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    Home»Jharkhand Top News»संथाल परगना में कांग्रेस के लिए हर कदम पर मुसीबत
    Jharkhand Top News

    संथाल परगना में कांग्रेस के लिए हर कदम पर मुसीबत

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 1, 2024Updated:August 1, 2024No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    अपनी सीटें बचा ले जाये, तो यही उसकी बड़ी कामयाबी मानी जायेगी
    लोकसभा चुनाव में मात्र दो विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को मिली थी बढ़त

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड (Jharkhand) की सत्ता की चाबी माने जानेवाले संथाल परगना में इस बार चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने के आसार साफ नजर आ रहे हैं। आजाद सिपाही के चुनावी रथ के जरिये पूरे इलाके के चुनावी माहौल को जानने-समझने के लिए इसके संवाददाताओं की टीम ने जो कुछ देखा-सुना है, उससे तो यही दिख रहा है कि संथाल परगना में कोई भी पार्टी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो सकती है। 2019 में संथाल परगना की चार सीटें जीत कर कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया था। इनमें जामताड़ा, जरमुंडी, पाकुड़ और महगामा शामिल हैं। बाद में पोड़ैयाहाट की सीट उसे बोनस में मिल गयी। लेकिन इस बार कांग्रेस की नाव इन सभी सीटों पर डगमगाती नजर आ रही है। उसके सामने सीटिंग विधायकों के खिलाफ एंटी-इंकमबेंसी के माहौल को खत्म करने की बड़ी चुनौती है। अभी संथाल से कांग्रेस के पांच विधायकों में से दो मंत्री हैं और एक कांग्रेस विधायक दल के नेता। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने केवल गोड्डा से प्रत्याशी दिया था, लेकिन उसे इस क्षेत्र की केवल मधुपुर में ही बढ़त मिल सकी थी, जो झामुमो के पास है। ऐसे में कांग्रेस के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक ही है। संथाल परगना में कांग्रेस के भीतर के माहौल और उसकी संगठनात्मक स्थिति के अलावा पार्टी की रणनीति को देख कर तो यही लगता है कि कांग्रेस को अपनी सीटें बचाने के लिए इस बार कड़ी मेहनत करनी होगी। संथाल परगना में विधानसभा चुनाव को लेकर क्या है कांग्रेस के प्रति माहौल और क्या है पार्टी की तैयारी और चुनौती, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    संथाल परगना का माहौल इन दिनों बेहद खास हो गया है। एक तरफ सावन के पवित्र माह में शिवभक्तों का ‘बोल बम’ का नारा है, तो दूसरी तरफ आसन्न विधानसभा चुनाव के लिए हर रोज गरम होता सियासी माहौल है। इन दोनों परस्पर विपरीत माहौल के बीच लोग भी सियासी चर्चाओं में खुल कर हिस्सा ले रहे हैं और चौक-चौराहों पर वर्तमान विधायकों के प्रदर्शन के मूल्यांकन के साथ संभावित मुकाबले की तस्वीर भी खींची जा रही है। यह तस्वीर हालांकि अभी धुंधली ही है, लेकिन इससे एक अंदाजा तो मिल ही जाता है। पार्टियों के भीतर की गतिविधियां, टिकट के दावेदारों का जोड़-तोड़ और सामाजिक समीकरणों का ताना-बाना संथाल में खूब बुना जा रहा है।
    इस माहौल में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के लिए इस बार संथाल में क्या संभावनाएं हैं, यह जानना बेहद दिलचस्प होगा। केवल संथाल परगना ही नहीं, पूरे झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर सबसे अधिक चिंतित कांग्रेस है। उसके सामने 2019 के विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है।

