विशेष
पहली बार इस स्कूल के बच्चों ने जाना कि परीक्षा में कोई फेल भी करता है
नियमों के मकड़जाल में फंस कर रह गयी है झारखंड की प्रतिष्ठित आवासीय विद्यालय
फिर से परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन को वापस हासिल करना होगा इस विद्यालय को
छात्रों के उज्जवल भविष्य के लिए संजोना होगा नेतरहाट आवासीय विद्यालय को
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
नेतरहाट, यानी छोटानागपुर का खूबसूरत पर्यटक स्थल, लेकिन इसके अलावा छोटानागपुर की इस रानी का नाम दुनिया भर में जिस चीज के लिए चर्चित है, वह है यहां का आवासीय विद्यालय। नेतरहाट के बारे में कहा जाता है कि नेतरहाट एक संस्कृति है। एक जीवन दर्शन है नेतरहाट। शिक्षा जगत में विशिष्ट प्रयोग और भारी उपलब्धियों का नाम है नेतरहाट। सम्मेलन का मंच हो या आश्रम का बरामदा, निरंतर सीखने की प्रक्रिया का दर्शन है नेतरहाट। जैसे साहित्य मे ह्यबारहमासाह्ण का विशिष्ट वर्णन मिलता है, वैसे ही नेतरहाट में शिक्षण-प्रशिक्षण का बारहमासा है। गुरुकुल की गुरु-शिष्य परंपरा का आधुनिक परिसंस्करण- नेतरहाट विद्यालय ने शिक्षकों एवं माताओं से प्राप्त अनुभूति के अनुरूप अपने विद्यार्थियों के सामाजिक, भावात्मक, संस्कारित आचरण का उत्तरोत्तर विकास करते हुए उन्हें स्वयं के प्रकाश की ओर उन्मुख करता है आवासीय विद्यालय नेतरहाट। लेकिन ह्यअफसरों-वैज्ञानिकों की फैक्ट्रीह्ण के रूप में देश-दुनिया में चर्चित इस प्रतिष्ठित स्कूल की साख लगातार गिर रही है। अव्यवस्था और नियमों के मकड़जाल में झारखंड के इस धरोहर को ऐसा फंसा दिया गया है कि इस बार पहली बार इस स्कूल के पांच बच्चे बोर्ड की परीक्षा में फेल कर गये। कभी बोर्ड की परीक्षा में टॉप 10 की सूची में केवल नेतरहाट आवासीय विद्यालय का नाम रहता था, लेकिन अब अपनी गरिमा लगातार खोती रही। नेतरहाट आवासीय विद्यालय की इस बदहाली के क्या हैं कारण और झारखंड की इस धरोहर को बचाने के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
नेतरहाट पूरी दुनिया में दो कारणों से चर्चित है। पहला है यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और दूसरा यहां का आवासीय विद्यालय, जिसे ह्यअफसरों-वैज्ञानिकों की फैक्ट्रीह्ण भी कहा जाता है। कभी इस स्कूल में नामांकन होना प्रतिष्ठा का विषय माना जाता था, लेकिन अव्यवस्था और नियमों के मकड़जाल में उलझ कर इस विद्यालय ने इस साल पहली बार जाना कि परीक्षा में बच्चे फेल भी करते हैं। इस साल 10वीं-12वीं की परीक्षा में इस स्कूल के पांच बच्चे फेल कर गये, जिससे इसकी साख पर गंभीर चोट पहुंची है।
परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन के तीन मजबूत स्तंभों पर टिका मशहूर नेतरहाट आवासीय विद्यालय कभी झारखंड और अखंड बिहार का गौरव था। मनोरम और शांत वादियों के बीच बसा यह विद्यालय अपनी उत्कृष्ट शिक्षा और अनुशासित माहौल के लिए न केवल बिहार-झारखंड, बल्कि देश-विदेश में भी जाना जाता था। लेकिन आज यह प्रतिष्ठित संस्थान बदहाली की कगार पर है। शिक्षकों की भारी कमी के कारण विद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, जिसका असर छात्रों के परिणामों पर भी साफ दिखाई दे रहा है।
