Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Thursday, May 15
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»हेमंत सोरेन सरकार के तीन साल : क्या खोया, क्या पाया झारखंड ने
    Breaking News

    हेमंत सोरेन सरकार के तीन साल : क्या खोया, क्या पाया झारखंड ने

    azad sipahiBy azad sipahiDecember 28, 2022Updated:December 28, 2022No Comments15 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email
    • हेमंत ने स्थापित किया : जो कहते हैं, वह करते हैं

    भारत के संविधान में जब लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल, यानी 1831 दिन तय किया जा रहा था, तब काफी विवाद हुआ था। लेकिन इतना लंबा कार्यकाल तय करने के पीछे उद्देश्य यह था कि यह अवधि किसी भी लोकसभा या विधानसभा और सरकार के मूल्यांकन के लिए पर्याप्त होगी। झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने इन 1831 दिनों में से 1096 दिन, यानी तीन साल का कार्यकाल पूरा कर रहे हैं, तो उनके कामकाज का आधा मूल्यांकन तो हो ही सकता है। झारखंड के सवा तीन करोड़ लोगों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इन तीन सालों में इस राज्य ने क्या हासिल किया है और क्या खोया है। लेकिन ऐसा मूल्यांकन करते समय यह ध्यान में रखना होगा कि इन तीन सालों में से करीब एक साल का समय वैश्विक महामारी कोरोना ने लील लिया और उसका असर अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। बहरहाल, यह कहा जा सकता है कि हेमंत सोरेन सरकार ने पिछले तीन साल के दौरान कई मुकाम हासिल किये हैं, लेकिन चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हेमंत सोरेन के तीन साल के कार्यकाल का मूल्यांकन कर रहे हैं आजाद सिपाही के राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा।

    आज से तीन साल पहले 29 दिसंबर को झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में जब हेमंत सोरेन शपथ ले रहे थे, तो शायद उन्हें भी मालूम नहीं था कि विरासत के रूप में उन्हें कई चुनौतियां मिलने वाली हैं। हेमंत जब सीएम की कुर्सी पर बैठे, तो राज्य का खजाना खाली था। राज्य में विकास का पहिया चल नहीं, घिसट रहा था। व्यवस्था लगभग बेपटरी हो चुकी थी। हेमंत बहुत जल्द समझ गये कि उनके सिर पर कांटों भरा ताज है और झारखंड को पटरी पर लाना वाकई बेहद चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने हिम्मत दिखायी और एक-एक कर इन चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीति बना कर काम शुरू किया। लेकिन वह अपनी रणनीति पर आगे बढ़ते, तभी कोरोना के संकट ने राज्य को अपनी चपेट में ले लिया। इस मुसीबत की घड़ी में एक तरफ लोगों की जान बचाने की चुनौती थी, तो दूसरी तरफ राज्य के गरीब और जरूरतमंदों का पेट भरने की जिम्मेदारी थी।

    इन सभी मोर्चों पर जूझते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चुनौतियों का सफलता से सामना किया और नतीजा सामने है। मुसीबत की इस घड़ी में उन्होंने न केवल खुद को राजनीति का एक माहिर खिलाड़ी साबित किया, बल्कि प्रशासनिक मोर्चे पर भी तमाम भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। कोरोना काल में प्रदेश में गरीबों और जरूरतमंदों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराना, देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश के दूसरे हिस्सों में फंसे झारखंड के लोगों को सकुशल वापस लाना और फिर उन्हें काम देने की बड़ी चुनौती का सामना हेमंत ने पूरी ताकत और हिम्मत से किया।

    यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले तीन साल में झारखंड ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। हेमंत सोरेन की सरकार ने तरीकों से झारखंड की जनता पर फोकस किया। पहला तरीका आदिवासियों-मूलवासियों के हितों में चुनावी वादों को पूरा करना  और दूसरा कई महत्वपूर्ण कल्याणकारी योजनाओं की शुरूआत करना। सरना धर्म कोड से लेकर 1932 के खतियान तक के मुद्दों को हेमंत सोरेन ने जिस तरह से सुलझाया, उससे उनका राजनीतिक कौशल ही दिखा, जबकि कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने और नियोजन नीति और आरक्षण जैसे मुद्दों पर उनकी सरकार का फैसला उनकी प्रशासनिक कुशलता का प्रमाण रहा।

