसलिए जमशेदपुर और झारखंड हमेशा उनके दिल में रहता था। उनसे मिलनेवाले लोगों ने कई बार कहा है कि दुनिया के किसी भी कोने में यदि उनसे कोई झारखंडी मिलता था, तो रतन टाटा उससे बेहद गर्मजोशी से मिलते थे और झारखंड के बारे में बात करते थे। एक बार उन्होंने कहा था कि टाटा समूह की जड़ें झारखंड में ही हैं। इसलिए वह इन जड़ों को और मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं।

    निधन की सूचना मिलते ही शोक में डूबा झारखंड
    रतन टाटा के निधन से पूरा देश शोकमग्न है। खास कर झारखंड और जमशेदपुर में दुर्गापूजा का उल्लास भी फीका पड़ गया है। बुधवार की रात जैसे ही रतन टाटा के निधन की सूचना आयी, जमशेदपुर में दुर्गा पूजा को लेकर उत्साहित बाजार में अचानक शांति छा गयी। पूजा पंडालों में लाउड स्पीकर बंद कर दिये गये। त्योहार के जश्न में डूबा शहर अचानक शोक मनाने लगा। ऐसा लग रहा था, मानो जमशेदपुर के हर नागरिक का कोई अपना चला गया हो। लोगों ने इस खबर को जाना, वे जहां थे, वहीं थम गये।

    जमशेदपुर से रतन टाटा का था गहरा रिश्ता
    रतन टाटा बतौर चेयरमैन 26 बार जमशेदपुर आये थे। उम्र बढ़ने के बाद भी वह जमशेदपुर आते रहते थे। अंतिम बार वह कोरोना के दौरान 2021 में जमशेदपुर पहुंचे थे। हर साल 3 मार्च को संस्थापक दिवस पर होने वाले कार्यक्रम में उनकी कोशिश होती थी कि वह पहुंचें। रतन टाटा के करियर की शुरूआत भी जमशेदपुर मोटर्स से हुई थी। टाटा समूह के कर्मचारियों के बीच भी रतन टाटा की बेहद लोकप्रियता थी। चेयरमैन होने के बावजूद वह बेहद सरल स्वभाव वाले शख्स थे, इसलिए कर्मचारी उन्हें कंपनी का अधिकारी नहीं, बल्कि अपने बीच का साथी मानते थे।

    रतन टाटा ने कल्याणकारी कार्यक्रमों को नया आयाम दिया
    वैसे तो टाटा समूह की सोशल वेलफेयर स्कीम इतनी शानदार है कि न तो उनके समूह के कर्मचारियों को कभी कोई परेशानी उठानी पड़ती है, न टाटा समूह देश के प्रति अपनी किसी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करता है। आज से तीन दशक पहले भी खदानों की मिट्टी ढोने के लिए टाटा समूह क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करता था। जिन ट्रकों से मिट्टी ढोयी जाती, उनमें ड्राइवर का केबिन एसी रहता था, ताकि ड्राइवर गर्मी से बेहाल न हो। उन ट्रकों की कीमत 50 लाख से ऊपर की थी। रतन टाटा ने ही यह व्यवस्था लागू की कि अगर कोई कर्मचारी अपंग हो जाता है, तो टाटा के अस्पतालों में उसका मुफ्त इलाज होगा और उसका पूरा वेतन उसके परिवार को मिलता रहेगा। उन्होंने कंपनी क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों के परिवारों का इलाज भी उन्हीं अस्पतालों में मुफ्त करने की व्यवस्था बनायी।

    वैसे तो टाटा समूह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने से कभी नहीं कतराया, लेकिन रतन टाटा ने इस समूह को लोक कल्याणकारी बनाने के लिए कई प्रयास किये। यही कारण है कि टाटा समूह का हर कर्मचारी कंपनी को अपना समझता है। उसे कभी नहीं लगता है कि वह कहीं नौकरी कर रहा है। रतन टाटा ने मार्च 1990 में टाटा समूह (टाटा संस) की कमान अपने हाथों में ली थी और दिसंबर 2012 तक वह इसके चेयरमैन रहे। लगभग 32 वर्षों में उन्होंने टाटा के डूबते जा रहे जहाज को फिर से नयी ऊंचाई दी। रतन टाटा कहते थे, यदि आपको लंबी दूरी तक चलना है, तो अकेले और तेज चलिए, लेकिन यदि आपको लंबे समय तक चलना है, तो फिर समूह में सभी को साथ लेकर चलिए।

    रतन टाटा के नायाब फैसले
    रतन टाटा अपने फैसलों के लिए चर्चित थे। वह कहते थे, मैं सही फैसले लेने में विश्वास नहीं करता, बल्कि मैं पहले फैसला करता हूं, फिर उसे सही साबित करने के लिए काम करता हूं। इसलिए बतौर चेयरमैन उन्होंने कुछ ऐसे नायाब औद्योगिक फैसले लिये, जिनकी मिसालें आज भी दी जाती हैं। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध जगुआर कंपनी को 2008 में खरीद कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। उस समय सबको लग रहा था कि जगुआर में दांव लगा कर टाटा ने अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मार ली। यह कंपनी बुरी तरह घाटे में चल रही थी। ऐसे में रतन टाटा ने जगुआर लैंड रोवर को खरीद लिया। आज यह कंपनी विश्व की सिरमौर है और उसको फिर से पहले जैसी प्रतिष्ठा मिल गयी। इसके पहले सन 2000 में टाटा संस ने टेटली (ब्रिटिश चाय कंपनी) को खरीदा था और 2007 में कोरस (यूरोप की स्टील कंपनी) को। ये सब रतन टाटा की दूर-दृष्टि के चलते ही संभव हुआ। उनकी कोई कंपनी घाटे में नहीं गयी। टिस्को और टेल्को टाटा संस की दो बड़ी कंपनियां हैं। पूरा टाटा समूह इन्हीं के बूते टिका है। टिस्को के जरिये स्टील के क्षेत्र में टाटा बादशाह हैं, तो टेल्को, यानी टाटा मोटर्स के माध्यम से आॅटोमोबाइल के क्षेत्र में। रतन टाटा ने इंडिका से ले कर नैनो तक कई कार लांच की, जिनका मकसद था देश के मिडिल क्लास और गरीबों को सस्ती कीमत पर कार उपलब्ध कराना।

    रतन टाटा ने झारखंड और इस देश को इतना कुछ दिया है, जिसका आकलन भी मुश्किल है। इसलिए उनका सूत्रवाक्य ‘हम इस्पात भी बनाते हैं’ (वी आल्सो मेक स्टील) उनके विजन का वर्णन करने के लिए पर्याप्त है। ऐसी महान आत्मा को आजाद सिपाही परिवार की तरफ से श्रद्धांजलि।

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    shivam kumar

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