विशेष
-झामुमो विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे से झारखंड में राजनीतिक बवंडर
-कल्पना सोरेन के सिर सत्ता का ताज सजने की अटकलें तेज
-सीएम ने आज सत्ताधारी विधायक दल की बैठक बुलायी, धड़कनें बढ़ीं
झारखंड में नये साल के पहले दिन से राजनीतिक सरगर्मी अचानक तेज हो गयी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे के बाद अचानक राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा बदले जाने के कयास लगाये जाने लगे हैं। भाजपा का दावा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अब कुर्सी छोड़ने का मन बना चुके हैं और बिहार में लालू प्रसाद की तर्ज पर अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के सिर ताज बांधने की तैयारी कर चुके हैं। उन्होंने इसी तैयारी के तहत गांडेय विधानसभा की सीट सरफराज अहमद से खाली करायी है, ताकि मुख्यमंत्री बनने के बाद छह महीने के अंदर कल्पना सोरेन वहां से चुनाव लड़ सकें। हालांकि भाजपा के दावों पर झामुमो कुछ भी बोलने से बच रहा है। इधर सरफराज अहमद ने प्रेस से बातचीत में दबी जुबान यह स्वीकार किया है कि जरूरत पड़ने पर वहां से कल्पना सोरेन चुनाव लड़ सकती हैं, यह सब कुछ पार्टी आलाकमान पर निर्भर है। वहीं गठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस ने जो संकेत दिया है उससे भाजपा का दावा सच हो सकता है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने गांडेय विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे को रणनीति का हिस्सा बता कर संकेत दिया है कि सरफराज अहमद के इस्तीफे के पीछे पार्टी का जरूर कोई प्लान है। उन्होंने यह भी कहा कि यह इस्तीफा झारखंड के हित में दिया गया है। लेकिन इडी और इस्तीफे की तमाम अटकलों के बीच यह भी नोट करने लायक है कि यह चुनावी साल है।
पहली छमाही में जहां लोकसभा चुनाव होने हैं, वहीं साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होगा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने बातचीत में कहा कि हेमंत सोरेन को अब यह लगने लगा है कि वह किसी भी हाल में इडी से बच नहीं सकते, इसलिए उन्होंने कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी कर ली है। निर्दलीय विधायक सरयू राय ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर कल्पना सोरेन मुख्यमंत्री बनती हैं, तो उनके लिए विधानसभा में बहुमत साबित करना आसान नहीं है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे तो हर क्षण कुछ न कुछ कहानी पोस्ट कर रहे हैं। इधर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम में सीएम हाउस में हलचल बढ़ गयी है। मुख्यमंत्री आवास में बुधवार को सत्ताधारी विधायक दल की बुलायी गयी बैठक, अधिकारियों से विचार-विमर्श के बीच राज्य के महाधिवक्ता का सीएम आवास आना-जाना यह संकेत दे रहा है कि झारखंड में जल्द ही बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होनेवाला है। अगर झारखंड में सत्ता परिवर्तन होता है, तो इतना तय है कि उसके बाद का माहौल बहुत सहज नहीं होनेवाला। जहां एक ओर झामुमो हर हाल में सरकार को स्थिर रखना चाहेगा, वहीं भाजपा हर हाल में इस सरकार को अस्थिर करना चाहेगी। एक बार फिर विधायकों की उछल-कूद से भी इनकार नहीं किया जा सकता। वैसे में झारखंड एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के भंवर फंसेगा और यह राज्यहित में अच्छा नहीं होगा। मौजूदा राजनीतिक सक्रियता का असर आगामी लोकसभा और उसके बाद के विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
इसका कारण यह है कि अगर इडी हेमंत सोरेन के खिलाफ कोई बड़ा कदम उठाती है या फिर झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन राजभवन में धूल फांक रहे चुनाव आयोग के लिफाफे को खोल कर कोई कदम उठाते हैं, तो सत्ताधारी दल निश्चित रूप से इस पर झारखंड के लोगों की सहानुभूति बटोरना चाहेगा और यह बताने की कोशिश करेगा कि कैसे एक आदिवासी मुख्यमंत्री को अस्थिर किया गया।