    मीडिया में बेबाकी से रखते हैं बात, सोशल मीडिया पर एक्टिव
    हेमंत सोरेन देश भर में संभवत: अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो नियमित रूप से मीडिया से मुखातिब होते हैं और अपनी बात बेबाकी से दुनिया के सामने रखते हैं। इतना ही नहीं, वह सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से लगातार जुड़े रहते हैं। मुख्यमंत्री बनने से एक सप्ताह पहले हेमंत ने दुनिया को आश्वस्त किया था कि वह बदले की भावना से कोई काम नहीं करेंगे। उन्होंने कहा था कि अब हर फैसला झारखंड के हितों को ध्यान में रख कर किया जायेगा और पिछले तीन साल में उनका एक भी फैसला राज्य हित के खिलाफ नहीं गया है। चाहे कोरोना संकट हो या कोयला खदान की नीलामी, प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष ट्रेन की व्यवस्था करने का सवाल हो या गरीबों के लिए दूसरी कल्याण योजनाएं शुरू करने का मामला, हेमंत ने साबित कर दिया है कि वह सचमुच काम में यकीन रखते हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने शासन काल के पहले छह महीने में राज्य के प्रशासनिक ढांचे में कोई बड़ा फेरबदल नहीं किया। 2014 से 2019 के बीच 18 हजार से अधिक तबादले का गवाह बने झारखंड में पहली बार हुआ कि नयी सरकार के छह महीने के शासन में किसी भी उपायुक्त को नहीं बदला गया। हालांकि बाद में वैसा कायम नहीं रह पाया, जिस पर हेमंत का कहना था कि प्रशासनिक कारणों से ऐसा करना पड़ता है।

    आम लोगों के दरवाजे पर पहुंचा प्रशासन
    हेमंत सोरेन सरकार द्वारा पिछले साल शुरू किये गये ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार’ अभियान लोगों में प्रशंसा पा रहा है। दरअसल, 21 साल में पहली बार लग रहा है कि प्रशासनिक अधिकारी अपने एयर कंडीशंड बंगलों से निकल कर जनता के बीच जा रहे हैं और समस्याओं का समाधान ढूंढ़ रहे हैं। अभियान के दौरान अब तक सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित 63 लाख से अधिक लोगों ने विभिन्न शिविरों में आवेदन सौंपा है और इसमें से 55 लाख का निबटारा किया जा चुका है। झारखंड के लोगों के लिए यह एकदम नया अनुभव है। जिस राज्य को राजनीतिक प्रयोगशाला बना कर यहां केवल कागजी घोड़े दौड़ाये गये और भ्रष्टाचार के घोड़े पर सवार बेलगाम नौकरशाही के बोझ तले कराहने के लिए छोड़ दिया गया था, उस राज्य में यह सब एक सपना ही है।

