रांची। झारखंड की राजधानी रांची से बाहर निकलने के साथ ही एक बात साफ तौर पर नजर आने लगी है और यह है कि चुनाव नजदीक है। गांवों-कस्बों के चौक-चौराहों पर चुनाव को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं। इन चर्चाओं के साथ एक और चीज जो नजर आती है, वह है पोस्टर-बैनर और होर्डिंग। चाहे चुटूपालू घाटी हो या कुड़ू, मेदिनीनगर जानेवाला एनएच हो या जमशेदपुर-बहरागोड़ा जानेवाला झारखंड का लाइफलाइन, हर रास्ते के किनारे हरे रंग के पोस्टर-बैनर और होर्डिंग नजर आने लगे हैं। इनको देखने से पता चलता है कि राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा राज्य में सबसे राजनीतिक संगठन है। सबसे खास बात यह है कि जिन इलाकों में अब तक झामुमो का जनाधार नहीं होने की बात कही जा रही थी, उन इलाकों में भी झामुमो का झंडा-बैनर नजर आने लगा है। झामुमो के मुकाबले में दूसरे दल कहीं नजर नहीं आते। आप यदि झारखंड से गुजरनेवाले राष्टÑीय राजमार्गों पर सफर करें, तो आपको ऐसा लगेगा कि झामुमो के नेता-कार्यकर्ता लोगों के बीच कितने भीतर तक पैठ बना चुके हैं। रांची से कोडरमा के रास्ते में एनएच के दोनों तरफ यदि झामुमो के पांच सौ बैनर-पोस्टर नजर आते हैं, तो झाविमो, कांग्रेस और आजसू के पांच दर्जन बैनर-पोस्टर नहीं हैं। सत्ताधारी भाजपा तो इस सीन से लगभग गायब है। भाजपा की ओर से केवल सरकारी योजनाओं के होर्डिंग ही दिखाई देते हैं। यह प्रचार सामग्री भी सरकारी ही है।
बोकारो से धनबाद जाने के रास्ते में जगह-जगह गुरुजी के 75वें जन्मदिन पर बधाई और शुभकामना संदेश लिखे बैनर-पोस्टर नजर आते हैं। इन बैनरों-पोस्टरों पर स्थानीय नेताओं का नाम भी लिखा होता है और झामुमो का चुनाव चिह्न भी होता है। इसके अलावा पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की संघर्ष यात्रा और पार्टी के स्थापना दिवस पर शुभकामनाएं और बधाई देनेवाले पोस्टर-बैनर और होर्डिंग भी सैकड़ों की संख्या में लगे हुए हैं। तीर-धनुष की इस भीड़ से भाजपा का कमल, कांग्रेस का पंजा, झाविमो का कंघी या आजसू का केला पूरी तरह गायब है।
दूसरे विपक्षी दलों की बात तो समझ में आती है, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा के लिए इस प्रचार युद्ध में पिछड़ना लोगों की समझ से बाहर है। बोकारो के जैना मोड़ पर चाय की चुस्कियों के बीच सुदामा सोरेन कहते हैं कि झामुमो के पोस्टर-बैनर देख कर ऐसा लगता है कि राज्य में केवल यही राजनीतिक दल है। हालांकि कई स्थानों पर केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के होर्डिंग लगे हुए हैं। यह प्रचार सरकारी है। इन पर मुख्यमंत्री सुकन्या योजना या उज्ज्वला योजना की चर्चा है। इन पर न तो भाजपा का नाम होता है और न ही उसका चुनाव चिह्न ही नजर आता है। कुछेक स्थानों पर कांग्रेस के होर्डिंग, बैनर और पोस्टर जरूर हैं, जिन पर राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रदेश के नेताओं की तस्वीर है, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।
इस प्रचार अभियान को लोग एकतरफा करार दे रहे हैं। यहां तक कि भाजपा या कांग्रेस के कार्यकर्ता भी झामुमो के बैनर-पोस्टर देख कर मायूस हो जा रहे हैं। लोहरदगा शहर के बाहर झामुमो के होर्डिंग की छाया में चाय बेचनेवाले रमेश महतो बताते हैं कि उनके सामने अब तक कोई दूसरा चुनाव चिह्न नहीं आया है। उनकी दुकान पर आनेवाले लोग भी तीर-धनुष की ही बात करते हैं। उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में झामुमो के हेमंत सोरेन की संघर्ष यात्रा चल रही है, इसलिए हजारीबाग, कोडरमा और रामगढ़ में स्वाभाविक तौर पर झामुमो के पोस्टर-बैनरों की भरमार है। लेकिन 17 फरवरी को प्रधानमंत्री के हजारीबाग दौरे के मद्देनजर स्थानीय नेताओं, सांसदों या विधायकों का कोई पोस्टर-बैनर अब तक नजर नहीं आ रहा है। यह कल्पना से परे है। लोकसभा के पिछले चुनाव से छह महीने पहले से ही भाजपा ने पूरे झारखंड को पोस्टरों-बैनरों से पाट दिया था। हर नुक्कड़ पर कमल फूल नजर आता था। इस बार पूरे राज्य में कहीं भी भाजपा के किसी नेता, सांसद, विधायक या अन्य पदधारियों का बैनर नहीं है। इससे साफ जाहिर होता है कि भाजपा के लोग प्रचार के लिए पूरी तरह सरकार पर निर्भर हो गये हैं। पार्टी की संगठनात्मक मशीनरी निष्क्रिय नहीं, तो पूरी तरह सक्रिय नहीं हो सकी है।
इसका सीधा मतलब यही निकाला जा सकता है कि झामुमो के नेता-कार्यकर्ता लोगों के जीवंत संपर्क में हैं और तीर-धनुष आम मतदाताओं के दिलो-दिमाग में घर कर रहा है। यह भाजपा के साथ दूसरे दलों के लिए भी कड़ी चुनौती पेश कर सकता है। अब झारखंड के लोगों को इस बात का इंतजार है कि झामुमो के मुकाबले दूसरे दल इस प्रचार युद्ध में कब कूदते हैं और इसका असर क्या होगा।
झारखंड में प्रचार युद्ध में बहुत भारी है झामुमो
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