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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»अगले दो साल तक ‘चुनावी मोड’ में रहेगा झारखंड
    स्पेशल रिपोर्ट

    अगले दो साल तक ‘चुनावी मोड’ में रहेगा झारखंड

    adminBy adminFebruary 9, 2023Updated:February 10, 2023No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    -हर मोड़ पर होगा हेमंत सोरेन और भाजपा का आमना-सामना
    -यूपीए बनाम एनडीए के मुकाबले के रोमांच में तैरता रहेगा प्रदेश

    भारत के राजनीतिक मानचित्र पर 22 साल पहले उभरे राज्य झारखंड की वैसे तो कई खासियतें हैं, लेकिन एक खासियत ऐसी है, जो शायद दूसरे राज्योें में नहीं है। यह खासियत है कि सवा तीन करोड़ की आबादी वाला यह राज्य सियासी नजरिये से बेहद संवेदनशील है। सियासत का चाहे कोई भी स्वरूप हो, झारखंड उसमें पूरी तरह डूब कर शामिल होता है। चाहे निकाय चुनाव हो या विधानसभा का या फिर लोकसभा का ही चुनाव क्यों न हो, झारखंड का कोना-कोना मानो इसकी अनुगूंज से स्पंदित होने लगता है। अब अगले दो साल तक झारखंड की वादियों में चुनावी अनुगूंज अक्सर सुनाई देनेवाली है, क्योंकि झारखंड में 2023 और 2024 के बीच कई चुनाव होने वाले है। इसी महीने की 27 तारीख को रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव है, जिसकी प्रक्रिया जारी है। पूरे झारखंड में इसकी धमक सुनाई देने लगी है। इसके बाद इस साल के मध्य में राज्य में नगर निकाय चुनाव भी कराये जा सकते हैं, जो हालांकि दलीय आधार पर नहीं होंगे, लेकिन राजनीतिक दल इसमें भी नेपथ्य में रहेंगे। निकाय चुनाव के बाद राज्य में 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो जायेंगी और फिर अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव निर्धारित है। इन तमाम चुनावी यात्राओं में कई उतार-चढ़ाव आयेंगे, कई मोड़ आयेंगे। सबसे दिलचस्प बात यह है कि हर मोड़ पर मुकाबला हेमंत सोरेन के साथ ही होगा। हरेक मुकाबले में उनके नेतृत्व में यूपीए होगा, तो भाजपा के नेतृत्व में एनडीए। झारखंड के इसी ‘चुनावी मोड’ के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    राजनीतिक रूप से बेहद सक्रिय रहनेवाले झारखंड के लिए वर्ष 2023 और 2024 सियासी नजरिये से बेहद अहम साल साबित होने वाले हैं। अभी 2023 की शुरूआत हुई है और राज्य की रामगढ़ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर सियासी माहौल में सरगर्मी घुल गयी है। आने वाले तीन-चार महीनों के भीतर राज्य में 49 नगर निकायों के चुनाव संभावित हैं, जबकि वर्ष 2024 के पूर्वार्द्ध में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और उत्तरार्द्ध, यानी नवंबर-दिसंबर में झारखंड विधानसभा के भी चुनाव कराये जायेंगे। इन सभी चुनावों के समीकरण बहुत हद तक इस फैक्टर पर तय होंगे कि एनडीए और यूपीए- दोनों खेमों के घटक दलों के बीच आपसी एकता किस हद तक बन पाती है। झारखंड के मौजूदा सियासी परिदृश्य में यह तथ्य भी आइने की तरह साफ है कि झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन सभी चुनावों में एक अहम धुरी होंगे।
    बात शुरू करते हैं रामगढ़ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव की, जहां आगामी 27 फरवरी को वोट डाले जाने हैं। इस सीट पर 2019 में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस की ममता देवी को हजारीबाग जिले की अदालत ने एक आपराधिक मामले में सात साल की सजा सुनायी और इसके बाद उनकी विधायकी निरस्त कर दी गयी थी। इस वजह से यहां उपचुनाव कराये जा रहे हैं। झारखंड में एनडीए के घटक आजसू ने यहां गिरिडीह के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता देवी को प्रत्याशी बनाया है। वह 2019 के विधानसभा चुनाव में भी आजसू की प्रत्याशी थीं, लेकिन पराजित हो गयी थीं। इस चुनाव में एनडीए फोल्डर में फूट पड़ गयी थी। आजसू और भाजपा दोनों ने अपने प्रत्याशी उतार दिये थे। इस बार आजसू प्रत्याशी को भाजपा का भी समर्थन है। उनका मुकाबला यूपीए की घटक और झारखंड की सत्ता में लगभग बराबर की साझीदार कांग्रेस के बजरंग महतो से हो रहा है। बजरंग महतो निवर्तमान विधायक ममता देवी के पति हैं। वह अपने दुधमुंहे बच्चे को लेकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं, ताकि सहानुभूति बटोर सकें। उन्हें झामुमो और राजद का समर्थन हासिल है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद इस उपचुनाव में दिलचस्पी ले रहे हैं। उनका पैतृक गांव गोला प्रखंड के नेमरा में है, जो रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है। इसलिए हेमंत खुद चुनाव प्रचार करने आनेवाले हैं। 2019 के बाद राज्य में चार विधानसभा सीटों दुमका, बेरमो, मधुपुर और मांडर में अलग-अलग वजहों से उपचुनाव कराये गये और चारों उपचुनावों में यूपीए ने एकता बरकरार रखते हुए जीत दर्ज की है।
    अप्रैल-मई में नगर निकाय चुनाव की संभावना
    रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव के बाद राज्य में सभी 49 नगर निकायों के चुनाव कराने की घोषणा की जा सकती है। ये चुनाव बीते दिसंबर में ही प्रस्तावित थे, लेकिन मेयर के पदों पर एकल आरक्षण पर विवाद के कारण सरकार ने चुनाव टाल दिये थे। अब इस मसले पर सरकार निर्णय ले चुकी है और सब कुछ ठीक रहा, तो अप्रैल-मई में चुनाव करा लिये जायेंगे। हालांकि नगर निकायों के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होंगे, लेकिन इसके बावजूद यूपीए-एनडीए दोनों खेमों के बीच अपने-अपने समर्थकों की जीत सुनिश्चित करने के लिए जोरदार आजमाइश होगी। पिछले नगर निकाय चुनावों में जीत दर्ज करने वालों में भाजपा समर्थकों की तादाद सबसे ज्यादा थी। इस बार हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर नगर निकायों के महत्वपूर्ण पदों के लिए साझा प्रत्याशी उतारने की संभावनाओं पर चर्चा हो रही है।
    लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भी जुटे सभी प्रमुख दल
    2024 में होने वाले सबसे बड़े चुनाव, यानी लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए और यूपीए दोनों ने राज्य में अपने-अपने पक्ष में सियासी समीकरण तैयार करने की संभावनाओं और रणनीतियों पर काम शुरू दिया है। भाजपा के शीर्ष चुनावी रणनीतिकारों में एक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चाईबासा में विजय संकल्प रैली के साथ राज्य में चुनावी अभियान का आगाज कर दिया। इस रैली में अमित शाह के निशाने पर कांग्रेस नहीं, हेमंत सोरेन ही रहे। इसकी वजह यह है कि झारखंड में भाजपा या एनडीए के सामने सबसे बड़ी चुनौती हेमंत सोरेन हैं। हेमंत सोरेन ने भी अमित शाह के प्रहारों का जवाब देने में देरी नहीं की। उन्होंने अमित शाह की रैली के 17 दिन बाद चाईबासा में खतियानी जोहार यात्रा के तहत बड़ी रैली की। सोरेन ने इस रैली में साल 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव का शंखनाद करते हुए कहा कि इस यात्रा के माध्यम से वह सभी का आशीर्वाद लेने आये हैं। उन्होंने कहा कि 15 साल दीजिये, झारखंड गुजरात से ऊपर रहेगा।
    यह सर्वविदित है कि आदिवासी वोट बैंक पर हेमत सोरेन और उनकी पार्टी की मजबूत पकड़ है। भाजपा जानती है कि वह इस वोट बैंक को दरकाने में जितनी सफल होगी, लोकसभा के साथ-साथ 2024 में ही होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में उसकी राह उतनी आसान होगी। दूसरी तरफ हेमंत सोरेन राज्य में सरकार चलाते हुए आदिवासियों और झारखंड के मूल निवासियों से जुड़े जमीनी और भावनात्मक मुद्दों पर एक के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं। 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति, ओबीसी-एससी-एसटी आरक्षण में वृद्धि, निजी कंपनियों में 40 हजार तक के वेतनवाले पदों पर झारखंड के स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी आरक्षण जैसे फैसलों का इस्तेमाल वह तुरुप के पत्ते की तरह कर रहे हैं। हेमंत सोरेन सरकार के कई फैसलों पर पूरी तरह सहमत न होने के बावजूद राज्य में कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियां उनके साथ खड़ी हैं। इसकी वजह यह कि ये दोनों पार्टियां जानती हैं कि फिलहाल झारखंड में झामुमो के बगैर चुनावी राजनीति में टिके रह पाना मुश्किल है।
    हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यूपीए को मिल सकता है फायदा
    झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में इनमें से 11 सीटों पर भाजपा और एक पर आजसू ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा एक सीट पर झामुमो और एक पर कांग्रेस प्रत्याशी जीता था। इस बार एनडीए के लिए यह परिणाम दोहरा पाना बड़ी चुनौती है। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त राज्य में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार थी। अभी राज्य में झामुमो की अगुवाई वाले गठबंधन की सरकार है। अगर कोई अप्रत्याशित स्थिति नहीं बनी, तो यह सरकार वर्ष 2024 तक कायम रह सकती है और ऐसे में यहां सोरेन की अगुवाई में ज्यादा बेहतर संसाधनों के साथ चुनाव लड़ने का फायदा यूपीए को मिल सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में यूपीए फोल्डर के तहत चार दलों राजद, झामुमो, कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा ने 14 में से 13 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। इसके बावजूद इनके हिस्से मात्र दो सीटें आयी थीं। संभावना यही है कि इस बार यूपीए फोल्डर में झामुमो, कांग्रेस और राजद एक साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और हेमंत सोरेन इस एका की सबसे बड़ी धुरी होंगे। फिलहाल इनकी एकता में कोई बड़ी मुश्किल नहीं दिख रही। विधानसभा चुनाव में होगा रोमांचक मुकाबला
    झारखंड विधानसभा का चुनाव अगले साल के अंत में तय है। पिछली बार एनडीए में दरार थी। भाजपा और आजसू अलग-अलग चुनाव लड़े, जिसका खामियाजा उन दोनों को भुगतना पड़ा। इस बार ये दोनों एक हैं और साथ में बाबूलाल मरांडी भी आ चुके हैं। इसलिए इस बार विधानसभा का चुनाव भी रोमांचक होगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव और इसके बाद विधानसभा चुनाव में सोरेन की अगुवाई वाले इस गठबंधन की संभावित एका किस हद तक असर डाल पायेगी।

     

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