    महामारी की चुनौतियां
    अपनी सरकार के शुरूआती दिनों में ही हेमंत सोरेन को पता चल गया था कि झारखंड के सामने समस्याएं बड़ी हैं, सरकार के सामने चुनौतियां विकराल हैं और संसाधनों का भयंकर अभाव है। तमाम अवरोधों के बावजूद हेमंत ने आगे कदम बढ़ाया और अपनी मजबूत इच्छाशक्ति, प्रशासनिक कौशल और राजनीतिक सूझबूझ से अवरोधों को एक-एक कर हटाया। उनके सामने कोरोना की चुनौतियां आयीं, तो उन्होंने सबसे पहले खतरे को भांपा और अपनी तैयारी शुरू कर दी। यह हेमंत की प्रशासनिक क्षमता का ही परिणाम था कि कोरोना संकट के दौरान राज्य में एक भी व्यक्ति भूखा नहीं रहा। समाज के अंतिम कतार पर बैठे व्यक्ति के पास तक प्रशासन पहुंचा और उसे पेट भर खाना मिलता रहा। पुलिस थानों के साथ ग्राम पंचायतों और शहरी निकायों तक को इस काम से जोड़ा गया। पूरे राज्य में सात हजार मुख्यमंत्री दीदी कीचेन, करीब डेढ़ हजार मुख्यमंत्री दाल-भात केंद्र और हर थाना एवं ओपी में सामुदायिक भोजनालय के तहत प्रत्येक दिन 50 लाख से ज्यादा जरूरतमंदों को भोजन कराया गया। इसके अलावा प्रतिदिन फूड पैकेट का वितरण भी किया गया। जन वितरण प्रणाली के माध्यम से दो माह का राशन एक साथ सभी कार्डधारियों को दिया गया। जिन जरूरतमंदों के पास राशन कार्ड नहीं था, उन्हें भी खाद्यान्न मुहैया कराया गया। न केवल झारखंड में, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में फंसे झारखंड के लोगों की जरूरतों का भी मुख्यमंत्री ने खासा ध्यान रखा और उनके लिए पर्याप्त व्यवस्था करायी। खाद्यान्न की कालाबाजारी की सूचना मिलने पर प्रखंड और जिला स्तर पर स्क्वायड टीम का गठन किया गया, जिससे गड़बड़ी करनेवालों पर लगाम लगायी जा सकी।

    इतना ही नहीं, देश में प्रवासी मजदूरों को हवाई जहाज और ट्रेन से लाने वाला झारखंड पहला राज्य बना। पांच लाख से अधिक प्रवासियों को वापस लाया गया। लेह, अंडमान निकोबार और पूर्वोत्तर के दूर-दराज के स्थानों से प्रवासियों को हवाई जहाज से लाकर सीएम ने सचमुच इतिहास रच दिया। प्रवासी कामगारों को हेमंत सोरेन सरकार ने केवल वापस ही नहीं लाया, बल्कि उनमें से कई को नयी व्यवस्था के तहत फिर काम करने भेजा।

    ऐसा नहीं था कि हेमंत सोरेन सरकार केवल सामाजिक मोर्चे पर ही काम कर रही थी। स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी उसने शानदार काम किया। सीमित संसाधनों के बावजूद प्रदेश में कोरोना मरीजों की समुचित देखभाल की गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में कोरोना की मृत्यु दर बेहद कम रही। कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण के लिए सोशल पुलिसिंग का तरीका अपनाया गया। लोगों को जागरूक किया गया और इसका सकारात्मक परिणाम सामने आया।

    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घर लौटे प्रवासी मजदूरों को काम देने के लिए विरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना का शुभारंभ किया। इन योजनाओं के माध्यम से 25 करोड़ मानव दिवस का सृजन करने और 20 हजार करोड़ रुपये पारिश्रमिक के रूप में देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। पूरे राज्य में इन योजनाओं पर तेज गति से काम हुआ।

    आर्थिक मोर्चे पर काम तो हुआ, पर चुनौतियां बाकी
    चाणक्य की एक उक्ति राज्य व्यवस्था के लिए दुनिया भर में चर्चित है। यह उक्ति है, कोष मूलो दंड। इसका मतलब किसी भी शासन के लिए सबसे मुख्य उसका खजाना होता है। झारखंड के संदर्भ में इस उक्ति को देखने पर साफ हो जाता है कि प्रदेश के खजाने की हालत बहुत अच्छी नहीं है, हालांकि तीन साल पुरानी हेमंत सोरेन सरकार ने इस मोर्चे पर बहुत काम किया है। इस बात में भी कोई शक नहीं कि इस सरकार ने राज्य हित में कई ऐसे कदम उठाये हैं, जिनका अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ा।
    तीन साल पहले जब हेमंत सोरेन सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब राज्य का खजाना लगभग खाली था और सामान्य कामकाज के लिए भी रकम की व्यवस्था इधर-उधर से की जा रही थी। जीएसटी संग्रह और केंद्रीय करों में राज्य के हिस्से से रोजाना का खर्च तो चल रहा था, लेकिन विकास योजनाओं के लिए पैसे की कमी से राज्य जूझ रहा था। ऐसे में हेमंत सोरेन सरकार की पहली चुनौती फिजूलखर्ची पर रोक लगाने की थी। इस चुनौती का सामना राज्य सरकार ने सफलता से किया।

