सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास पूरब हैं तो सरयू राय पश्चिम। दोनों सियासत के दो छोर पर खड़े रहे हैं, लेकिन हालात कुछ ऐसे पैदा हुए हैं कि दोनों इस बार आमने-सामने हो गये हैं। जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ते रहे सरयू राय का टिकट भाजपा ने इस बार ऐसा लटकाया कि उनका सब्र छलक उठा। उन्होंने न सिर्फ मंत्री पद त्याग दिया, बल्कि विधायकी से भी इस्तीफा दे दिया। हालांकि वे भाजपा में बने हुए हैं। जमशेदपुर पश्चिमी से अपना टिकट कटने की प्रमुख वजह वे रघुवर दास को मानते हैं। यही कारण है कि उन्होंने रघुवर दास से दो-दो हाथ करने की ठान ली है। जमशेदपुर पश्चिमी का अपना क्षेत्र छोड़कर उन्होंने जमशेदपुर पूर्वी से नामांकन दाखिल भी कर दिया है। मैदान में उतरते ही वह रघुवर दास के खिलाफ जिस तरह मोर्चा खोल रहे हैं, उससे यह साफ हो गया है कि अब रघुवर दास भी चुप नहीं बैठेंगे। हालांकि उन्होंने इस पूरे प्रकरण में अभी तक खुलकर कुछ नहीं कहा है। पर रघुवर को जाननेवाले यह अच्छी तरह जानते हैं कि वे जिद कर लेने पर किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। सरयू राय की खासियत ये है कि वे अपनी शर्तों पर राजनीति करते हैं और इसी वजह से वह बिहार-झारखंड में कई दिग्गजों के खिलाफ अभियान चला चुके हैं। लालू प्रसाद यादव जैसे सियासी दिग्गज को भी उन्होंने परेशानी में डाला था। बहरहाल, इस बार एक ही खेमे के दो योद्धाओं के बीच छिड़ी जंग की आंच में हाथ सेंकने को कोई मौका विपक्ष अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता। यही कारण है कि झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन इस मुद्दे को हवा देने में जुट गये हैं। इस पूरे मामले में भाजपा की सहयोगी आजसू के सुप्रीमो सुदेश महतो भी रुचि ले रहे हैं। हालांकि उन्होंने खुल कर अब तक कुछ नहीं कहा है। झामुमो ने कहा है कि सभी दलों को सरयू राय का समर्थन करना चाहिए, वहीं आजसू ने बयान दिया है कि सरयू राय गंभीर नेता हैं और सदन की गंभीरता के लिए वह जरूरी हैं।
क्यों आयी भाजपा के दो दिग्गजों में जंग की नौबत
मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनकी सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय में जंग की कहानी की पृष्ठभूमि समझने के लिए अतीत में लौटना होगा। झारखंड में रघुवर दास के नेतृत्व में जब एनडीए की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, तो खाद्य आपूर्ति मंत्री से बेहतर पोर्टफोलियो के आस लगाये सरयू राय को मन मसोस कर रह जाना पड़ा। क्योंकि सरकार में रघुवर दास निर्णायक स्थिति में थे और मंत्रियों के बीच विभागों के बंटवारे में उनकी ही चली। सरयू राय स्वभाव से ही अक्खड़ रहे हैं। मंत्रिमंडल गठन के बाद से ही रघुवर दास से वह नाराज थे और इस नाराजगी के कारण रघुवर दास के फैसलों पर वे अकसर सवाल उठाते रहे। कैबिनेट की बैठक में जब रघुवर सरकार ने राज्य में सरकार के शराब बेचने के प्रस्ताव को मंजूरी दी तो सरयू राय ने इसका खुलकर विरोध किया। उन्होंने यह भी कहा कि पारा शिक्षकों को नौ हजार और शराब बेचनेवाले कर्मियों को पच्चीस हजार, यह कैसे न्यायसंगत है। इसके अलावा जब प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने घर-घर रघुवर अभियान चलाये जाने को मंजूरी दी, तो उन्होंने इसका विरोध करते हुए घर-घर कमल अभियान चलाये जाने की वकालत की। सरयू राय ने झारखंड की