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    Home»Jharkhand Top News»रो रहे हैं किसान, कहां ले जायें धान
    Jharkhand Top News

    रो रहे हैं किसान, कहां ले जायें धान

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 23, 2020No Comments7 Mins Read
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    केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में किसान आंदोलन की आग धधक रही है। उसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य बड़ा मुद्दा है। वहीं झारखंड में धान खरीद को लेकर किसानों की पीड़ा कम नहीं हो रही है। बेबस किसान अपनी कर्ज अदायगी या अन्य जरूरी सामानों की खरीद के लिए साहूकारों के हाथ 11 रुपये प्रति किलो धान बेचने को विवश हैं। सरकारी अधिकारी कह रहे हैं, हम अब धान खरीद रहे हैं, लेकिन असहाय किसान इन क्रय केंद्रों पर नहीं पहुंच पा रहा। उसका धान, उसके खलिहान या घर से ही साहूकार या बिचौलिये ले ले रहे हैं। वह भी 11 से 12 रुपये किलो। इस कारण किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है, वहीं राइस मिल मालिक और बिचौलिये मालामाल हो रहे हैं। लगन और दूसरी जरूरतों का समय देखते हुए किसान बहुत इंतजार करने की स्थिति में नहीं हैं। किसानों को धान का सही मूल्य मिले, इसके लिए हेमंत सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 1868 रुपये क्विंटल निर्धारित किया है। राज्य सरकार ने अपनी ओर से 182 रुपये बोनस की भी घोषणा की है, यानी झारखंड में सरकार किसानों से 2050 रुपये क्विंटल खरीदेगी। पर सच्चाई यही है कि अफसरों की चाल के कारण किसान आधी कीमत पर धान बेचने को विवश हैं। नमी वाले धान की खरीद न करने के आदेश के बाद राज्य के सभी जिलों में खरीद बंद हो गयी। अब जाकर कुछ जगहों पर खरीद केंद्र शुरू हुए हैं, लेकिन किसान वहां तक नहीं पहुंच पा रहा। सरकार की तरफ से जिलों को पैसे उपलब्ध करा दिये गये हैं, ताकि खरीद के 50 फीसदी हिस्से की राशि का भुगतान तीन दिनों के भीतर हो जाये। लेकिन बिचौलिये हैं कि किसानों और क्रय केंद्रों के बीच बाधा बन गये हैं। धान खरीद में सांठगांठ की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। सांठगांठ करनेवालों ने बड़ी चालाकी से अधिकारियों की आंख में गीला धान की पट्टी बांध दी है। यह पट्टी कब खुलेगी, नहीं पता, लेकिन सच यह है कि किसान रो रहा है। राज्य में धान खरीद की स्थिति पर प्रस्तुत है आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव की रिपोर्ट।