2012 में स्वायत्तता मिली
झारखंड सरकार ने 2012 में नेतरहाट स्कूल को स्वायत्त बना दिया, ताकि इसकी विशिष्ट व्यवस्था बनी रहे। लेकिन अधिकारियों को यह व्यवस्था रास नहीं आयी और उन्होंने नियमों-परिनियमों का ऐसा मकड़जाल बुना कि उसमें फंस कर यह स्कूल तड़प रहा है। सबसे अचरज की बात यह है कि नेतरहाट स्कूल के खिलाफ की गयी किसी भी शिकायत की जांच विभागीय बाबू करते हैं। यहां तक कि प्राचार्य और शिक्षकों को परेशान करने की नीयत से शिकायतें की जाती हैं और अधिकारी इसकी जांच करने लगते हैं।
बदली बोर्ड व्यवस्था, गायब हुए टॉपर
शिक्षा व्यवस्था में बदलाव के तहत विद्यालय को स्टेट बोर्ड से हटाकर सीबीएसइ बोर्ड से जोड़ा गया। इस बदलाव के बाद टॉपरों की सूची में नेतरहाट के छात्रों का नाम लगभग गायब हो गया है। शिक्षकों की कमी और बोर्ड परिवर्तन ने विद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता को और प्रभावित किया है।
शिक्षकों की कमी से जूझ रहा विद्यालय
नेतरहाट आवासीय विद्यालय में कुल 47 नियमित शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में मात्र 20 शिक्षक ही कार्यरत हैं। इस कमी ने विद्यालय की शैक्षणिक व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचायी है। कभी मैट्रिक परीक्षा में राज्य में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले इस विद्यालय के छात्रों का नाम अब टॉपरों की सूची में दिखाई नहीं देता। झारखंड के गठन के बाद वर्ष 2019 तक इस विद्यालय के छात्र नियमित रूप से स्टेट टॉपर बनते थे और टॉप 10 में कम से कम आठ स्थान नेतरहाट के ही होते थे, लेकिन अब स्थिति उलट चुकी है।
गुरुकुल पद्धति पर भी संकट
नेतरहाट आवासीय विद्यालय अपनी गुरुकुल पद्धति के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां छात्र हॉस्टल की बजाय आश्रम में रहते हैं, जहां प्रत्येक आश्रम का एक शिक्षक अभिभावक की भूमिका निभाता है और उनकी पत्नी को आश्रम की माता माना जाता है। यह व्यवस्था बच्चों को पारिवारिक माहौल प्रदान करती है, लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण इस अनूठी व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू करने में भी कठिनाई हो रही है। विद्यालय में कार्यरत सभी नियमित शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए आश्रम में ही आवास की व्यवस्था है और उनके बच्चों का नामांकन भी इसी विद्यालय में होता है।
गौरवशाली इतिहास है इस विद्यालय का
वर्ष 1954 में बिहार सरकार द्वारा स्थापित नेतरहाट आवासीय विद्यालय का उद्देश्य होनहार बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना था। इस उद्देश्य में विद्यालय काफी हद तक सफल रहा। अपनी स्थापना से लेकर अब तक इस विद्यालय ने सैकड़ों छात्रों को आइएएस, आइपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर और बड़े अधिकारियों के रूप में देश-विदेश में ख्याति दिलायी। स्वायत्तता के कारण यहां प्रवेश से लेकर शिक्षण तक में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होता था, जिसने इसकी गुणवत्ता को और बढ़ाया।