मुख्य सचिव रहीं राजबाला वर्मा को भी वे लगातार निशाने पर लेते रहे। रघुवर दास ने सरयू राय के इन बयानों पर खुलकर तो कुछ नहीं कहा, पर अंदर से खफा तो वह हो ही गये थे। इसके बाद राज्य में जब टिकट बंटवारे की बारी आयी तो उसमें चौथी सूची में भी सरयू राय का नाम नहीं था। हालांकि राजनीति के जानकार पहले ही यह अंदाजा लगा चुके थे कि जिस तरह से सरयू राय अपनी ही सरकार के फैसलों के मुखर आलोचक रहे हैं, इसके बाद उन्हें टिकट मिलना लगभग संदिग्ध ही हो गया था। फाइनली जब उन्हें टिकट नहीं मिला और भाजपा जिलाध्यक्ष दिनेश कुमार ने जमशेदपुर पश्चिम से देवेंद्र सिंह को पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर दिया तो सरयू राय के सब्र का पैमाना छलक गया। इसके बाद रघुवर के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का उन्होंने एलान कर दिया। उन्होंने कहा कि जमशेदपुर पूर्वी से भय, भ्रष्टाचार और मालिकाना हक को लेकर जनता को ठगने वालों के खिलाफ लड़ूंगा। मैं चुप बैठनेवालों में से नहीं हूं। भ्रष्टाचार के कई मामलों के सबूत मेरे आईपैड में हैं। अभी तो पांच प्रतिशत ही उजागर किया है। सरयू राय के इस रुख के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग अब उनके खिलाफ मुखर हो चुका है। मुख्यमंत्री के नामांकन पर्चा दाखिल करते समय यह वर्ग बड़ी संख्या में वहां उपस्थित था। आक्रोशित भी था। वह वर्ग सरयू राय के खिलाफ भी आरपार की लड़ाई लड़ने को तैयार है।
दोनों के स्टैंड में अंतर है
रघुवर दास और सरयू राय की लड़ाई का कारण चाहे जो रहा हो और उसके परिणाम चाहे जो निकलें पर दोनों के स्टैंड पर गौर करें, तो यह साफ दिखता है कि रघुवर दास पार्टी लाइन से कभी बाहर नहीं गये और सरयू राय पार्टी लाइन से हमेशा बाहर जाते दिखे, जबकि सरयू ये अच्छी तरह जानते हैं कि भाजपा एक कैडर बेस्ड पार्टी है। उन्होंने पार्टी लाइन से बाहर निकल सरकार में रहकर सरकार के फैसलों पर सवाल उठाया। वहीं रघुवर दास राज्य हो या केंद्रीय नेतृत्व कभी भी पार्टी लाइन से बाहर नहीं गये। सरयू राय पार्टी लाइन से बाहर जाने के अपने फैसले को जस्टिफाई कर सकते हैं, पर यह सच है कि रघुवर ने मुख्यमंत्री रहते कभी पार्टी लाइन क्रॉस नहीं किया। यही कारण है कि पार्टी लाइन से अलग जाने पर अब सरयू राय के सामने पार्टी में अलग-थलग पड़ जाने का खतरा पैदा हो गया है।
जंग का नतीजा क्या होगा
यह तो अब लगभग तय हो गया है कि दोनों नेताओं के बीच घमासान रोकने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने कोई कदम नहीं उठाया, तो दोनों के बीच जंग होकर रहेगी। झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि रघुवर और सरयू की जंग में जमशेदपुर पूर्वी सीट राज्य की सबसे प्रतिष्ठामूलक सीट बन चुकी है। इस लड़ाई से दोनों के राजनीतिक कैरियर पर भी असर पड़ेगा। लड़ाई का जो भी परिणाम आयेगा, भाजपा के लिहाज से वह सकारात्मक नहीं रहेगा। जाहिर है इस लड़ाई में जो मुद्दे सरयू राय उठायेंगे, उनकी काट ढूहर हाल में रघुवर दास और सत्तारूढ़ भाजपा के नेता ढूंढ़ना चाहेंगे। विपक्ष इस पूरे प्रकरण में सरयू राय के साथ जाकर भाजापा पर प्रहार का मौका तलाशेगा। कहते हैं जब घर फूटता है, तो गंवार लूटता है। रघुवर और सरयू की जंग में दोनों के विरोधी अपनी तलवार भाजना चाहेंगे। अब देखना यह है कि इस राजनीतिक जंग का बहाव कितनी दूर तलक जाता है।
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