कोडरमा। साल 1984 में हुआ लोकसभा चुनाव कांग्रेस की रिकॉर्ड तोड़ जीत के लिए याद किया जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा हुई हमदर्दी और तुरन्त हुए चुनाव के बाद राजीव गांधी फिर प्रधानमंत्री बने थे। उस समय कोडरमा से कांग्रेस के टिकट पर तिलकधारी सिंह पहली बार सांसद चुने गए। साल 1984 में कोडरमा से कुल 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, जिनमें मुख्य मुकाबला कांग्रेस के तिलकधारी सिंह और भाजपा के रीतलाल प्रसाद वर्मा के बीच हुआ था। तिलकधारी सिंह को 208731 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 58.8 प्रतिशत था, वहीं तब लगातार दो बार सांसद रह चुके रीतलाल प्रसाद वर्मा को 97348 वोट ही मिले थे जो मतदाब का 27.45 प्रतिशत था। इनके अलावा निर्दलीय एनामुल हक को 10453, जनता पार्टी से विश्वनाथ मोदी को 10057, निर्दलीय नंदलाल गोप को 7392, निर्दलीय रामकिशोर मेहता को 5639, झामुमो के प्रदीप कुमार सरकार को 4470, निर्दलीय दिनेश सिंह को 3155, निर्दलीय अबुइनाम अख्तर को 1974, निर्दलीय इंद्र कुमार अग्रवाल को 1951, निर्दलीय सुधा रानी सिन्हा को 1903, आईसीजे से युगल किशोर प्रसाद को 1043 और निर्दलीय बुरहान साहू को 570 वोट मिले थे। तब कुल मतदाताओं की संख्या 766871 थी जिसमे 366462 ने अपने मत डाले थे जो कुल मतदान प्रतिशत 47.79 था।
शिक्षक की नौकरी छोड़ राजनीति में आए तिलकधारी
गिरिडीह जिले के देवरी प्रखंड के चतरो गांव में 8 जनवरी 1938 में जन्मे तिलकधारी सिंह के पिता पंचानन सिंह अपने पंचायत के मुखिया थे, वहीं मां नुपूर देवी कुशल गृहिणी थी। रांची विश्वविद्यालय से बीएससी करने के बाद 1962 में चकाई हाई स्कूल में वे विज्ञान के शिक्षक रहे। लेकिन 1968 में शिक्षक की नौकरी छोड़कर पहली बार मुखिया का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बाद में वे गिरिडीह जिला परिषद के अध्यक्ष चुने गए। 1971 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने के बाद 1977 में तिलकधारी प्रसाद सिंह गिरिडीह जिला कांग्रेस अध्यक्ष बने। इसके बाद 1980 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर धनवार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1984 में कांग्रेस ने उन्हें कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया और भारी मतों के अंतर से जीतकर वे संसद पहुंचे। कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस टिकट पर अकेले तिलकधारी प्रसाद सिंह ने 7 बार चुनाव लड़ा। लेकिन सफलता सिर्फ दो बार मिली। 1984 में कांग्रेस पार्टी की लहर में जीत हासिल हुई। दूसरी बार 1999 के चुनाव में फिर जीते, लेकिन इसके बाद कभी वापसी नहीं कर सके। इन दिनों वे बीमार हैं और अपने आवास पर ही रहते हैं।