बेगूसराय: बेगूसराय के करीब 50 हजार प्रवासी अपने गांव आ चुके हैं। गांव आए प्रवासी में से करीब 30 हजार को जिला प्रशासन ने काम उपलब्ध करवा दिया है। इन प्रवासियों के लिए सरकार की योजनाओं में से सबसे अधिक कारगर साबित हो रही है केंद्र सरकार की मनरेगा योजना। सत्ताईस हजार से अधिक श्रमिकों को मनरेगा में रोज काम मिल रहा है। इस श्रमिक में से कई ऐसे हैं जिन्होंने वर्षों से कुदाल नहीं थामा था लेकिन लॉकडाउन में जब गांव आए और कोई काम नहीं मिला। फिर क्या था, कुदाल थामकर अपने गांव, समाज के विकास में एक नया अध्याय लिख रहे हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जो अपनी पत्नी को भी इस काम में लगा दिया है। ऐसे ही श्रमिकों में हैं भगवानपुर के राधे सहनी, दामोदर सहनी, उत्तम सदा, सुलेखा देवी, सुनैना देवी एवं बुद्धन तांती। यह सब दिल्ली के पूर्वी विकास नगर में सपरिवार रहते थे। दिल्ली में रहने के दौरान पति जहां कवाड़ी जमा करते थे, ठेला चलाते थे। वही पत्नी गृह उद्योग में लगी हुई थी।
लॉकडाउन हो गया तो सबके सब बेसहारा हो गए। 22 मार्च को जब एक दिन के लिए लॉकडाउन हुआ था और उसके बाद 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन हो गया तो इनके पड़ोसियों ने कह दिया कि अब हालत बिगड़ रही है। दिल्ली में रहना बेहतर नहीं होगा, गांव चला जा, गांव के आबो-हवा में रहोगे तो कोरोना से बचोगे। इसी बीच वहां दिल्ली में खाने-पीने की समस्या ही नहीं, रहने की भी समस्या हो गई और 15 लोगों की इनकी टोली पैदल ही गांव की ओर चल पड़ी। सिर पर बोरा, कंधे पर बैग और हाथ के झोला में खाने का सामान। आगे बढ़ते रहे, जहां रात हुई किसी मंदिर को देख, सार्वजनिक जगह को देख वही सो गए, दो अप्रैल को दिल्ली से चले तो घर पहुंचते-पहुंचते आ गया 22 अप्रैल। करीब 15 दिनों तक घर में रहे, घर में रहते रोटी की चिंता सताने लगी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत डीलर ने चावल तो दिया लेकिन सिर्फ चावल खाकर तो गुजारा संभव नहीं था।
इसी बीच स्थानीय अधिकारियों की टीम ने इन लोगों से संपर्क किया और मनरेगा जॉबकार्ड बना दिए गए। इन्हें भी काम मिला और अब सुलेखा देवी अपने पति बुद्धन तांती के साथ रोज सुबह पांच बजे जग जाती है। खाना बनाकर दोनों पति-पत्नी खाते हैं और टिफिन में लेकर पहुंच जाते हैं मनरेगा के कार्य स्थल पर। पति के हाथ में कुदाल और पत्नी के हाथ में टोकरी, आठ बजते ही काम शुरू हो जाता है और दिन भर पति-पत्नी अन्य श्रमिकों के साथ तल्लीनता से काम में लगी रहती है। सुलेखा ने बताया कि दिल्ली में कमाई अच्छी हो रही थी, लेकिन लॉकडाउन हो गया तो कमाई बंद होने के साथ-साथ वहां के स्थानीय लोगों की मानवीय संवेदना भी समाप्त हो गई। ना खाने की व्यवस्था, ना रहने का जुगाड़, पानी के लिए भी पानी-पानी होना पड़ता था। दिल्ली के स्थानीय लोग काफी परेशान करने लगे थे। थक हार कर गांव आ गए हैं, कुदाल चला रहे हैं, सिर पर मिट्टी धो रहे हैं।
अब किसी हालत में दिल्ली नहीं जाएंगे, जनधन में खाता खुलवाया था तो मोदी जी ने दो बार पांच-पांच सौ भिजवाए। अब सरकार हम लोगों को काम दे, काम संभव नहीं है तो कर्ज दे, जिससे हम अपना रोजगार शुरू कर सकें। एक हम रोजगार शुरू करेंगे तो आसपास के दस महिलाओं को रोजगार मिलेगा। सरकार कर्ज की व्यवस्था कर दे तो हम महिलाएं घर में समान तैयार करेंगे और पति समेत अन्य पुरुष उसे गांव-गांव जाकर बेच सकते हैं। दर्द सुनाते समय सुलेखा के आंसू बता रहे थे कि दिल्ली में काफी परेशानी हुई। वहां की सरकार ने कुछ नहीं किया, स्थानीय वार्ड कमिश्नर ने भी कोई मदद नहीं की। अशिक्षित रहते हुए भी सुलेखा ने जो बताया, वह वहां से लेकर यहां तक कि सरकारों के व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है।