    झारखंड की बदहाल आर्थिक स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 31 मार्च, 2022 को राज्य पर 86 हजार 234 करोड़ रुपये का कर्ज था। यह जानना भी बेहद दिलचस्प है कि वर्ष 2000 से 2014 तक राज्य ने जितना कर्ज लिया, उससे अधिक कर्ज 2014 से 2019 के बीच लिया गया। जाहिर सी बात है कि हेमंत सोरेन सरकार के पास इससे निबटने का एकमात्र विकल्प खर्चों में कटौती और फिजूलखर्ची पर रोक लगाना था। राज्य सरकार ने यही किया। हेमंत सरकार ने बजट में जहां कुछ विभागों के आवंटन में कटौती की, वहीं लोक कल्याण और विकास से जुड़े विभागों का आवंटन बढ़ाने में कोताही नहीं की। हेमंत सरकार ने अपना इरादा जाहिर कर दिया कि वह चुनौतियों का सामना करने से पीछे नहीं हटेगी। इसके बाद इस सरकार ने आमदनी बढ़ाने पर ध्यान दिया। इसके लिए कुछ ऐसे कड़े फैसले लिये गये, जिनकी आलोचना भी हुई।

    हेमंत सोरेन सरकार ने इन कदमों के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया कि विकास योजनाओं में धन की कमी को बाधा नहीं बनने दिया जाये। इसके लिए उसे केंद्रीय सहायता की सख्त जरूरत थी। राजनीतिक कारणों से केंद्र से अपेक्षित मदद नहीं मिलने के बावजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने लगातार अपनी बात सामने रखी। इसका सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि राज्य को पहली बार कोयला कंपनियों से ढाई सौ करोड़ रुपये मिले। यह रकम बहुत छोटी जरूर है, लेकिन इसका खास महत्व इसलिए है, क्योंकि झारखंड को पहली बार कोल इंडिया ने जमीन के किराये के रूप में कोई भुगतान किया। समय-समय पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड की जरूरतों और इसके अधिकारों के लिए आवाज उठायी। चाहे जीएसटी की क्षतिपूर्ति में कमी का मुद्दा हो या फिर केंद्रीय करों में राज्य के हिस्से में कटौती, हेमंत ने झारखंड के हित में हमेशा बेहद तार्किक ढंग से अपनी बात रखी।

    कई चुनौतियां हैं सामने
    जहां तक चुनौतियों का सवाल है, तो हेमंत सोरेन सरकार के सामने झारखंड पर लगे गरीब राज्य के टैग को हटाना सबसे बड़ी चुनौती है। आंकड़े बताते हैं कि झारखंड की करीब 37 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करती है। झारखंड को गरीबी से पार पाना है। राज्य की प्रति व्यक्ति आमदनी राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आमदनी से लगभग आधी है, जबकि राज्य की विकास दर बीते 22 साल में सात-आठ प्रतिशत रही है। इसका मतलब यह हुआ कि राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने के लिए झारखंड को अपने आर्थिक विकास की गति को तेज करना होगा। भारत की औसत प्रति व्यक्ति आमदनी तक पहुंचने के लिए झारखंड को कम-से-कम 11 प्रतिशत की दर से विकास करना होगा, तभी वह भारत की औसत प्रति व्यक्ति आमदनी के बराबर पहुंचेगा। केवल विकास दर बढ़ाने से ही झारखंड का काम नहीं चल सकता। राज्य में व्याप्त असमानता को भी दूर करना होगा। झारखंड को मानव विकास सूचकांक के हर स्तर पर आगे बढ़ना होगा। चाहे वह बिजली हो, स्वच्छता हो, शिक्षा हो, भूख हो, गरीबी हो या बेरोजगारी हो। इन सभी स्तरों पर जब तक सम्यक रूप से नीति बना कर काम नहीं किया जायेगा, तब तक मुश्किल है कि झारखंड अपने लक्ष्यों को प्राप्त करे। यह भी सच है कि झारखंड जैसे संसाधन-संपन्न राज्य के लिए यह कोई मुश्किल नहीं है कि वह इन सूचकांकों को ठीक नहीं कर सकता। हेमंत सरकार ने पिछले तीन साल में जिस इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है, उससे तो यह बहुत मुश्किल नहीं लगता।

