विशेष
कोलकाता रेप कांड पर पार्टी सांसदों और विधायकों की टिप्पणी से लोग दुखी
ममता बनर्जी की पार्टी का स्टैंड भी अब तक जनता के सामने नहीं आ सका है
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
कोलकाता में कानून की एक छात्रा से सामूहिक गैंगरेप का मुद्दा एक बार फिर पश्चिम बंगाल में जितना बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनने लगा है, उतना ही बड़ा नारी उत्पीड़न का मुद्दा बनकर उभर रहा है। इस मामले में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं की असंवेदनशील टिप्पणी स्त्री की मर्यादा, सम्मान और अस्मिता के खिलाफ शर्मनाक, दुर्भाग्यपूर्ण और संवेदनहीन प्रतिक्रिया है। इन नेताओं ने गैंगरेप मामले पर विवादित बयान से राज्य और देश में भारी जनाक्रोश पैदा हो गया था। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के बयानों और सोच में एक बार फिर शर्मनाक ढंग से पीड़िता पर दोष मढ़ने की कोशिश की गयी है। इस मामले में सत्तारूढ़ टीएमसी पार्टी अंदर और बाहर दोनों मोर्चों पर घिरती हुई नजर आ रही है। जहां इस मामले में पार्टी के अंदर गुटबाजी एक बार फिर सामने आयी है, वहीं भाजपा आक्रामक रूप से ममता सरकार को घेर रही है। लोगों का यह आक्रोश इसलिए भी साफ नजर आ रहा है, क्योंकि पश्चिम बंगाल के समाज की छवि पूरी दुनिया में ‘भद्र लोक’ की है और इस समाज के भीतर इस तरह की असंवेदनशील टिप्पणियां आम तौर पर अस्वीकार की जाती हैं। खास बात यह भी है कि इस मामले में सत्तारूढ़ टीएमसी का स्टैंड भी अब तक साफ नहीं हुआ है, जिससे लोग निराश हैं। क्या है कोलकाता का यह मामला और कैसे इसने ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
कोलकाता में कानून की एक छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने जहां पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था की बदहाल स्थिति को उजागर कर दिया है, वहीं इस शर्मनाक कांड पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की असंवेदनशील टिप्पणियों ने लोगों के भीतर कई सवालों को जन्म दे दिया है। आम तौर पर ‘भद्र’ माना जानेवाला पश्चिम बंगाल का समाज अपने राज्य के कुछ नेताओं की इस मामले पर की गयी टिप्पणी से गुस्से में तो है ही, दुखी भी है।
क्या है पूरा मामला
कोलकाता के एक लॉ कॉलेज में एक छात्रा से गैंगरेप की घटना हुई। आरोपी मनोजीत मिश्रा उसी कॉलेज का पूर्व छात्र और टीएमसी का नेता है। उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इस शर्मनाक घटना के बाद दुखद बात यह हुई कि सत्तारूढ़ टीएमसी के दो सांसदों, महुआ मोइत्रा और कल्याण बनर्जी ने ऐसी असंवेदनशील टिप्पणी कर दी, जिससे राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया। सांसद महुआ मोइत्रा ने जहां पीड़ित लड़की को ही घटना के लिए जिम्मेदार बता दिया, वहीं कल्याण बनर्जी ने कह दिया कि यह एक मामूली घटना है। उधर विधायक मदन मित्रा ने कह दिया कि यदि लड़की वहां नहीं जाती, तो यह घटना ही नहीं होती। इसके बाद सत्तारूढ़ टीएमसी ही विवादों में घिर गयी। बाद में पार्टी ने महुआ मोइत्रा, कल्याण बनर्जी और मदन मित्रा के उन बयानों पर निराशा व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया कि इन राजनेताओं के बयान पार्टी लाइन से परे है। मदन मित्रा को तो कारण बताओ नोटिस तक दिया गया है।
गुस्से में बंगाल के लोग
