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    Home»Top Story»जजों की नियुक्ति मामले में CJI और कानून मंत्री में मतभेद
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    जजों की नियुक्ति मामले में CJI और कानून मंत्री में मतभेद

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीNovember 26, 2016No Comments4 Mins Read
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    नयी दिल्ली:  न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेदों का सिलसिला अभी भी जारी है। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने एक बार फिर आज उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी का मामला उठाया जबकि विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पांच सौ पद रिक्त हैं। ये पद आज कार्यशील होने चाहिए थे परंतु ऐसा नहीं है। इस समय भारत में अदालत के अनेक कक्ष खाली हैं और इनके लिये न्यायाधीश उपलब्ध नहीं है। बड़ी संख्या में प्रस्ताव लंबित है और उम्मीद है सरकार इस संकट को खत्म करने के लिये इसमें हस्तक्षेप करेगी।’’

    न्यायमूर्ति ठाकुर यहां केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। प्रधान न्यायाधीश के इस कथन से असहमति व्यक्त करते हुये विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि सरकार ने इस साल 120 नियुक्तियां की हैं जो 1990 के बाद से दूसरी बार सबसे अधिक हैं। इससे पहले 2013 में सबसे अधिक 121 नियुक्तियां की गयी थीं। रवि शंकर प्रसाद ने कहा, ‘‘हम ससम्मान प्रधान न्यायाधीश से असहमति व्यक्त करते हैं। इस साल हमने 120 नियुक्तियां की हैं जो 2013 में 121 नियुक्तियों के बाद सबसे अधिक है। सन् 1990 से ही सिर्फ 80 न्यायाधीशों की नियुक्तियां होती रही हैं। अधीनस्थ न्यायपालिका में पांच हजार रिक्तियां हैं जिसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है। यह ऐसा मामला है जिसपर सिर्फ न्यायपालिका को ही ध्यान देना है।’’ कानून मंत्री ने कहा, ‘‘जहां तक बुनियादी सुविधाओं का संबंध है तो यह एक सतत् प्रक्रिया है। जहां तक नियुक्तियों का मामला है तो उच्चतम न्यायालय का ही निर्णय है कि प्रक्रिया के प्रतिवेदन को अधिक पारदर्शी, उद्देश्य परक, तर्कसंगत, निष्पक्ष बनाया जाये और सरकार का दृष्टिकोण पिछले तीन महीने से भी अधिक समय से लंबित है और हमें अभी भी उच्चतम न्यायालय का जवाब मिलना शेष है।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधिकरणों में भी ‘‘मानवशक्ति का अभाव’’ है और वे भी बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे हैं जिसकी वजह सें मामले पांच से सात साल तक लंबित हैं। इसकी वजह से शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की इन अर्धशासी न्यायिक निकायों की अध्यक्षता करने में दिलचस्पी नहीं है।

    प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘न्यायाधिकरणों की स्थिति मुझे आभास दिलाती है कि आप (न्यायाधिकरण) भी बेहतर नहीं हैं। आप भी मानवशक्ति की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। आप न्यायाधिकरण की स्थापना नहीं कर सकते, आप कई स्थानों पर इसकी पीठ गठित नहीं कर सकते क्योंकि आपके पास सदस्य ही नहीं हैं।’’ न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, ‘‘यदि इस न्यायाधिकरण की क्षमता 65 है और यदि आपके यहां 18 या 20 रिक्तियां हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास काफी संख्या में कमी है। इससे कार्य प्रभावित होना ही है और इसी वजह से आपके यहां पांच और सात साल पुराने मामले भी हैं। कम से काम आप (सरकार) यह तो सुनिश्चित कीजिये कि ये न्यायाधिकरण पूरी क्षमता से काम करें।’’

    प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि न्यायाधिकरण पूरी तरह सुसज्जित नहीं है और वे खाली पड़े हैं और आज स्थिति यह हो गयी है कि उच्चतम न्यायालय का कोई भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायाधिकरण की अध्यक्षता नहीं करना चाहता। मुझे अपने सेवानिवृत्त सहयोगियों को वहां भेजने में कष्ट होता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सरकार उचित सुविधायें मुहैया कराने के लिये तैयार नहीं है। रिक्तियों के अलावा न्यायाधिकरणों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी चिता का विषय है।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘विभिन्न न्यायाधिकरणों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संबंधी नियमों में संशोधन की आवश्यकता है ताकि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी इन पदों के योग्य हो सकें।

    समारोह में कानून मंत्री ने कहा कि केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का न्यायिक और प्रशासनिक उत्कृष्ठता के सफल कलेवर की वजह से न्यायाधिकरणों के बीच भी अद्भुत अनुभव है। उन्होंने कहा कि इस न्यायाधिरण ने सेवा मामलों और नियमों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने कहा कि कानून में स्पष्टता और परस्पर विरोधी पक्षों के पक्ष वाली न्यायिक व्यवस्थाओं के अभाव की वजह से सेवा संबंधी मुकदमों की संख्या बढ़ रही है।

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