    झारखंड की प्रतिवर्ष खाद्यान्न आवश्यकता लगभग 50 लाख मीट्रिक टन की है, जबकि सबसे अनुकूल हालात में यहां खाद्यान्न उत्पादन 40 लाख मीट्रिक टन ही हो पाता है। ऐसे में इस 10 लाख मीट्रिक टन की खाई को पाट पाना बहुत बड़ी चुनौती है। गरीबी के अलावा बेरोजगारी भी झारखंड की बड़ी समस्या है। बताया जाता है कि झारखंड सर्वाधिक बेरोजगारी वाले राज्यों में शामिल है और सर्वाधिक बेरोजगारी दरों वाले प्रदेश में से एक है। सर्वाधिक बेरोजगारी वाले देश के 11 राज्यों में से झारखंड पांचवें स्थान पर है। यहां प्रत्येक पांच में से एक युवा बेरोजगार है। आंकड़ों के मुताबिक झारखंड के 46 प्रतिशत स्नातक और 49 प्रतिशत युवाओं को रोजगार नहीं मिलता।

    जाहिर है कि हेमंत सरकार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। खासकर तब, जब हम सब चाहे-अनचाहे एक ग्लोबल आर्थिक चेन में आबद्ध होकर चल रहे हैं, तो ऐसे में जन आकांक्षाएं लोकल हो ही सकती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उन्हें भी एक व्यापक फलक पर ले जाना जरूरी है। तभी हमारी संवैधानिक मान्यताओं की वास्तविक लोकतांत्रिक परंपरा की स्थापना हो सकेगी।
    इन चुनौतियों के बरअक्स मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन के तीन साल के कार्यकाल का मूल्यांकन करने पर साफ दिखता है कि उनकी नीयत एकदम साफ है। उन्होंने लीक से हट कर कोई काम नहीं किया है, लेकिन जो भी किया है, उसके सकारात्मक परिणाम की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। हेमंत सोरेन जब मुख्यमंत्री बने थे, तो गरीबों और जरूरतमंदों में एक उम्मीद और आस जगी थी। सभी लोग अपनी उम्मीद लेकर सीएम से मिलते रहे और हेमंत सभी की उम्मीदों पर खरा उतरने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। अभी तक इन तीन सालों के दौरान हजारों जरूरतमंदों को वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, छात्रवृ_ित्त और सामाजिक सुरक्षा की दूसरी योजनाओं का लाभ मिल चुका है। यह झारखंड के लिए सुखद संकेत है। झारखंड की आगे की चुनौतियां हेमंत सोरेन जैसे मुख्यमंत्री के इरादों के आगे बौनी साबित होंगी।

