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    Home»Breaking News»सिदो-कान्हू, चांद-भैरव के संथाल को किसकी नजर लग गयी
    Breaking News

    सिदो-कान्हू, चांद-भैरव के संथाल को किसकी नजर लग गयी

    azad sipahiBy azad sipahiDecember 21, 2022No Comments13 Mins Read
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    • जिन नायकों ने अपनी बहू-बेटियों की इज्जत, घर-द्वार, क्षेत्र और समुदाय बचाने के लिए लड़ाई लड़ी, आज उनकी ही पीढ़ी संथाल में सुरक्षित नहीं

    संथाल परगना, जिसका नाम सुनते ही आज अपराध, हत्या, बलात्कार और घोटालों से भरे इलाके की तस्वीर उभरती है, जो कभी संथाल विद्रोह या संथाल हूल के लिए जाना जाता था। संथाल के लोगों को शोषण के खिलाफ एकजुट होकर फिरंगियों के अत्याचार के खिलाफ जंग लड़ने के लिए जाना जाता था। संथाल विद्रोह के नायक रहे बाबा तिलका मांझी, सिदो-कान्हू, चांद-भैरव के शौर्य के लिए जाना जाता था। इतना ही नहीं, सनातन संस्कृति में द्वादश ज्योतिर्लिंग में सर्वश्रेष्ठ माना जानेवाला कामना लिंग, बाबा वैद्यनाथ की नगरी भी इसी संथाल परगना में है, जहां शिव और हरि का मिलन होता है और इस तरह यह भारतीय आध्यात्म का केंद्र भी है। लेकिन आज संथाल परगना तमाम किस्म के गलत कार्यों के लिए जाना जाता है। बालू चोरी, पत्थर चोरी, अवैध खनन, साइबर ठगी, बलात्कार, हत्या, लूट और तस्करी के लिए संथाल परगना दुनिया भर में जाना जा रहा है। कभी संथाल के लोगों ने अपनी बहू-बेटियों की इज्जत, जमीन और घर-द्वार बचाने के लिए संघर्ष किया था, लड़ाई लड़ी थी, जिस संथाल को सूदखोरों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने और जमींदारों के आतंक को कम करने के लिए धनकटनी आंदोलन का दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने बिगूल फूंका था, आज उसी संथाल परगना में राज्य की संपदा सुरक्षित नहीं है, आदिवासी बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। आज मुस्लिम युवकों द्वारा उनकी निर्मम हत्या की जा रही है। उन्हें प्यार के जाल में फांस, उनसे शादी कर उनकी जमीनों पर, उनकी संपत्ति पर कब्जा किया जा रहा है। उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। नहीं करने पर उनकी हत्या कर दी जा रही है। आदिवासी महिलाओं को माध्यम बना सत्ता में जगह बनायी जा रही है। आज संथाल में लव जिहाद, धर्मांतरण, बांग्लादेशी घुसपैठ, डेमोग्राफी में बदलाव चरम पर है। इसके कारण यहां की जनजातियां और उनकी संस्कृति प्रभावित हो रही है। आज कई आदिम जनजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं, इसका एक कारण धर्मांतरण भी है। उनका इस्तेमाल कर हत्या भी है। संथाल भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। उसके माथे पर कलंक लग चुका है। जिस संथाल के शौर्य की कभी बातें हुआ करती थीं, आज वहां एक हजार करोड़ के अवैध खनन घोटाले की बात हो रही है। आज वहां पत्थर और गौ तस्करी की बात हो रही है। आज कोई शाहरुख हुसैन दुमका की बेटी को पेट्रोल छिड़क जिंदा जला कर मार रहा है, तो कोई दिलदार अंसारी आदिम जनजाति से आने वाली रेबिका पहाड़िया का गला रेत शरीर के 50 टुकड़े कर रहा है। अभी रेबिका के शरीर के पूरे टुकड़े मिले भी नहीं थे कि सद्दाम मोबाइल वाले ने एक और पहाड़िया बच्ची को अपनी हवस का शिकार बना डाला। यह क्या हो रहा है संथाल में। लंबे संघर्ष के बाद झारखंड अलग राज्य तो मिल गया, लेकिन लगता है संथाल परगना को फिर से संघर्ष करने की जरूरत है। कभी अंग्रेजों, जमींदारों और सूदखोरों के शोषण के खिलाफ लड़ने वाला संथाल आज किन चुनौतियों से जूझ रहा है, अपनी बहू बेटियों पर हो रहे अत्याचार से क्यों सिसक रहा है इसे बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    संथाल परगना दो शब्दों संथाल, जिसे कुछ लोग संताल एवं सांथाल भी कहते हैं, एक आदिवासी समुदाय है, और परगना जिसका अर्थ प्रांत या राज्य होता है, से मिल कर बना है। संथाल भारत की प्राचीन जनजातियों में से एक है। प्राचीन समय में यह जनजाति बिहार और पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में निवास करती थी। यह जनजाति पूरी तरह कृषि पर आश्रित थी। ये लोग जंगलों को काट कर, खेती योग्य भूमि बना कर, उस पर खेती किया करते थे। इनके प्रमुख निवास स्थान कटक, छोटानागपुर, पलामू, हजारीबाग, भागलपुर, पूर्णिया इत्यादि थे।

