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    Home»Jharkhand Top News»2024 के मिशन में अभी से जुट गयी है भाजपा
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    2024 के मिशन में अभी से जुट गयी है भाजपा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 10, 2020No Comments6 Mins Read
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    लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा की सफलता का प्रतिशत इतना अधिक कैसे हो रहा है। क्या यह केवल लोकप्रियता और विवादास्पद मुद्दों को उछालकर ध्रुवीकरण की राजनीति का कमाल है या इसके पीछे कोई ठोस रणनीति। इस सवाल का एक ही जवाब है कि भाजपा भारतीय राजनीति की वह ताकत बन चुकी है, जिसकी असली शक्ति उसकी कार्यशैली में समाहित है। एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा की कार्य प्रणाली और उसके फैसले लेने का वक्त किसी प्रबंधकीय पाठ्यक्रम का विषय हो सकता है। इसका ताजा उदाहरण पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा शुरू किया गया देशव्यापी दौरा है। दरअसल वह अगले छह महीने तक देश भर से सभी 543 क्षेत्रों का दौरा करेंगे और 2024 के लिए संगठन को तैयार करेंगे। भारत की राजनीति के लिए यह एकदम नयी चीज है। यह अटपटा सा लगता है कि साढ़े तीन साल पहले कोई राजनीतिक दल अपनी तैयारी शुरू कर दे। लेकिन भाजपा के मामले में यह सच है कि भाजपा की निगाहें हमेशा ही भविष्य पर रहती हैं और वह उसके अनुरूप ही रणनीति बनाती है। क्या है भाजपा की रणनीति और इसे कैसे अंजाम दिया जा रहा है, इस बारे में आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    घटना 2014 के अप्रैल महीने की है, जब 16वीं लोकसभा के लिए देश में आम चुनाव का प्रचार चल रहा था। प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा ने अपने सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी को सामने रखा था। पार्टी के सबसे बड़े नेता होने के नाते वह स्टार प्रचारक भी थे। वह देश भर में रैलियां कर रहे थे। उनका लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना था। इसी दौरान कुछ तकनीकी विशेषज्ञों ने उनके लिए एक ऐसी योजना तैयार की, जिसका भाजपा को बहुत लाभ हुआ। उन विशेषज्ञों ने मोदी के लिए थ्री-डी रैली डिजाइन की, जिसमें मोदी केवल एक जगह रहते, लेकिन देश भर में एक साथ उनकी 10 रैलियां हो रही होतीं। भारत के पारंपरिक चुनाव प्रचार अभियान में यह अभिनव प्रयोग साबित हुआ और नरेंद्र मोदी देश के सभी संसदीय क्षेत्रों में रैली करनेवाले पहले नेता बने। नतीजा सामने आया और उन्होंने भाजपा को ऐतिहासिक कामयाबी दिलायी। 2019 में यह सिलसिला जारी रहा और इसके साथ ही भाजपा ने तकनीक और प्रबंधन की आधुनिक शैली अपना कर खुद को दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बना लिया है। कभी महज दो सीटों पर जीत हासिल करनेवाली पार्टी आज केंद्र के साथ देश के दो तिहाई प्रदेशों में शासन कर रही है, तो इसके पीछे जरूर ही कोई रणनीति है।
    दरअसल भाजपा अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकती। इसलिए पिछले साल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार गैर-कांग्रेसी सरकार के शपथ ग्रहण के बाद कहा जाने लगा था कि भाजपा का असली लक्ष्य तो 2024 है। इसलिए बिहार में सबसे अधिक सीटें जीतने के बावजूद भाजपा ने सीएम की कुर्सी नीतीश को सौंप दी और अब वह अपने मिशन में जुट गयी है। पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा देशव्यापी दौरे पर निकल चुके हैं और अगले छह महीने के दौरान उनका लक्ष्य देश के सभी संसदीय क्षेत्रों का दौरा करना है।