    तीन सालों में हेमंत सोरेन सरकार के काम
    1. 1932 के खतियान का विधेयक विधानसभा से पारित 
    झारखंड में 1932 का खतियान ही स्थानीयता का आधार होगा। विधानसभा से पारित इस विधेयक को सरकार नौवीं अनुसूची में शामिल करना चाहती है। इसके लागू होने के बाद झारखंड में तीसरी और चौथी श्रेणी की नौकरी 1932 का खतियान रखने वाले ही कर सकेंगे।
    2. आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव विधानसभा से पास
    झारखंड में आरक्षित वर्ग के आरक्षण का दायरा 77 प्रतिशत करने का विधेयक भी झारखंड विधानसभा ने पास किया है। इसके तहत अनुसूचित जनजाति को 26 की जगह 28 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 10 की जगह 12 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 14 की जगह 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा। इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का आरक्षण 10 प्रतिशत जारी रहेगा।
    3. नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द 
    हेमंत सोरेन सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द कर दी है। इस फैसले से जनजातीय समाज के लोगों में काफी खुशी है। पिछले 28 साल से अधिसूचना रद्द करने को लेकर स्थानीय जनजातीय लोग आंदोलनरत थे।
    4. निजी क्षेत्र में स्थानीय के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण
    झारखंड के निजी क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया। निजी क्षेत्रों में स्थानीय उम्मीदवारों की नियोजन नियमावली 2022 की गजट अधिसूचना जारी की गयी।
    5. झारखंड आंदोलनकारियों को तोहफा
    हेमंत सरकार ने अलग राज्य निर्माण के लिए लड़ाई लड़ने वाले आंदोलनकारियों को बड़ा तोहफा दिया। अलग झारखंड राज्य की मांग करने वाले शहीद आंदोलनकारियों के आश्रितों को सरकारी नौकरियों में सीधी भर्ती करने के साथ ही शहीद परिवार के एक सदस्य को सात हजार रुपये तक की मासिक पेंशन भी मिलेगी।

    हेमंत सरकार की कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं
    1. राज्यकर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीसी) लागू करना।
    2. यूनिवर्सल पेंशन स्कीम लागू करना।
    3. सोना सोबरन धोती साड़ी योजना लागू।
    4. हरा राशन कार्ड से 20 लाख गरीब लोगों को राशन देना।
    5. सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना लागू।
    6. प्री एवं पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप राशि हुई तीन गुणा।
    7, गरीबों को एक सौ यूनिट मुफ्त बिजली।
    8. सुओ मोटो आॅनलाइन म्यूटेशन प्रक्रिया शुरू।
    9. पेट्रोल पर प्रति लीटर 25 रुपये सब्सिडी।
    10. पुलिसकर्मियों के लिए क्षतिपूर्ति अवकाश व्यवस्था लागू।
    11. 61 हजार से अधिक पारा शिक्षकों और 77 हजार आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं के लिए नियमावली बनायी गयी।
    12. संविदा पर काम कर रहे छह हजार मनरेगा कर्मियों को अनुभव के आधार पर मानदेय की बढ़ोत्तरी।
    13. विधायक फंड की राशि चार करोड़ से बढ़ा कर पांच करोड़ की गयी।
    14. मुख्यमंत्री सूखा राहत योजना के तहत 22 जिलों के 226 सूखाग्रस्त प्रखंडों के 30 लाख किसान परिवारों को प्रति माह साढ़े तीन हजार रुपये की सहायता।
    15. एक सौ किसान पाठशालाओं के निर्माण की स्वीकृति।
    16. मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी उपचार योजना के तहत सहायता राशि पांच लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपये की गयी।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleअमेरिका में बर्फीला तूफान, 4,900 फ्लाइट कैंसिल
    Next Article आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के रोड शो में हादसा, आठ की मौत
    azad sipahi

      Related Posts

      पाकिस्तान का डर्टी बम खोल रहा किराना हिल्स के डर्टी सीक्रेट्स!

      May 15, 2025

      प्रशासन ने अतिक्रमण के खिलाफ चलाया अभियान, आक्रोशित लोगों ने किया सड़क जाम

      May 15, 2025

      बुलेट सवार युवक की सड़क हादसे में मौत

      May 15, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • पाकिस्तान का डर्टी बम खोल रहा किराना हिल्स के डर्टी सीक्रेट्स!
      • शेफर्ड और लिविंगस्टोन की आरसीबी में वापसी, प्लेऑफ से पहले टीम को मिला बूस्ट
      • मणिपुर में केसीएलए उग्रवादी समेत 10 गिरफ्तार
      • जम्मू-कश्मीर के नादेर-त्राल में सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ शुरू
      • लखनऊ बस अग्निकांड में दो बच्चों समेत पांच की मौत, शवों की हुई शिनाख्त
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version