यह एक बदतर स्थिति है कि जिस पार्टी के नेताओं ने ये दुर्भाग्यपूर्ण बयान दिये हैं, उस पार्टी की सुप्रीमो एक महिला ही है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि ममता बनर्जी जैसी तेजतर्रार मुख्यमंत्री के शासन और नेतृत्व के वर्षों के दौरान टीएमसी के भीतर नारी सम्मान और अस्मिता को लेकर संवेदनशीलता लाने और मानसिकता में बदलाव लाने के प्रयास विफल होते नजर आ रहे हैं। अक्सर महिलाएं और महिला राजनेता पुरुष नेताओं के हाथों अश्लील, अभद्र और तौहीन भरी टिप्पणियों की शिकार होती रही हैं। ऐसे बयानों के बावजूद अक्सर ये राजनेता किसी कठोर कार्रवाई की बजाय हल्की-फुल्की फटकार के बाद बच निकलते हैं। ये बयान कभी महिलाओं की बॉडी शेमिंग करते नजर आते हैं, तो कभी बलात्कार जैसे गंभीर अपराध को मामूली बताने की कोशिश करते हुए नजर आते हैं। इसके साथ ही ये चिंताजनक संदेश भी जाता है कि महिलाओं के बारे में हल्के और आपत्तिजनक बयान देना विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए सामान्य बात है।
बंगाल के समाज के लिए चुनौती
कोलकाता के प्रतिष्ठित लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना ने न केवल राजनीतिक सोच और कानून के मंदिरों को शर्मसार किया है, बल्कि हर संवेदनशील मन को झकझोर दिया है। पीड़िता एक लॉ कॉलेज में अध्ययनरत छात्रा थी, जो अपने उज्ज्वल भविष्य के सपनों के साथ शिक्षा के पथ पर अग्रसर थी। घटना की रात वह अपने कुछ परिचितों के साथ बाहर थी, जिनमें से ही कुछ ने उसकी अस्मिता को रौंद डाला। उसे नशा दिया गया और फिर सुनसान स्थान पर ले जाकर कई लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए कुछ आरोपियों को हिरासत में लिया है, लेकिन सवाल यह है कि जब कानून पढ़ने वाली लड़की खुद असुरक्षित है, तो आम महिलाएं कैसे सुरक्षित होंगी? क्या यह कानून की शिक्षा देने वाली संस्थाओं एवं शासन करने वाली सत्ताओं के लिए आत्ममंथन का समय नहीं है? ऐसी घटनाओं पर निर्भया कांड के बाद बने कानूनों का सख्ती से पालन हो। रेप को सिर्फ एक ‘जुर्म’ नहीं, ‘राष्ट्रीय आपदा’ माना जाये और उसकी रोकथाम के लिए शिक्षा, संस्कार और तकनीकी सुरक्षा साधनों को प्राथमिकता दी जाये। कोलकाता की लॉ छात्रा की यह दर्दनाक घटना हमें चेताती है कि केवल कानून बना लेना काफी नहीं, जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक बेटियां असुरक्षित रहेंगी। यह केवल एक छात्रा की लड़ाई नहीं, बल्कि हर बेटी की सुरक्षा की लड़ाई है। न्याय तब होगा, जब ऐसी घटनाएं रुकेंगी और उसके लिए हमें मिलकर लड़ना होगा।
अक्षम्य हैं ऐसी टिप्पणियां
कोलकाता की लॉ छात्रा मामले में टीएमसी नेताओं की टिप्पणियां निस्संदेह निंदनीय हैं, लेकिन पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा भी कड़े शब्दों में इसकी निंदा की जानी चाहिए। ममता बनर्जी के सामने एक और चुनौती है। आरजी कर मेडिकल कॉलेज बलात्कार- हत्याकांड और उसके बाद देश भर में उपजा आक्रोश अभी भी यादों में ताजा है। निस्संदेह, केवल टिप्पणियों से पार्टी को अलग कर देना ही पर्याप्त नहीं है। सार्वजनिक जीवन में नारी सम्मान एवं जीवन-मूल्यों के खिलाफ जाने वाले लोगों के लिए परिणाम तय होने चाहिए। अन्यथा समाज में ये संदेश जायेगा कि ऐसे कुत्सित प्रयासों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होती है। किसी अपराध की रोकथाम अच्छे शासन की अनिवार्य शर्त बननी चाहिए, लेकिन जब कोई अपराध होता है, तो प्रभावी प्रतिक्रिया भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। टीएमसी दोनों ही मामलों में विफल प्रतीत होती है। ऐसे मामलों में अत्याचार करने वालों की ही भांति अत्याचार का समर्थन करने वाले दोषी हैं। अत्याचारियों के लिए ही त्वरित न्याय और सख्त सजा जरूरी है, लेकिन जन-प्रतिनिधि की निर्लज्ज बयानबाजी भी अपराध के दायरे में होनी चाहिए।