    ऐसे गरीब होते गये संथाली
    औपनिवेशक काल, जिसे अंग्रेजों का शासन काल कहा जाता है, में संथाल जनजाति का बहुत बड़े भू-भाग पर अधिकार था। संथाल जनजाति के लोग औपनिवेशिक काल के शुरूआती दौर में अपने जीवन को खुशहाली से जी रहे थे। वे प्रकृति पूजक थे। संथाल लोगों की खुशहाली और इनका विस्तृत भू-भाग अंग्रेजों की आंखों में खटकता था। अंग्रेज किसी भी तरीके से उनकी जमीन को हथियाना चाहते थे। उन्हें उजाड़ना चाहते थे। इसी कारण अंग्रेजों ने संथालों की भूमि को जमीदारों को देना शुरू कर दिया और इस भूमि का वास्तविक अधिकार खुद के पास रखा। उसके बाद संथाल लोगों के साथ खेल खेला गया। जमींदार संथाल कृषकों से इस भूमि पर कृषि कराने लगे और बदले में भूमि कर लेने लगे। वास्तव में जमींदार अंग्रेजों और संथालों के बीच की कड़ी थे, जो संथालों से कर लेकर अंग्रेजों तक पहुंचाते थे। धीरे-धीरे संथालों की समृद्धि कम होती चली गयी और वे कर्ज में डूबने लगे। इसके बाद इस भू-भाग पर ऋण देने के लिए सूदखोर-साहूकारों का जमावड़ा लग गया। अब संथाल लोग साहूकारों से कर्जा लेकर कृषि करते, भूमि कर देते और अपने परिवार को पालते। परिणामस्वरूप संथालों की आर्थिक और सामाजिक दशा दयनीय स्थिति में पहुंच गयी।

    तब चुना विद्रोह का रास्ता
    इसका नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजों, जमीदारों और सूदखोर-साहूकारों के शोषण से परेशान होकर संथालों ने विद्रोह का रास्ता चुना। सन 1855-56 में संथालों ने सरदार धीर सिंह मांझी के नेतृत्व में एक दल बनाया और विद्रोह का बिगुल बजा दिया। यह एशिया का सबसे बड़ा जनांदोलन था, भारत की शुरूआती सबसे बड़ी क्रांति भी। सबसे पहले संथालों ने महाजनों और साहूकारों को निशाना बनाया। उनकी धन संपत्ति को लूटना शुरू किया।

