विशेष
-झारखंड की जनता को राज्य की सबसे बड़ी पंचायत से क्या मिला
-इंदर सिंह नामधारी से रविंद्रनाथ महतो तक क्या-क्या बदला सदन में
जब लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में संसदीय प्रणाली की परिकल्पना की गयी और फिर कालक्रम में उसे संघीय व्यवस्था में ढाला गया, तब शायद किसी ने विधानसभा जैसी संस्था की कल्पना नहीं की थी, लेकिन संघीय व्यवस्था की जरूरतों ने विधानसभा की परिकल्पना को साकार किया और आज विधानसभा नामक संस्था किसी भी राज्य की राजनीतिक पहचान को प्रतिबिंबित करती है। झारखंड की विधानसभा भी इस राज्य की पहचान है और प्रदेश की यह सबसे बड़ी पंचायत 23 साल की हो गयी है। किसी भी संस्था के लिए 23 वर्ष का कालखंड उसके कामकाज की समीक्षा के लिए काफी होता है और यही कारण है कि झारखंड विधानसभा के अब तक के सफरनामे पर एक दृष्टि डाली जाये। आम तौर पर कहा जा सकता है कि झारखंड विधानसभा राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी की आकांक्षाओं पर यदि पूरी तरह खरी नहीं उतरी है, तो इसने झारखंड को निराश भी नहीं होने दिया है, हालांकि इसके साथ विवाद हमेशा जुड़े रहे। वर्ष 2000 में जब पहली विधानसभा अस्तित्व में आयी थी, तब से लेकर आज तक हर बार कोई न कोई विवादित मुद्दा इसके साथ जुड़ता रहा। चाहे वह विधानसभा की स्थापना से संबंधित विवाद हो या फिर कार्यवाही के दौरान विभिन्न पक्षों के व्यवहार का। इन विवादों के बावजूद सदन ने कई बार सकारात्मक और सार्थक चर्चा कर झारखंड के हित में महत्वपूर्ण फैसले लिये और ऐसी नीतियां बनायीं, जिन पर चल कर झारखंड को लाभ ही मिला। विधानसभा के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी से लेकर वर्तमान अध्यक्ष प्रो रविंद्रनाथ महतो तक के कार्यकाल में झारखंड विधानसभा कितनी बदली और इसने झारखंड की राजनीतिक पहचान को कहां तक पहुंचाया, इस कहानी को बयां कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
आज से ठीक 23 साल पहले 22 नवंबर 2000 को जब झारखंड की पहली विधानसभा अस्तित्व में आयी थी और एचइसी इलाके में स्थित रसियन हॉस्टल के लेनिन हॉल में इसकी पहली बैठक हुई थी, उस समय सदन के पहले उपाध्यक्ष बागुन सुंब्रुई ने कहा था कि इस सदन में झारखंडियों के सपने आकार लेंगे और उन्हें उड़ने की ताकत मिलेगी। उन्होंने कहा था कि लेकिन इसके लिए इसे वयस्क होने तक इंतजार करना होगा। अभी तो इसके खेलने-खाने के दिन हैं। बागुन सुंब्रुई की उस टिप्पणी को उस समय राजनीतिक दृष्टि से विवादित करार दिया गया था, लेकिन आज जब झारखंड विधानसभा अपना 23वां स्थापना दिवस मना रहा है, यह टिप्पणी बेहद सटीक लगती है। झारखंड की 82 सदस्यीय विधानसभा, जिसमें एक मनोनीत सदस्य शामिल हैं, की अब तक हुई बैठकों का लब्बो-लुआब यही निकाला जा सकता है कि राज्य की सबसे बड़ी पंचायत ने अब तक के अपने सफर में झारखंड को यदि बहुत अधिक दिया नहीं है, तो निराश भी नहीं किया है।
चौथी विधानसभा ने पूरा किया कार्यकाल