दूसरी तरफ हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी में भाजपा हर दांव चल कर सत्ताधारी दल की कमियों को उजागर कर जनता को यह विश्वास दिलाना चाहेगी कि कैसे इन लोगों ने राज्य को खोखला कर दिया है। मौजूदा राजनीतिक हलचल में आग दोनों तरफ लगी है। झामुमो में भी और भाजपा में भी। जाहिर है कि यह आग झामुमो के साथ-साथ भाजपा पर भी असर डालेगी। वैसे एक बात तय है कि झारखंड में यदि फिर कोई राजनीतिक अनिश्चितता पैदा होती है, तो यह राज्य के लिए बहुत बुरा होगा। क्या है झारखंड का वर्तमान राजनीतिक माहौल और सरफराज अहमद के इस्तीफे के बाद क्या संभावनाएं पैदा हो रही हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड की राजधानी रांची में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है, लेकिन यहां की सियासी सरगर्मी लगातार बढ़ रही है। राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में दुनिया भर में चर्चित झारखंड की यह सियासी सरगर्मी राज्य को एक बार फिर अनिश्चितता के भंवर की तरफ धकेलती नजर आ रही है। साल के पहले दिन ही झामुमो विधायक डॉ सरफराज अहमद के इस्तीफे की खबर से शुरू हुई इस सरगर्मी के बीच चर्चा है कि प्रवर्तन निदेशालय (इडी) की ओर से भेजे गये सातवें समन के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन वैकल्पिक उपायों पर मंथन कर रहे हैं। उन्होंने इडी को जवाब भी भेज दिया है। कहा जा रहा है कि वह इडी को जवाब देने को तैयार हो गये हैं, लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। इधर राजनीतिक गलियारों में मंगलवार को पूरे दिन यह चर्चा तेज रही कि जरूरत पड़ने पर हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप सकते हैं। बता दें कि विधायक डॉ अहमद ने साल 2023 के आखिरी दिन अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा। 31 दिसंबर को स्पीकर रवींद्र नाथ महतो ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया और उस दिन किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी।
यह खबर तब सार्वजनिक हुई, जब साल 2024 की पहली तारीख को विधानसभा सचिवालय ने उनका इस्तीफा स्वीकार होने की अधिसूचना जारी की। डॉ अहमद ने इस्तीफे के फैसले के लिए व्यक्तिगत वजहों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि उन्होंने स्वयं यह निर्णय लिया है। उन्हें किसी ने इस्तीफा देने को नहीं कहा। उन्हें लगा कि उनकी पार्टी झामुमो और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर संकट आ सकता है, तो उन्होंने इस्तीफा देना ज्यादा मुनासिब समझा। वह पार्टी के सिपाही हैं और उनका निर्णय जाहिराना तौर पर पार्टी के हित में है। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने यह सीट कल्पना सोरेन के लिए खाली किया है, लेकिन कहा कि उन्होंने पार्टी हित में अपना इस्तीफा दिया है। मौजूदा राजनीतिक सरगर्मी के बीच सत्ताधारी विधायक दल की बुधवार को मुख्यमंत्री आवास में शाम साढ़े चार बजे बैठक बुलायी गयी है। इस बैठक में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम में क्या कुछ करनेवाले हैं, यह साफ हो जायेगा। इस बैठक के बाद राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम हो गयी है कि इसमें कल्पना सोरेन के सिर ताज सजाने का फैसला हो जायेगा, लेकिन यह अभी तक चर्चा तक में सिमटा हुआ है।