    सिदो-कान्हू-चांद-भैरव और फूलो-झानो
    इस विद्रोह के शुरूआती दौर में चार शक्तिशाली संथाल नेता उभरे। सिदो, कान्हू, चांद और भैरव। ये चारों भाई थे। इनकी दो बहनों फूलो और झानो ने भी कमान संभाली। सिदो और कान्हू ने घोषणा की कि देवता ने उन्हें निर्देश दिया है कि आजादी के लिए हथियार उठा लो। विद्रोहियों ने सिदो को राजा, कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक तथा भैरव को सेनापति घोषित किया। 30 जून 1855 को भोगनाडीह गांव में एक विशाल बैठक हुई। उसमें सिदो, कान्हू, चांद और भैरव समेत लगभग 10 हजार संथाल लोगों ने भाग लिया। इस बैठक में शपथ ली गयी कि आज से संथाल लोग जमींदारो, साहूकारों और अंग्रेजों का शोषण नहीं सहेंगे और इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। इन लोगों ने ब्रिटिश दफ्तरों, संस्थानों, थाना, डाकघरों और अन्य सभी ऐसी संस्थाओं पर हमला करना शुरू कर दिया, जिन्हें वे गैर -जनजातीय प्रतीक के द्योतक मानते थे। भागलपुर और राजमहल के बीच सभी सरकारी सेवाएं ठप कर दी गयीं। संथाल विद्रोह का भयंकर रूप देख कर अंग्रेजी शासन हिल गया। इसके बाद अंग्रेजों ने विद्रोह खत्म करने का हल खोजना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने इस विद्रोह को समाप्त करने के लिए दमनकारी नीति को अपनाया। हथियारों का प्रयोग किया गया। अत्याचार किये गये। इन्हें मारा गया। अंग्रेजी शासन ने विद्रोह को कुचलने के लिए उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाया। मेजर बरो के नेतृत्व में सेना की 10 टुकडियां भेजी गयीं ,लेकिन उन्हें संथालों ने परास्त कर दिया। फिर विद्रोही नेताओं को पकड़ने के लिए 10 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया। सबसे पहले सिदो पकड़े गये। उन्हें 5 दिसंबर, 1855 को फांसी दे दी गयी। चांद और भैरव पुलिस की गोली से मारे गये। अंत में कान्हू भी पकड़े गये और उन्हें 23 फरवरी 1856 को फांसी दे दी गयी। इस प्रकार इस विद्रोह का दमन कर दिया गया। संथाल विद्रोह को क्षेत्रीय तौर पर संथाल- हूल के नाम से जाना जाता है। यह झारखंड के इतिहास में होने वाले सभी जनजातीय आंदोलनों में संभवत: सबसे व्यापक एवं प्रभावशाली विद्रोह था।

    अंग्रेजों को बनाना पड़ा अलग संथाल परगना
    विद्रोह के बाद भी संथाल परगना में विदेशी शासन का प्रतिवाद जारी रहा। शीघ्र ही रेंट के मामले (1860-1861) को लेकर संथाल परगना फिर अशांत हो उठा। इसे लेकर ब्रिटिश अधिकारियों में हड़कंप मच गया। वे संथालों से काफी आतंकित हो गये। इस क्रांति में व्यापक क्षति के बाद मिले सबक को लेकर ब्रिटिश अधिकारियों ने तत्काल कार्रवाई की थी। संथाल की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की थी। संथालों की जायज शिकायतों की विस्तृत विवेचना की गयी। उसके बाद अंग्रेजी सरकार ने संथाल लोगों के लिए पृथक संथाल परगना बना कर शांति स्थापित की। यह निश्चित किया गया कि बंगाल प्रेसिडेंसी में लागू सरकार के एक्ट और रेगुलेशन संथालों पर लागू नहीं होने चाहिए। इसके मुताबिक 1833 को गठित दामिनी इ कोह और इसके आसपास के इलाके में संथाल निवासी थे। बीरभूम और भागलपुर को अलग कर दिया गया और 22 दिसंबर 1855 को पारित अधिनियम 37 के प्रावधानों के तहत इन सभी इलाकों को एकीकृत कर नन रेगुलेशन जिला संथाल परगना बनाया गया। दुमका, देवघर, गोड्डा और राजमहल उप जिले बनाये गये। इस क्षेत्र को निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर यहां बाहरी लोगों के प्रवेश और उनकी गतिविधि को नियंत्रित किया गया, जो कि आदिवासियों की एक पुरानी मांग थी।