जेएफ पीयर्स की परिकल्पना है यह विद्यालय
नेतरहाट में स्कूल स्थापित करने की परिकल्पना भारत में पब्लिक स्कूलों के जनक कहे जानेवाले अंग्रेज शिक्षाविद् जेएफ पीयर्स ने की थी। तत्कालीन बिहार के शिक्षा सचिव जगदीश चंद्र माथुर से उन्होंने 1951 में नेतरहाट के रास्ते में कहा था, 40 बरस से बच्चों को पढ़ाने और उनकी शिक्षा का प्रबंध करने का मौका विभिन्न परिस्थितियों और हैसियत से मुझे मिलता रहा है। एक शिक्षक, या कहिए कि शिक्षाविद की यह यात्रा, यह सफर, मानो एक निरंतर खोज रही है। बीसियों स्कूलों के नक्शे बनाये, उनकी कार्यविधि निश्चित की, अध्यापकों को चुना, विकास की योजनाएं चालू की, समस्याएं पैदा की और सुलझायी। लेकिन सच पूछिये, तो वह सफर न पूरा हुआ और न होगा। जिस चीज की खोज थी, वह तो मृग की कस्तूरी की भांति मेरे ही पास थी। हजारों की शिक्षा के मंसूबे बांधना और उसका प्रबंध करना श्रेयष्कर है, किंतु ह्यशिक्षकह्ण, यह शब्द तो उसी के लिए सार्थक है, जो बच्चों की छोटी-सी जमात, दस-पंद्रह छात्रों की एक कक्षा में से प्रत्येक के विकासशील व्यक्तित्व की विशेषताओं को समझ कर, मानो अपनी वाणी, विचारों और व्यवहार की खाद द्वारा एक छोटी क्यारी के पौधों को पनपता देख सके। शिक्षक तो माली है, वनस्पति-विज्ञानवेत्ता या मुगल गार्डन के नक़्शे बनानेवाला इंजीनियर या स्थपति नहीं।
पीयर्स ने यह बात नेतरहाट के रास्ते में कही थी, जब माथुर उन्हें लेकर वहां जा रहे थे। बाद में उनकी संकल्पना और बिहार के तत्कालीन मुख्य सचिव लल्लन प्रसाद सिंह की विस्तृत रिपोर्ट के आधार पर 1954 में इस स्कूल की शुरूआत हुई। अपनी स्थापना के बाद से यह आवासीय स्कूल लगातार उपलब्धियों के शिखर पर चढ़ता गया। अनुशासन, समर्पण और सर्वश्रेष्ठ को हासिल करने की उत्कंठा ने यहां के छात्रों और शिक्षकों को ऐसी प्रेरणा दी कि यह स्कूल पूरी दुनिया में चर्चित हो गया। गुरुकुल और गुरु-शिष्य की परंपरा का निर्वहन करते हुए इस स्कूल ने दुनिया को वह रोशनी दिखायी, जिसके लिए मानवता तरसती है। लगातार साल-दर-साल इस स्कूल का रिजल्ट बेहतर होता गया और एक समय स्थिति यह थी कि मैट्रिक की मेरिट लिस्ट में पहले 10 स्थान पर यहां के बच्चे होते थे। इस स्कूल के विद्यार्थी जीवन के हर क्षेत्र में चमकते रहे और अपने साथ नेतरहाट का नाम भी दुनिया भर में फैलता गया।
भविष्य को लेकर गंभीर आशंका
लेकिन आज यह स्कूल अपने गौरवशाली अतीत पर गर्व तो करता है, लेकिन भविष्य को लेकर बेहद आशंकित है। बोर्ड परीक्षा में पांच बच्चों के फेल होने से यह विद्यालय आज खुद पर शर्म महसूस कर रहा है। लोग कहते हैं कि यह नेतरहाट स्कूल का नहीं, बल्कि झारखंंड का दुर्भाग्य है। सरकारी व्यवस्था के मकड़जाल में फंसे झारखंड का यह गौरव अपने भविष्य को लेकर आशंकित है। स्कूल में अवस्थित दर्जन भर आश्रम में रहनेवाले बच्चे अध्ययन में लीन रहते हैं और शिक्षक भी अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं, लेकिन उनके सामने इस स्कूल की प्रतिष्ठा को बचाने की चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए वे तैयार हैं, बस उन्हें समर्थन-सहयोग चाहिए।