मौजूदा घटनाक्रम के बीच जहां एक ओर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा गठबंधन सरकार और खासकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर हमलावर है, तो दूसरी तरफ झामुमो ने इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध रखी है। हालांकि पार्टी नेताओं ने कहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड के विकास के लिए काम कर रहे हैं और इडी केंद्र सरकार के इशारे पर उन्हें बेवजह तंग कर रही है। राज्य की जनता यह देख-समझ रही है। इसका जवाब भी देगी। एक अन्य नेता ने कहा कि हेमंत सोरेन ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े आदमी को आवाज दी है। वह उनके अधिकारों को सुनिश्चित कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में झामुमो मजबूत हुआ है। इसलिए पार्टी उनके हर निर्णय के साथ खड़ी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है। झामुमो गठबंधन को विधानसभा में बहुमत है और अपना निर्णय लेने के लिए वह स्वतंत्र है।
भाजपा का क्या कहना है
दूसरी तरफ भाजपा ने इस पूरे प्रकरण पर चुटकी ली है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि डॉ सरफराज अहमद ने अपना इस्तीफा कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने के लिए दिया है। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इडी के समन से डरे हुए हैं। इसलिए वह सारे तिकड़म कर रहे हैं। बाबूलाल का दावा है कि सरफराज अहमद का इस्तीफा साबित करता है कि झामुमो जैसी वंशवादी पार्टियां परिवार के अलावा कुछ और नहीं सोच सकतीं। यही कारण है कि इडी की कार्रवाई और अपनी संभावित गिरफ्तारी से डरे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विकल्प के तौर पर अपनी पत्नी कल्पना सोरेन का नाम आगे कर रहे हैं। वह चाहते तो झामुमो के किसी वरिष्ठ नेता को अपना उत्तराधिकारी बना सकते थे, लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे। भाजपा नेता ने तो यह भी दावा कर दिया है कि कल्पना सोरेन झारखंड की अगली मुख्यमंत्री बनेंगी। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने अपने ट्वीट में यहां तक लिखा है कि सत्ताधारी विधायकों की बैठक में मुख्यमंत्री इस्तीफा देने की घोषणा करेंगे और कल्पना सोरेन को विधायक दल का नेता चुन लिया जायेगा। आगे उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री राजभवन भी जायेंगे, जहां एक तरफ वह अपना इस्तीफा सौंपेंगे और दूसरी तरफ कल्पना सोरेन को नेता चुने जाने का पत्र सौंप कर शपथ ग्रहण के लिए आग्रह करेंगे।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
झारखंड की सत्ता में झामुमो की सहयोगी कांग्रेस का कहना है कि पार्टी इंडी गठबंधन के सभी दलों के साथ खड़ी है और रहेगी। पार्टी झामुमो की सहयोगी है और बनी रहेगी। सरफराज अहमद अनुभवी नेता हैं। उन्होंने झामुमो से इस्तीफा नहीं दिया है। सिर्फ विधायकी छोड़ी है। उन्होंने यह निर्णय झामुमो और राज्य के हित में ही लिया होगा। सब जानते हैं कि इडी जैसी एजेंसियां पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम कर रही हैं और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को परेशान किया जा रहा है। भाजपा बहुमत को लूटने के काम में लगी है, लेकिन कांग्रेस ऐसा होने नहीं देगी।
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
झारखंड की सियासत पर नजर रखनेवाले विश्लेषक मानते हैं कि डॉ सरफराज अहमद का इस्तीफा अनायास नहीं है। यह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सियासी चाल है, जिसमें विपक्ष फंस कर रह जायेगा। हेमंत सोरेन न केवल मुख्यमंत्री हैं, बल्कि वह अपनी पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। उनकी पकड़ झामुमो पर भी काफी मजबूत है। ऐसे में अगर आनेवाले समय में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सरफराज अहमद द्वारा खाली की गयी सीट से विधानसभा का उपचुनाव लड़ जायें, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अगर हेमंत सोरेन के लिए विपरीत परिस्थितियां पैदा हुईं, तो वह कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप सकते हैं और उन्हें शिबू सोरेन का भी आशीर्वाद मिल जायेगा। हालांकि कुछ विश्लेषक नहीं मानते कि डॉ सरफराज अहमद ने कल्पना सोरेन को चुनाव लड़ाने के लिए अपना इस्तीफा दिया है। इसका एक कारण यह है कि सरफराज अहमद अब वैसी हैसियत में नहीं हैं कि वह झामुमो से मोलभाव कर सकें। संभव है कि उन्होंने अपने लिए किसी और राजनीतिक विकल्प की तलाश कर ली होगी। इसलिए अपना इस्तीफा दिया हो। वह पहले भी कांग्रेस और राजद में रह चुके हैं। कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि राज्यसभा में भेजे जाने के आश्वासन के बाद सरफराज अहमद ने विधायकी से इस्तीफा दिया है।
क्यों बदली राजनीतिक परिस्थितियां
इडी ने 29 दिसंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक चिट्ठी भेज कर उनसे पूछताछ की मंशा जाहिर की थी। इडी ने लिखा था कि जमीन के दस्तावेजों में हेराफेरी से संबंधित एक मामले की जांच के लिए मुख्यमंत्री से पूछताछ जरूरी है। इसलिए वह (हेमंत सोरेन) दो दिनों के अंदर इसके लिए उपयुक्त जगह और तारीख की लिखित हर हाल में सूचना दें। अगर वह ऐसा नहीं करते, तो यह कानून का उल्लंघन होगा। मुख्यमंत्री ने इस समयावधि में इडी के पत्र का जवाब नहीं दिया।
अब संभावना है कि इडी उनसे पूछताछ के लिए और कड़े विकल्प आजमाये, क्योंकि इडी ने अपने पत्र में इसे आखिरी समन के तौर पर लेने की बात कही थी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इससे पहले भी छह समन भेजे गये थे, लेकिन वह किसी भी समन पर पूछताछ के लिए उपलब्ध नहीं हुए। उन्होंने इडी पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम करने का आरोप भी लगाया। वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गये थे। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाइकोर्ट भेज दिया था। झारखंड हाइकोर्ट ने उनकी याचिका पर यह कहते हुए सुनवाई नहीं की थी कि अब समन की तारीख बीत चुकी है। इडी ने इसके बाद भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को समन करना जारी रखा। इडी उन्हें सात बार समन भेज चुकी है।
क्या कह रहे हैं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
1 जनवरी को जब रांची में सरफराज अहमद के इस्तीफे को लेकर सियासी बयानबाजी का दौर चल रहा था, तब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची से दूर खरसावां में एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। वहां उन्होंने एक जनसभा को भी संबोधित किया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि समाज में कुछ ऐसे तत्व हैं, जो आदिवासी समाज को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। कभी जल, जंगल और जमीन से आदिवासियों को उजाड़ने की कोशिश होती है, तो कभी सीएनटी और एसपीटी में छेड़छाड़ होती है। आदिवासियों की परंपरा, सभ्यता और संस्कृति पर भी हमला किया जाता है। लेकिन हम आदिवासियों के मान-सम्मान और स्वाभिमान से किसी भी प्रकार का खिलवाड़ नहीं होने देंगे। आदिवासी समाज को जो भी तोड़ने का कोशिश करेगा, उसे माकूल जवाब दिया जायेगा। इससे पहले के कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री ने कहा था कि जब भी वह काम करना चाहते हैं, केंद्र सरकार उनके पीछे इडी लगा देती है, लेकिन वह गिरफ्तारी से नहीं डरते।
2024 चुनावी साल है, इसलिए तमाम घटनाक्रमों पर इस नजरिये से ध्यान देना जरूरी है। ऐसे में यदि इस समय झारखंड में कोई बड़ा राजनीतिक उलटफेर होता है, तो इसका असर निश्चित रूप से झारखंड पर पड़ेगा।
अगर झारखंड में सत्ता परिवर्तन होता है, तो बाद की स्थितियां और जटिल होंगी। फिलहाल बुधवार को होनेवाली सत्ताधारी विधायक दल की बैठक पर पूरे झारखंड की नजर है। इस बैठक में राजनीतिक अटकलबाजी पर से परदा उठने की पूरी संभावना है।