    काश्तकारी अधिनियम भी बना
    बाद में सरकार द्वारा संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) पारित किया गया, जिससे जनजातीय भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगायी जा सके। लेकिन समय गुजरा और महाजनों द्वारा संथाल लोगों पर अत्याचार खत्म नहीं हुआ।
    शिबू सोरेन ने बढ़ाया संथाल के संघर्ष को
    संथाल परगना के संघर्ष को शिबू सोरेन ने भी खूब आगे बढ़ाया। उन्होंने महाजनी प्रथा और साहूकारों के खिलाफ धनकटनी आंदोलन चलाया। शिबू सोरेन के पिता सोबरन मांझी की महाजनों ने हत्या करवा दी थी। वे गांधीवादी थे और आदिवासियों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाते थे। हत्या के बाद शिबू सोरेन ने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों से बदला लेने के लिए आंदोलन में कूद पड़े। उन दिनों आदिवासियों खासकर संथालों की जमीन पर महाजन कब्जा कर लेते थे। हड़ियां-दारू पिला कर उनकी जमीन हड़प लेते थे। महाजनों का आतंक इतना था कि कोई कुछ बोल नहीं पाता था। लेकिन शिबू सोरेन ने आंदोलन के दौरान ऐसा संगठन तैयार किया, जिससे उन्होंने अपने लोगों को महाजनों और सूदखोरों से आजादी दिलायी। संथालों ने उन्हें दिशोम गुरु की उपाधि से नवाजा। 1980 के बाद से झामुमो का संथाल परगना में वर्चस्व कायम हो गया। शिबू सोरेन ने अलग झारखंड राज्य के लिए भी लंबी लड़ाई लड़ी। यह है संथाल परगना का गौरवशाली इतिहास। आज उसी गौरवशाली इतिहास पर काला धब्बा लग रहा है।

