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    Home»अन्य खबर»चांद की कक्षा में चंद्रयान-2 का एक साल पूरा
    अन्य खबर

    चांद की कक्षा में चंद्रयान-2 का एक साल पूरा

    sonu kumarBy sonu kumarAugust 21, 2020No Comments3 Mins Read
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    चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की कक्षा में चारों ओर परिक्रमा करते हुए एक वर्ष पूरा कर लिया है। इसने ठीक एक साल पहले 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था लेकिन 7 सितम्बर को लैंडर विक्रम की चंद्रमा की धरती पर सॉफ्ट लैंडिंग न हो पाने से भारत का यह मिशन फेल हो गया था। हालांकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर और उसके उपकरण ठीक तरह से काम कर रहे हैं। अभी भी इसमें इतना पर्याप्त ईंधन है कि वह 7 वर्षों तक ‘चंदामामा’ के चक्कर लगा सकता है।
    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 मिशन 22 जुलाई 2019 को लॉन्च किया था। इसरो के वैज्ञानिकों ने 20 अगस्त, 2019 को सुबह 9:02 मिनट पर चंद्रयान-2 के तरल रॉकेट इंजन को दाग कर उसे चांद की कक्षा में पहुंचाया था। उसके बाद 7 सितम्बर को चांद पर फाइनल लैंडिंग होनी थी। चांद पर उतरने के लिए विक्रम लैंडर ने अपनी प्रक्रिया रात 1:40 बजे शुरू की थी। इसरो वैज्ञानिकों के लिए 35 किमी. की ऊंचाई से चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इसे उतारना बेहद चुनौतीपूर्ण था। रात 1:55 बजे विक्रम लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद दो क्रेटर मैंजिनस-सी और सिंपेलियस-एन के बीच मौजूद मैदान में सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी।
    चंद्रमा पर लैंडिंग के दौरान 07 सितम्बर,2019 की रात में चंद्रमा की सतह से केवल 2.1 किमी. ऊपर चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम रास्ता भटककर अपनी निर्धारित जगह से लगभग 500 मीटर की दूर अलग चंद्रमा की सतह से टकरा गया जिसके बाद से इसरो का संपर्क टूट गया। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने बाद में लैंडर विक्रम की थर्मल इमेज इसरो को भेजी थी। इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक़ लैंडर विक्रम की हार्ड लैंडिंग होने की वजह से वह एक तरफ झुक गया, जिससे उसका एंटीना दब गया। लैंडर का कम्युनिकेशन लिंक वापस जोड़ने के लिए उसका एंटीना ऑर्बिटर या ग्राउंड स्टेशन की दिशा में करना बेहद जरूरी था लेकिन वैज्ञानिकों को काफी कोशिश करने के बावजूद इसमें कामयाबी नहीं मिल सकी।
    हालांकि अमेरिका, रूस और चीन भारत से पहले चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कर चुके हैं। फिर भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 पर नासा सहित पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थीं क्योंकि इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को चांद के उस हिस्से पर उतरना था जहां आज तक कोई भी नहीं पहुंच सका था। दरअसल चांद का दक्षिणी ध्रुव बेहद खास और रोचक इसलिए है, क्योंकि यहां हमेशा अंधेरा रहता है। साथ ही उत्तरी ध्रुव की तुलना में यह काफी बड़ा भी है। हमेशा अंधेरे में होने के कारण यहां पानी होने की संभावना भी जताई जा रही है। इसरो ने चांद के इस हिस्से में मौजूद क्रेटर्स में सोलर सिस्टम के जीवाश्म होने की संभावना भी जताई है।
    अब चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की कक्षा में चारों ओर परिक्रमा करते हुए एक वर्ष पूरा कर लिया है। इसरो के मुताबिक अंतरिक्षयान ने चंद्रमा की कक्षा में करीब 4,400 परिक्रमा पूरी की हैं और इसके सभी उपकरण अच्छी तरह काम कर रहे हैं। इसरो ने कहा कि अंतरिक्षयान बिल्कुल ठीक है और इसकी उप-प्रणालियों का प्रदर्शन सामान्य है। ऑर्बिटर में उच्च तकनीक वाले कैमरे लगे हैं जिससे वह चांद के बाहरी वातावरण और उसकी सतह के बारे में जानकारी जुटा सके। अभी भी इसमें इतना पर्याप्त ईंधन है कि वह 7 वर्षों तक ‘चंदामामा’ के चक्कर लगा सकता है।
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