-राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जनवरी में लगा चुके हैं इस पर प्रतिबंध, इसे 20 राज्यों के नागरिक अधिकार संगठनों ने दी है चुनौती
वाशिंगटन। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने देश में जन्मजात नागरिकता के अधिकार पर गुरुवार को सुनवाई शुरू की। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत करते ही जनवरी में इस अधिकार पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसले जून तक आने की उम्मीद है। इस फैसले से संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की शक्तियों, न्यायिक क्षेत्राधिकार और 14वें संविधान संशोधन से संबंधित अहम सवालों के जवाब भी मिल सकते हैं।
सीएनएन की खबर के अनुसार, इस अधिकार में यह व्यवस्था है कि अमेरिका में जन्म लेने वाला हर बच्चा संयुक्त राज्य अमेरिका का नागरिक होता है। भले ही बच्चे के माता-पिता अमेरिका में अस्थायी तौर पर या अवैध रूप से रह रहे हों। इस साल जनवरी में राष्ट्रपति पद संभालते ही डोनाल्ड ट्रंप ने जन्मजात नागरिकता के अधिकार पर रोक लगा दी थी। ट्रंप के इस फैसले को डेमोक्रेट सरकार वाले करीब 20 राज्यों के अप्रवासियों और नागरिक अधिकार संगठनों ने अदालत में चुनौती दी है।
ट्रंप के फैसले को अदालत में चुनौती देने वाले अप्रवासियों और नागरिक अधिकार संगठनों का दावा है कि राष्ट्रपति का यह आदेश संविधान के 14वें संशोधन का उल्लंघन करता है। मैरीलैंड, वॉशिंगटन और मेसाच्युसेट्स के संघीय जज ट्रंप प्रशासन के आदेश को लागू करने पर पूरे देश में रोक लगा चुके हैं। ट्रंप प्रशासन ने निचली अदालतों के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को करीब दो घंटे तक सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट यह भी विचार करेगा कि क्या निचली अदालत पूरे देश में सरकार के फैसले को लागू होने पर रोक लगा सकती है या नहीं। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि संघीय जजों को केवल कुछ मुकदमों के आधार पर पूरे देश के लिए संघीय नीतियों को रोकने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
अगर सुप्रीम कोर्ट ट्रंप प्रशासन के इस तर्क पर सहमत हो जाता है तो राष्ट्रपति का आदेश उन 28 राज्यों में लागू हो सकता है, जिन्होंने मुकदमा नहीं किया है। इससे एक विभाजित प्रणाली निर्मित होने की आशंका है, जहां कुछ राज्यों में जन्मे बच्चों को स्वतः नागरिकता मिल जाएगी और अन्य को नहीं।
सीएनएन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की राय अलग-अलग हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो यह विवाद और लंबा खिंच सकता है। विभाजित फैसला संवैधानिक टकराव की तरफ भी बढ़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को दो घंटे से अधिक समय तक चली बहस से फिलहाल कुछ भी संकेत नहीं मिला।