    क्या हुआ लोकसभा चुनाव में
    हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 में से पांच सीटों पर इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की थी। इनमें तीन सीटें झामुमो ने और दो सीटें कांग्रेस ने जीतीं। यदि विधानसभा क्षेत्रवार बात करें, तो झामुमो को 13 और कांग्रेस को 15 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल हुई। संथाल परगना में कांग्रेस ने केवल गोड्डा सीट पर प्रत्याशी उतारा था, जिसके छह विधानसभा क्षेत्रों में से केवल मधुपुर और महगामा में उसे बढ़त मिल सकी, जबकि इस संसदीय क्षेत्र के जरमुंडी और पोड़ैयाहाट विधानसभा सीट उसके पास है। इसी तरह दुमका संसदीय क्षेत्र के तहत जामताड़ा और गोड्डा संसदीय क्षेत्र के तहत पाकुड़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने झामुमो को बढ़त दिलायी थी।

    2019 में शत-प्रतिशत था कांग्रेस का स्ट्राइक रेट
    2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने संथाल परगना की चार सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे और सभी सीटों पर उसने जीत हासिल की थी। ये सीटें थीं, पाकुड़, जामताड़ा, जरमुंडी और महगामा। बाद में पोड़ैयाहाट से झाविमो के टिकट पर जीते प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गये, तो उसके विधायकों की संख्या पांच हो गयी। कांग्रेस के जीतनेवाले प्रत्याशियों में आलमगीर आलम (पाकुड़), डॉ इरफान अंसारी (जामताड़ा), बादल पत्रलेख (जरमुंडी) और दीपिका पांडेय सिंह (महगामा) शामिल हैं। इनमें आलमगीर आलम को कांग्रेस विधायक दल का नेता बनाया गया और उनके साथ बादल पत्रलेख को कैबिनेट में भी जगह मिली। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आलमगीर आलम को इडी ने टेंडर घोटाले में गिरफ्तार कर लिया गया, तब डॉ इरफान अंसारी और दीपिका पांडेय सिंह को मंत्री बनाया गया। प्रदीप यादव को आलमगीर आलम के स्थान पर विधायक दल का नेता बनाया गया।

    इस बार कांग्रेस के सामने क्या है चुनौती
    संथाल परगना में सीट शेयरिंग में इस बार भी कांग्रेस को पांच सीटें ही मिलने के आसार हैं। ये वही सीटें होंगी, जो अभी कांग्रेस के पास है। इसलिए कयास यही लगाये जा रहे हैं कि पाकुड़ को छोड़ कर कांग्रेस के अन्य प्रत्याशी वही रहेंगे। पाकुड़ में आलमगीर आलम के स्थान पर उनके पुत्र तनवीर आलम को टिकट दिये जाने की संभावना है। लेकिन इन सीटिंग विधायकों के पांच साल के प्रदर्शन और क्षेत्र में उनके खिलाफ एंटी-इंकमबेंसी ने कांग्रेस की पेशानी पर बल ला दिया है। पाकुड़ में आलमगीर आलम के प्रति सहानुभूति को छोड़ दिया जाये, तो बाकी चार क्षेत्रों में विधायकों के प्रति लोगों की राय सकारात्मक नहीं है।

    चादर ही ओढ़ते रहे जरमुंडी के बादल
    जरमुंडी से बादल पत्रलेख जब 2019 में पहली बार जीते थे, तब उनकी सादगी के बारे में बहुत कुछ कहा गया था। उस चुनाव में उन्होंने 52 हजार 507 वोट लाकर भाजपा के देवेंद्र कुमार को करीब तीन हजार वोटों से हराया था। देवेंद्र कुमार को 49 हजार 408 वोट मिले थे। विधायक बनने के बाद उन्हें मंत्री भी बनाया गया और कृषि विभाग दिया गया। चुनाव से पहले की उनकी सादगी धीरे-धीरे खत्म होने लगी और साढ़े चार साल में वह क्षेत्र से पूरी तरह कट से गये। इससे लोग बेहद नाराज हैं। लोग कहते हैं कि बादल बाबू का टेंपो (विधानसभा चुनाव में वह टेंपो से प्रचार करते थे और शपथ ग्रहण करने भी वह टेंपो से ही पहुंचे थे) अब स्कॉर्पियों-फॉर्च्यूनर में बदल गया है। साढ़े चार साल तक वह चादर ही ओढ़ते रहे। पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता भी उनसे कटे ही नजर आये।

