- झारखंड के आम शहरियों की जिंदगी बदल दी एक फैसले ने
झारखंड के लगातार गरम होते राजनीतिक वातावरण के बीच यदि सरकार की तरफ से कोई लोक लुभावन फैसला होता है, तो स्वाभाविक रूप से इसके सियासी नफा-नुकसान की बात की जाने लगती है। ऐसा ही एक फैसला पिछले दिनों हेमंत सोरेन सरकार ने लिया है और कहा जा रहा है कि इस फैसले से झामुमो के लिए एक बड़ा समर्थक वर्ग तैयार हो गया है। हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य के शहरी इलाकों में बनाये गये उन तमाम भवनों को नियमित करने की योजना तैयार की है, जिनका निर्माण बिना नक्शा के किया गया है। इस फैसले से करीब नौ लाख मकानों को लाभ होगा। झारखंड सरकार की यह योजना इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अनियमित ढंग से बनाये गये मकानों को प्रशासनिक कुदृष्टि से मुक्ति मिल जायेगी। झारखंड सरकार की यह योजना समाज के सभी वर्गों के लिए समान रूप से लाभकारी साबित होने वाली है, क्योंकि शहरी इलाके में अपना घर तो आजकल हरेक परिवार का सपना होता है और एक आम शहरी अपने जीवन भर की कमाई लगाकर अपने सपनों का आशियाना बनाता है। पिछले कुछ वर्षों में झारखंड की यह विडंबना रही है कि यहां प्रशासन ने कोई ढंग का निर्माण तो किया नहीं, लेकिन तोड़-फोड़ का नया रिकॉर्ड कायम कर दिया। शहरों में अक्सर अवैध ढंग से बनाये गये मकान को तोड़ने की खबरें सुर्खियां बटोरती रही हैं, लेकिन हेमंत सरकार की नयी योजना अब इस पर रोक लगा देगी। इसके अलावा जिन लोगों के मकान नियमित होंगे, उनका बड़ा हिस्सा झामुमो को सियासी लाभ पहुंचायेगा, इसकी संभावनाएं भी साफ दिख रही हैं। हेमंत सरकार के इस फैसले के सियासी नफा-नुकसान के साथ झारखंड के सामने आसन्न शहरीकरण की चुनौतियों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बात सितंबर महीने 2022 की है। रांची स्मार्ट सिटी के लिए भूमि अधिग्रहण और अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा था। धुर्वा में बन रहे स्मार्ट सिटी के लिए कई घरों को तोड़ा जा रहा था। बारिश के मौसम में भी प्रशासन की क्रूरता साफ दिखाई पड़ रही थी। गरीबों को उनके घरों से बेघर किया जा रहा था। वह खून के आंसू रोने को मजबूर थे। एक तो बरसात और दूसरी तरफ उनसे उनका छत्त छिन जाना। इस अभियान से परेशान लोगों ने भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी से मुलाकात की थी। उन्हें सारी बातों की जानकारी दी गयी। बाबूलाल मरांडी खुद धुर्वा स्थित स्मार्ट सिटी के कार्यस्थल पर पहुंचे थे। उन्होंने काम को रुकवा दिया था। बाबूलाल मरांडी ने इस संबंध में रांची के उपायुक्त से फोन पर बातचीत भी की थी। उन्होंने स्मार्ट सिटी के निर्माण से होने वाले 17 विस्थापित परिवारों के पहले पुनर्वास की मांग की, उसके बाद ही घरों पर बुलडोजर चलाने को कहा। मरांडी ने कहा कि अगर इन परिवारों के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गयी, तो वह खुद उन परिवारों के साथ धरने पर बैठ जायेंगे। यह सिर्फ एक जगह या एक वर्ष के भीतर की बात नहीं है। झारखंड में लोगों को हर साल ऐसी मुसीबतों से गुजरना पड़ा है। बुलडोजर का मुंह गाहे-बगाहे देखना पड़ ही जाता है। उसके सामने उसे असहाय होना पड़ता है। अपनी आंखों के सामने अपने आशियाने को जमींदोज होते देखना पड़ता है। नन्हे बच्चों का रोते-बिलखते देखना पड़ता है। बूढ़ी बीमार मां को खटिया समेत घर से निकाल कर बाहर रखना पड़ता है। घर की औरतों को कई बार मूर्छित होते भी देखा गया है। आंसू की बूंदों में समायी उसके आशियाने की टूटती हुई तस्वीर भी जमीन पर धाराशायी हो जाती है।
अब बात तीन दिन पहले की करते हैं है। कांके रोड के सर्वोदय नगर में रहनेवाले एक परिचित ने फोन कर बताया कि उनके मुहल्ले में जश्न मनाया जा रहा है। कई जगहों पर मिठाइयां बांटी जा रही हैं। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके मुहल्ले के चारों तरफ हाल के वर्षों में बसे मुहल्लों में यह आयोजन हो रहा है, क्योंकि हेमंत सोरेन सरकार ने अनियमित तरीके से बनाये गये सभी मकानों को नियमित करने की योजना तैयार की है। उन्होंने बताया कि ये सभी मकान अनियमित ढंग से बनाये गये और सरकार के फैसले ने उन्हें बड़ी राहत दी है। यह सूचना रांची के अलावा झारखंड के तमाम शहरों के उन इलाकों से लगातार मिल रही है, जहां हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर मकान बनाये गये हैं।