झारखंड विधानसभा अपना 23वां स्थापना दिवस मना रही है। राज्य की यह सबसे बड़ी पंचायत बहुत सारे बदलावों की साक्षी बनी है। झारखंड की पहली विधानसभा के सभी सदस्य बिहार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। जब अलग झारखंड राज्य बना, तो 81 सदस्यीय विधानसभा का गठन हुआ। इस समय झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो हैं। 22 नवंबर 2000 को पहली विधानसभा का गठन हुआ। इसके बाद 2 मार्च 2005 को दूसरी विधानसभा अस्तित्व में आयी। दिसंबर 2009 में तीसरी विधानसभा का गठन हुआ। दिसंबर 2014 में चौथी विधानसभा का गठन हुआ। वह झारखंड के चुनावी और राजनीतिक इतिहास में पहला मौका था, जब किसी विधानसभा ने अपना कार्यकाल पूरा किया था। दिसंबर 2019 में पांचवीं विधानसभा अस्तित्व में आयी।
23 साल के कार्यकाल में नौ विधानसभा अध्यक्ष बने
23 साल के कार्यकाल में झारखंड विधानसभा ने नौ विधानसभा अध्यक्ष देखे हैं। पहली विधानसभा के अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी थे। वह एकमात्र ऐसे विधानसभा अध्यक्ष हैं, जिनको तीन कार्यकाल मिला। वह 22 नवंबर 2000 से 29 मार्च 2004, 4 अप्रैल 2004 से 11 अगस्त 2004 और फिर 15 मार्च 2005 से 14 सितंबर 2006 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। बाबुन सुंब्रुई (कार्यकारी अध्यक्ष) का कार्यकाल 29 मार्च 2004 से 29 मई 2004 तक रहा। इसके बाद मृगेंद्र प्रताप सिंह विधानसभा अध्यक्ष बने। इनका कार्यकाल 18 अगस्त 2004 से 11 जनवरी 2005 तक रहा। सबा अहमद (कार्यकारी अध्यक्ष) का कार्यकाल 12 जनवरी 2005 से 1 मार्च 2005 तक रहा। मौजूदा ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री आलमगीर आलम भी विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं। उनका कार्यकाल 20 अक्टूबर 2006 से 26 नवंबर 2009 तक रहा। रांची के वर्तमान विधायक सीपी सिंह 6 जनवरी 2010 से 19 जुलाई 2013 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। शशांक शेखर भोक्ता 15 जुलाई 2013 से 23 दिसंबर 2014 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। रघुवर दास सरकार के समय 7 जनवरी 2015 से 24 दिसंबर 2019 तक दिनेश उरांव विधानसभा अध्यक्ष रहे। इसके बाद 7 जनवरी 2020 से अब तक रविंद्रनाथ महतो विधानसभा अध्यक्ष हैं।
विधानसभा का अब तक का कामकाज
पिछले 23 साल में झारखंड विधानसभा की 546 दिन बैठक हो चुकी है और इसने सामान्य कामकाज के अलावा 394 विधेयकों को पारित किया है। यह उपलब्धि छोटी नहीं है। लगातार किराये के भवन में काम निबटाते हुए इस सदन ने राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी को वह सब कुछ देने का प्रयास किया है, जो उसके लिए जरूरी था। सदन के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी से लेकर वर्तमान अध्यक्ष प्रो रविंद्रनाथ महतो तक ने राज्य की इस सर्वोच्च संवैधानिक संस्था की गरिमा को हमेशा अक्षुण्ण रखने का ही प्रयास किया। इतना ही नहीं, सदन के नेताओं ने भी, जिनमें बाबूलाल मरांडी से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक शामिल हैं, ने हमेशा इस संस्था की पवित्रता को राज्य के लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप बनाये रखने के लिए हरसंभव प्रयास किया।