    जामताड़ा में कांग्रेस की परेशानी बड़बोलापन
    जामताड़ा में 2019 में डॉ इरफान अंसारी ने एक लाख 12 हजार 829 वोट लाकर 74 हजार 88 वोट लाने वाले भाजपा के वीरेंद्र मंडल को 38 हजार वोटों के अंतर से हराया था। आलमगीर आलम के जेल जाने के बाद उनके स्थान पर डॉ इरफान अंसारी को हाल ही में मंत्री बनाया गया है। वह इलाके में सक्रिय भी हैं, लेकिन उनका बड़बोलापन और अनाप-शनाप बयानबाजी ही उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है। डॉ इरफान अंसारी के बारे में लोग बताते हैं कि वह अक्सर गांवों में जाते हैं और बच्चों-बुजुर्गों की खूब मदद करते हैं। पार्टी की स्थानीय इकाई में डॉ इरफान को लेकर कोई खास उत्साह नहीं है।

    महगामा में डगमगा रही है दीपिका की नाव
    महगामा से 2019 में कांग्रेस ने दीपिका पांडेय सिंह को उतारा था, जिन्होंने 87 हजार 766 वोट लाकर भाजपा के अशोक कुमार को करीब 12 हजार वोटों से हराया था। अशोक कुमार को 75 हजार 590 वोट मिले थे। साढ़े चार साल तक लगातार असंतोष की चादर ओढ़े रहनेवाली दीपिका को अभी बादल पत्रलेख के स्थान पर मंत्री बनाया गया है। महगामा में उनके प्रति लोगों की राय बहुत सकारात्मक नहीं है। लोग कहते हैं कि दीपिका पांडेय सिंह कुछ खास लोगों के घिरी रहती हैं और आम लोगों से उनका सरोकार कम ही है। वह स्थानीय राजनीति के स्थान पर राज्य स्तरीय राजनीति को तरजीह देती हैं। पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार दीपिका अक्सर अपनी ऊंची पहुंच का हवाला देती हैं, जिससे जमीनी स्तर के कार्यकर्ता असहज हो जाते हैं।

    पोड़ैयाहाट में प्रदीप यादव भी मुश्किल में
    2019 में पोड़ैयाहाट से झाविमो के टिकट पर जीते प्रदीप यादव इलाके के कद्दावर नेता हैं। उस चुनाव में उन्होंने 77 हजार 358 वोट लाकर भाजपा के गजाधर सिंह को करीब 14 हजार वोटों से हराया था। गजाधर सिंह को 63 हजार 761 वोट मिले थे। बाद में प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गये और फिलहाल कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं। कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में गोड्डा संसदीय सीट से उतारा था, लेकिन वह हार गये। यहां तक कि पोड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र में उन्हें 93 हजार 136 मत ही मिले और वह भाजपा से पिछड़ गये। इलाके में प्रदीप यादव की छवि एक जुझारू नेता की है, लेकिन लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद वह मुश्किल में नजर आ रहे हैं। उनके साथ दूसरी समस्या यह है कि कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं के बड़े वर्ग ने उन्हें अब तक स्वीकार नहीं किया है। इस वर्ग को साथ लाने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी।
    इन तमाम परिस्थितियों के बीच अब यह साफ हो गया है कि संथाल परगना में कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है। वैसे अभी तीन महीने का समय है, लेकिन यदि इस दौरान पार्टी नेतृत्व ने इधर ध्यान नहीं दिया, तो उसके लिए 2019 का प्रदर्शन दोहराना मुश्किल हो जायेगा।

    Congress Jharkhand Congress santhal pargana
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