क्या है हेमंत सरकार का फैसला
हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड के शहरों में लगभग नौ लाख अवैध मकानों को वैध करने के लिए नयी योजना बनाने का फैसला किया है। हालांकि पहले भी दो बार यह योजना लागू की गयी थी, लेकिन उसके प्रावधान इतने कठोर और उलझानेवाले थे कि उनका अपेक्षित लाभ नहीं मिला। इसलिए तीसरी बार नये सिरे से यह योजना लाने का फैसला किया गया है। सरकार की प्रस्तावित योजना में काफी रियायत देकर अधिक से अधिक लोगों को फायदा पहुंचाने की तैयारी की जा रही है। इसका फायदा प्रदेश के लगभग 40 शहरों में बिना नक्शा पास कराये मकान बनानेवाले या नक्शे का उल्लंघन कर मकान बना चुके लोगों को होगा। इस योजना का लाभ वैसे लोगों को मिलेगा, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2019 से पहले मकान बनवा लिये थे। पिछली बार जब यह योजना लायी गयी थी, तो उसमें कई खामियां थीं। इस कारण लोगों ने अपने अवैध मकानों को नियमित कराने में रुचि नहीं दिखायी। पहले लायी गयी योजना में तीन मंजिला मकानों तथा पांच हजार वर्गफुट तक के मकानों को नियमित करने का प्रावधान किया गया था। इसके लिए काफी शर्तें रखी गयी थीं। अधिकतर मकान उन शर्तों को पूरा नहीं करते थे या शर्तों को पूरा करने के लिए मकान के ढांचे में काफी बदलाव की जरूरत होती। इस कारण लोगों ने अपने मकान के नियमितिकरण की प्रक्रिया में रुचि नहीं दिखायी। इस बार जो योजना तैयार की जा रही है, उसमें बिना किसी पूर्व शर्त के एक निर्धारित शुल्क के साथ आवेदन करने पर मकान को नियमित किया जायेगा। इसके लिए कोई तोड़-फोड़ नहीं करनी होगी और न कोई जांच होगी।
किसे कहते हैं अवैध मकान
अवैध मकान उसे कहते हैं, जिसे बनाने से पहले उसका नक्शा नहीं पास कराया गया है या नक्शा पास कराने के बावजूद उसका पालन नहीं किया गया है। झारखंड सरकार के पास अभी तक इसका सटीक आंकड़ा नहीं है कि राज्य में अवैध मकानों की कितनी तादाद है। एक अनुमान के अनुसार झारखंड में करीब नौ लाख मकान इस श्रेणी में हैं। इनमें से डेढ़ लाख तो अकेले रांची में हैं। इसके अलावा लगातार उग रही अवैध कॉलोनियों की स्थिति भी गंभीर है।
इस फैसले से क्या लाभ होगा
झारखंड सरकार के इस फैसले का सबसे पहला लाभ यह होगा कि राज्य को अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर होनेवाली प्रशासनिक तोड़-फोड़ से मुक्ति मिल जायेगी। हाल के वर्षों में राज्य के कई शहरों में प्रशासनिक तोड़-फोड़ का विकृत चेहरा कई बार सामने आया है। इसलिए झारखंड विकास की दौड़ में अपने साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के मुकाबले पिछड़ गया। झारखंड का पिछड़ापन केवल आर्थिक या सामाजिक मोर्चे पर ही नहीं रहा, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक मोर्चे पर भी यह राज्य अपेक्षित विकास नहीं कर सका है। खास कर शहरीकरण जैसे गंभीर मुद्दे पर झारखंड में कभी कोई प्रभावी विचार ही नहीं किया गया, जबकि हकीकत यह है कि झारखंड समेत पूरे देश में शहरी विकास की रफ्तार बेहद तेज हो गयी है। झारखंड में शहरीकरण की योजना बनानेवाले अधिकारियों की स्थिति यह है कि उनके पास न कोई विजन है और न योजना। वे बिना किसी मास्टर प्लान के झारखंड के शहरों में तोड़-फोड़ करते रहे हैं, जिससे स्थिति सुधरने की
बजाय बिगड़ती रही है।
ऐसे में राज्य सरकार यदि सभी मकानों को वैध कर देगी, तो फिर उनके मालिकों के सामने अवैध बताकर मकान तोड़ने का खतरा नहीं रहेगा। वास्तव में हेमंत सरकार का यह फैसला राजनीतिक रूप से भी बेहद परिपक्व साबित होने वाला है, क्योंकि जो लोग इस योजना के लाभुक होंगे, वे सरकार के प्रति निश्चित रूप से आभारी होंगे। वैसे भी इस योजना के संभावित लाभुकों में समाज के हर वर्ग के लोग शामिल होंगे। चाहे बड़े व्यवसायी हों या नौकरीपेशा मध्यवर्ग, अगड़े हों या पिछड़े, उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, मकान के प्रति प्रेम सभी को बराबर होता है। रांची के अपर बाजार इलाके की ही बात करें, तो वहां 60 प्रतिशत से अधिक मकान अनियमित हैं और इनके मालिक आम तौर पर झामुमो के समर्थक नहीं हैं। लेकिन इस फैसले के बाद उनके रुख में इस सरकार के प्रति थोड़ी नरमी तो आयेगी। इसलिए हेमंत सोरेन का यह फैसला सियासी नजरिये से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।