इसके बावजूद झारखंड की कोई भी विधानसभा विवादों से घिरने से नहीं बच सकी। कहा जाता है कि हर चमकीली वस्तु का दूसरा पहलू उसका स्याह पक्ष भी होता है। यह कहावत झारखंड विधानसभा के साथ भी लागू होती है। कई बार विधानसभा विवादों में घिरी। चाहे नियुक्ति घोटालों को लेकर हो या फिर सदन की कार्यवाही को लेकर, झारखंड विधानसभा का विवादों ने हरदम पीछा किया। खास कर दलबदल संबंधी विवादों को लेकर विधानसभा की छवि पर जो दाग लगे, उसे लेकर झारखंड में चिंता भी जाहिर की गयी। विधानसभा को राजनीति का मंच बनाने की भी भरपूर कोशिश की गयी और जाने-अंजाने इसे हर राजनीतिक दल ने अपने हित के लिए इस्तेमाल किया, जबकि होना यह चाहिए था कि इस मंच का इस्तेमाल केवल राज्यहित के लिए किया जाता। दलबदल के मामले में राज्य की चौथी विधानसभा ने तो रिकॉर्ड ही बना लिया, जब अध्यक्ष ने पूरे पांच साल तक इस मामले की सुनवाई की और सदन की अवधि पूरी होने से ठीक पहले फैसला सुनाया। अब पांचवीं विधानसभा में दलबदल का एक मामला लंबित है और अध्यक्ष कह चुके हैं कि वह बहुत जल्द इस पर फैसला सुनायेंगे। यदि ऐसा होता है, तो यह भी एक रिकॉर्ड ही बनेगा।
एक और विवाद, जिसने झारखंड विधानसभा को कभी नहीं छोड़ा, वह है इसकी समितियों के कामकाज और उनकी रिपोर्ट पर कार्यवाही का सवाल। हर विधानसभा में विधायकों की समितियां बनीं, उन्होंने अपने-अपने विभागों के कामकाज की समीक्षा की और देर-सबेर रिपोर्ट भी सौंपी, लेकिन उन पर क्या कार्रवाई हुई, यह अब तक सामने नहीं आया है। विधानसभा समितियों के साथ कार्यपालिका के रिश्तों पर भी अक्सर सवाल उठते रहे और विधानसभा ने कई बार चेतावनी भी जारी की, इसके बावजूद इस दिशा में बहुत अधिक सकारात्मक प्रगति नहीं हुई।
विवादों के बावजूद झारखंड विधानसभा ने राज्य की हकीकतों को दुनिया के सामने रखा है। पिछले 23 साल में देश के संसदीय कामकाज में झारखंड विधानसभा ने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करायी है। चाहे पीठासीन पदाधिकारियों का राष्ट्रमंडल सम्मेलन हो या फिर दूसरे आयोजन, झारखंड को प्रतिष्ठा दिलाने में राज्य के प्रतिनिधि कभी पीछे नहीं रहे। इतना ही नहीं, विधानसभा ने आदिवासी सरना धर्म कोड जैसे संवेदनशील और 60 साल से लंबित मुद्दे को सर्वसम्मति से सुलझा कर अनोखी उपलब्धि हासिल की है।
अब, जबकि झारखंड विधानसभा किराये के भवन से निकल कर अपने खुद के भवन में चली गयी है और इसकी भव्य इमारत पूरी दुनिया में चर्चित हो रही है, उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य की सबसे बड़ी पंचायत का आगे का सफर बागुन सुंब्रुई की टिप्पणी के अनुरूप होगा, जब यह झारखंड के सपनों को पंख लगायेगी और यहां के सवा तीन करोड़ लोगों को उड़ने का हौसला देगी। वैसे भी किसी राज्य की विधानसभा उसके लोगों की आकांक्षाओं का आइना होती है। झारखंड विधानसभा ने अब तक यहां के लोगों की आकांक्षाओं को देखा भर है। अब उसके सामने इन्हें पूरा करने की चुनौती है, जिसकी जिम्मेवारी सदन के सदस्यों की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि झारखंड विधानसभा इस उम्मीद की कसौटी पर खुद को खरा साबित करेगी और तब झारखंड का दौर शुरू होगा।