रांची: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार देशवासियों से लोन लेकर स्वरोजगार करने की अपील कर रहे हैं, लेकिन माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की ज्यादती के चलते लोग खुद का काम-धंधा शुरू करने के नाम से ही घबरा रहे हैं। झारखंड में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने लोन लेने वालों के साथ ऐसा सलूक किया है, जिसे सुनकर कोई भी सिहर जाये। आज के जमाने में भी ये कंपनियां जिस प्रकार अपना कर्ज वसूल रही हैं, वह महाजनी कुप्रथा की याद दिलाती है। रांची में ऐसे कई परिवार हैं, जो माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के सब्जबाग और आसान ऋण के चक्कर में पिस रहे हैं। सिर्फ हटिया क्षेत्र में ही 400 से ज्यादा महिलाएं हैं, जो न सिर्फ माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के दिखाये दिवास्वप्न में फंसी हैं, बल्कि कई तो घर बार भी बेच चुकी हैं। माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से प्रताड़ित महिलाओंं में अपना दर्द सरकार तक पहुंचाने तक की ताकत नहीं बची है। महिला समाजसेवी सतरूपा पांडेय ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर गरीब महिलाओं को माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के मकड़जाल से छुड़ाने की गुहार लगायी है।
इतना खून भी नहीं कि बेच कर चुका पायें कर्ज
इतना ही नहीं, 30 हजार के ऋण में इंश्योरेंस और प्रोसेसिंग फीस के नाम पर हजारों रुपये पहले ही काट लिये जाते हैं। कर्ज वसूली के नाम पर जोर जबरदस्ती ऐसी कि कई महिलाएं खून बेचने के लिए अस्पताल तक पहुंच गयीं, लेकिन गरीबी की मार ऐसी कि शरीर में खून होता, तो ये गरीब कहां होते, सो डॉक्टरों ने भी खून लेने से इनकार कर दिया। ऐसी ही एक महिला बेबी देवी ने कहा कि पैसे के लिए खून बेचने अस्पताल गयी थी, पर शरीर में खून कम है, कह कर डॉक्टर ने बैरंग लौटा दिया।
20 लाख का मकान 12 लाख में बेचना पड़ा’
कर्जदार रीता देवी कहती हैं कि जरूरत पर इनसे कर्ज क्या लिया, जिंदगी बर्बाद हो गयी। इसके कारण 20 लाख रुपये के मकान को मात्र 12 लाख रुपये में बेचना पड़ा। एक अन्य महिला ने बताया कि बच्चों के एडमिशन के लिए लोन लिया था, पर चुका नहीं पायी। अब हाल यह है कि लोन चुकाने के चक्कर में स्कूल की फीस तक जमा नहीं कर पा रही।