    यह सुनने में जरा अटपटा लगता है कि साढ़े तीन साल पहले से ही कोई दल चुनाव की तैयारी में जुट जाये, लेकिन भाजपा इसे सामान्य प्रक्रिया मानती है। भाजपा अगले पांच साल का अपना एजेंडा तय कर कार्ययोजना बनाती है। राजनीतिक हलकों में कहा जाता है कि भाजपा हमेशा आगे का सोचती है, इसलिए वह दूसरों से आगे रहती है। दूसरी पार्टियां जहां मानती हैं कि 2024 के आमचुनाव में अभी साढ़े तीन साल का लंबा वक्त है, वहीं भाजपा इसे ‘सिर्फ’ साढ़े तीन साल मानती है और यही सोच उसकी सफलता का मूल मंत्र है।
    अगले तीन-चार महीने में बंगाल में चुनाव होने हैं और नड्डा ने कहा है कि यह भाजपा की सबसे बड़ी छलांग होगी। अभी हैदराबाद के निकाय चुनाव को भाजपा ने जिस गंभीरता से लिया, उससे साफ पता चलता है कि पार्टी किसी भी चुनाव को हल्के ढंग से नहीं लेती। वह हर चुनाव को आम चुनाव की तरह लड़ती है और इसी कारण उसकी सफलता का रथ आगे बढ़ता जा रहा है। बंगाल चुनाव के लिए भाजपा की तैयारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां पार्टी ने चुनाव समिति बना दी है और बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जा चुका है। नड्डा अगले महीने के पहले सप्ताह में तीन दिन के प्रवास पर झारखंड आयेंगे और यहां के बाद छत्तीसगढ़ का रुख करेंगे।
    पिछले महीने बिहार चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल कर भाजपा के हौसले बुलंद हैं, लेकिन उसका निशाना 2024 का चुनाव ही है। यह बात उस समय प्रमाणित हो गयी, जब जदयू से लगभग दोगुनी सीट जीतने के बावजूद भाजपा ने सीएम का पद नीतीश को दे दिया। पार्टी ने जिस तरह उत्तर प्रदेश में मायावती को मुख्यमंत्री बनाकर अपना जनाधार बढ़ाया, उसी तरह उसने बिहार में नीतीश कुमार को सत्ता सौंप कर अपनी ताकत बढ़ा ली है। दरअसल भाजपा के लिए ये दो राज्य हमेशा से चुनौती बने हुए थे। तमाम प्रयासों के बावजूद यहां उसे कामयाबी नहीं मिल रही थी। इसका खास कारण यह था कि ये दोनों राज्य हिंदुत्व के एजेंडे की बजाय सामाजिक परिवर्तन और धर्मनिरपेक्ष राजनीति के रास्ते पर ही चल रहे थे। 1990 में यूपी में मायावती सामाजिक न्याय का चेहरा थीं और भाजपा ने उन्हें सीएम बना कर अपने हित के लिए इस्तेमाल किया। यूपी में शासन मायावती का था, लेकिन काम भाजपा कर रही थी। आज यूपी में भाजपा को चुनौती देनेवाला कोई नहीं है। यही रणनीति भाजपा ने बिहार में नीतीश कुमार के साथ अपनायी है।
    भाजपा का चुनावी रथ अब बंगाल की ओर चल पड़ा है। यहां उसकी असली परीक्षा होगी। भाजपा यहां 2024 का पोस्टर जारी करेगी और नड्डा इसी उद्देश्य से वहां पहुंच गये हैं। पार्टी की प्रदेश इकाई पहले से ही आक्रामक है और पूरी तरह चुनावी मोड में है। बंगाल के बाद भाजपा की निगाहें यूपी पर होंगी, जहां 2022 में चुनाव होने हैं। वैसे संभावना इस बात की है कि यूपी की रणनीति का आधार बंगाल का परिणाम होगा।
    भाजपा नेतृत्व को इस बात का इल्म है कि 2024 में नरेंद्र मोदी का करिश्माई चेहरा चुनाव मैदान में नहीं होगा, जिसका असर भी पड़ सकता है। कुल मिला कर भाजपा ने 2024 की तैयारी शुरू कर दी है और दूसरी पार्टियां जब तक अपनी चुनावी मशीनरी को दुरुस्त कर मैदान में उतरेंगी। भाजपा पूरे देश में अपनी मौजूदगी दिखा चुकी होगी। और इसका लाभ तो उसे मिलेगा ही।

    BJP has already gathered in the mission of 2024
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