    आज बदनामी के दलदल में फंसा है संथाल
    कभी संथाल परगना दुनिया में संथाल विद्रोह के नायक सिदो, कान्हू, चांद, भैरव के नाम से पहचाना जाता था। देश में अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहली लड़ाई का बिगुल फूंकने के लिए जाना जाता था। लेकिन जब से अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ, तब से ही संथाल परगना पर कलंक का टीका लगना शुरू हो गया। संथाल परगना, जिसमें गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़ प्रमुख रूप से शामिल हैं, आज दुनिया भर में चर्चित तो हैं, लेकिन दूसरे कारणों से। आज यहां हालत यह है कि सबसे ज्यादा बालू चोरी यहीं हो रही है, पत्थर चोरी यहीं हो रही है, अवैध खनन यहीं हो रहा है, सबसे ज्यादा संख्या में मोबाइल चोर यहीं पाये जाते हैं, साइबर अपराधी यहीं पाये जाते हैं। सोना चोर यहीं हैं, बांग्लादेशी घुसपैठिये यहीं बसे हुए हैं। डेमोग्राफी बदलाव यहीं हो रहा है। क्रूर से क्रूर हत्याएं यहीं हो रही हैं। आदिवासी महिलाओं और बच्चियों के साथ दुष्कर्म और हत्या यहां रुकने का नाम नहीं ले रहा है। क्या संथाल झारखंड का क्राइम हब बन चुका है। आज संथाल परगना में आदिवासी बच्चियों को लव जिहाद के जाल में फांस कर उनके साथ बांग्लादेशी घुसपैठिये शादी कर रहे हैं। उनका धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं। उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। उनके घरों को हथिया रहे हैं और काम निकलने पर उनकी हत्या कर दे रहे हैं। इस क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं का उपयोग कर कोई मुखिया का चुनाव लड़ रहा है, कोई जिला परिषद का चुनाव लड़ रहा है, यानी सत्ता में दखल करने की कोशिश भी जारी है। कभी कोई शाहरुख हुसैन दुमका की बेटी अंकिता कुमारी को पेट्रोल छिड़क कर जिंदा जला देता है, तो कभी कोई अरमान अंसारी नाबालिग आदिवासी के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर पेड़ से लटका देता है, तो कभी दिलदार अंसारी आदिम जनजाति से आने वाली रेबिका पहाड़िया के शरीर को इलेक्ट्रिक कटर मशीन से 50 टुकड़े कर देता है। यही नहीं यहां अगले ही दिन यह खबर आती है कि सद्दाम नाम का युवक एक और पहाड़िया आदिवासी लड़की से साथ दुष्कर्म करता है। मानो इनके अंदर प्रशासन का जरा भी खौफ नहीं है। इनका मन इतना बढ़ चुका है कि इन्हे यकीन है कि इनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला। आपने अंकिता कुमारी के हत्यारे शाहरुख हुसैन को पुलिस कस्टडी में देखा होगा। कैसे उस मासूम बच्ची को पेट्रोल छिड़क कर जिंदा जलाने के बाद वह मुस्कुरा रहा था। मानो उसने कोई मिशन को अंजाम दिया हो। ये हत्याएं सामान्य हत्याएं नहीं हैं। इनके पीछे एक संगठित रैकेट काम कर रहा है। जिनका लक्ष्य ही है आदिवासी महिलाओं को प्रेम जाल में फांसना और उनके सहारे झारखंड में बस जाना। उनकी जमीनों पर अधिकार कर लेना और आधार कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस बनवा कर यहां का स्थायी नागरिक बन जाना। पुलिस के रिकॉर्ड बताते हैं कि संथाल परगना आज संगठित अपराध के मामले में झारखंड का सबसे अशांत इलाका बन गया है। वर्ष 2021 में संथाल परगना प्रमंडल में 723 लोगों की हत्या हुई और बलात्कार के 404 मामले दर्ज किये गये। इतना ही नहीं, देश भर में दर्ज साइबर अपराध के करीब ढाई लाख मामलों में से करीब 68 हजार इसी इलाके में दर्ज किये गये। जामताड़ा का करमाटांड़ और नारायणपुर साइबर अपराध का गढ़ माना जाता है। यहां बाकायदा प्रशिक्षण संस्थान चलते हैं, जहां साइबर अपराध का प्रशिक्षण दिया जाता है।
    हाल के दिनों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण साहिबगंज का इलाका बेहद संवेदनशील बन गया है। इस इलाके की करीब 10 हजार एकड़ आदिवासियों की जमीन पिछले सात सालों में खरीदी-बेची गयी है। हैरत की बात यह है कि इनमें से 95 प्रतिशत सौदे स्थानीय महिलाओं के नाम पर हुए हैं, जिनके पति या पिता के रूप में किसी मुस्लिम का नाम है।

    आज संथाल परगना भ्रष्टाचारियों का अड्डा बन गया है। आज साहिबगंज जिले में एक हजार करोड़ के अवैध खनन घोटाले की जांच इडी कर रही है। इसके अलावा पत्थर और कोयले का अवैध खनन भी यहां उद्योग का रूप ले चुका है। एक तरफ अवैध और अनैतिक कार्यों में संलग्न लोग हर दिन मालामाल हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ गोड्डा-साहिबगंज का इलाका मानव तस्करी से लेकर गौ तस्करी का भी बड़ा अड्डा बन गया है।

    संथाल परगना की यह दुर्गति एक या दो साल में नहीं हुई है, बल्कि यह विकृत सियासत का परिणाम है। अगर इन सभी ज्वलंत बातों पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब यहां के लोगों को एक और संथाल विद्रोह करना पड़ जाये। जब उनकी संस्कृति, उनकी जमीन, उनकी बहू-बेटियों की इज्जत पूरी तरह खतरे में पड़ जायेगी, तो आखिर वे क्या करेंगे!

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