    धान खरीद की जमीनी हकीकत वातानुकूलित बंगले और कार्यालयोें में बैठे सरकारी अमले को शायद न नजर आ रही हो, मगर सच्चाई बहुत ही कड़वी है। खाली जेब, भूखे-बेहाल किसान सरकारी केंद्र पर उचित मूल्य को लेकर धान बेचने के लिए आतुर हैं, लेकिन क्रय नहीं होने के कारण बिचौलिये औने-पौने दाम में धान खरीद रहे हैं। धान की खरीदारी नहीं होने से अन्नदाता परेशान हैं। खून-पसीने से सींचे गये धान को 11 रुपये किलो बेच रहे हैं। इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि हमेशा राजनीति के केंद्र में रहनेवाले किसानों की सुध झारखंड के अफसर भी नहीं ले रहे। किसान है, तो परेशान है का श्लोगन आज एकदम सही साबित हो रहा है। हालांकि राज्य सरकार ने यहां के किसानों की आर्थिक बेहतरी के लिए इस वर्ष धान पर प्रति क्विंटल 182 रुपये बोनस भी देने की घोषणा कर रखी है। वर्ष 2020-21 के लिए धान खरीद 1868 रुपये प्रति क्विंटल सामान्य धान का समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। इस प्रकार 2050 रुपये प्रति प्रति क्विंटल की दर से धान की खरीद की जानी है। लेकिन आलम यह है कि अभी किसान बिचौलियों के हाथों 1100 से 1200 रुपये क्विटंल धान बेचने को मजबूर हैं। राज्य सरकार ने 15 नवंबर से धान खरीद की घोषणा की थी, मगर खरीद केंद्रों पर मुकम्मल इंतजाम नहीं हो सके। बाद में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने एक दिसंबर से धान खरीद की विधिवत घोषणा की। खरीद ठीक से शुरू भी नहीं हुई कि उन्होंने धान खरीद बंद करने का एलान कर दिया। दरअसल धान में नमी को देखते हुए उन्होंने खरीद न करने का निर्देश दिया। नतीजा है कि मुंह बाये जरूरतों का सामना कर रहे किसान बिचौलियों के हाथ औने-पौने दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं। कारण झारखंड के कुछ जिलों में धान क्रय केंद्र नाममात्र की संख्या में खुले तो हैं, लेकिन खराब नेटवर्क सिस्टम के कारण वहां भी निबंधन नहीं हो पा रहा है।
    बात कोडरमा की करें, तो यहां धान की फसल काफी अच्छी हुई है। मरकच्चो, जयनगर आदि इलाकों में धान की लहलहाती फसलों को देखकर किसानों का दिल भी बाग-बाग हो गया था, लेकिन धनकटनी के बाद उनका दिल रो रहा है। कारण सरकारी स्तर पर धान की खरीद नहीं रही है और बिचौलिया तंत्र हावी हो गया है। अभी स्थिति यह है कि मात्र 11 से साढ़े बारह सौ रुपये प्रति क्विंटल धान की खरीद ही हो पा रही है। वहीं गुमला में क्रय तो शुरू हुआ है, लेकिन किसान केंद्रों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। कारण क्रय केंद्र पर अधिकारी गीला धान का बहाना बना रहे हंै। साथ ही किसान पैसे को लेकर सरकारी तंत्र के पचड़े में फंसना भी नहीं चाह रहे हैं। इसी कारण धान की अच्छी फसल के बावजूद किसान बाजार में ही 11 रुपये से 12 रुपये प्रति किलो धान बेच रहे हैं। गुमला से ही सटे जिले लोहरदगा की बात करें, तो यहां की स्थिति भी अच्छी नहीं है। यहां तो 12 से लेकर साढ़े 12 सौ रुपये प्रति क्विटंल धान की खरीद की जा रही है। साहूकार बाजार में धान की खुलेआम खरीद कर रहे हैं। किसान नहीं चाहते हुए भी औने-पौने दाम पर धान बेचने को विवश हो रहे हैं। इसका कारण भी है कि सरकारी स्तर पर अभी धान की खरीद नहीं हो रही है। वहीं किसानों के पास पैसा नहीं है। इस कारण किसान धान बेचना चाहते हैं और इसका फायदा खरीदार उठा रहे हैं।
    पलामू प्रमंडल में इस बार धान की अच्छी पैदावार हुई है। लेकिन अभी तक सरकारी स्तर पर यहां धान क्रय केंद्र नहीं खोला गया है। इससे किसान परेशान हैं। किसी को बेटी के हाथ पीले करने हैं, तो किसी को बेटे की पढ़ाई की चिंता है। नतीजतन किसान धान बेचने को मजबूर नजर आ रहे हैं। इसी का फायदा राइस मिल, गुजरात और पंजाब के बिचौलिये उठा रहे हैं। ट्रकों में भर कर धान साढ़े 11 सौ रुपये से लेकर 1200 रुपये प्रति क्विटंल की बिक्री हो रही है। किसान नहीं चाहते हुए भी धान को औने-पौने दाम में मजबूरीवश बेच रहे हैं। राजधानी रांची से सटे बुढ़मे, ठाकुरगांव आदि क्षेत्रों में भी किसान खून के आंसू रो रहे हैं। यहां भी 11 रुपये किलो धान बेचने को किसान मजबूर हैं।
    यह तो कुछ जिलों का हाल था। कमोबेश झारखंड के हर जिले में यही हाल है। किसान एक ओर परेशानी का आंसू बहा रहे हैं, तो दूसरी ओर सरकारी अधिकारी गीला धान खरीदने पर खजाना खाली हो जाने की बात कह रहे हैं। इसका फायदा बिचौलिया और राइस मिल के मालिक उठा रहे हैं। वैसे कहा तो यहां तक जा रहा है कि बिचौलिया, राइस मिल मालिक और विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से धान की खरीद को टाल दिया गया, ताकि इसका फायदा बिचौलिया और धान मिल मालिक उठा सकें। खैर, जो भी हो, अगर समय रहते सरकारी अधिकारियों की आंखों की पट्टी नहीं खुली, तो झारखंड के किसानों के दिल में धधक रही आग बाहर भी आ सकती है। वैसे भी झारखंड के किसान सवाल तो करने लगे हैं कि अधिकारी झारखंड के किसानों के साथ बेरूखी क्यों दिखा रहे हैं।
    11 से 13 रुपये प्रति किलो धान खरीद रहे साहूकार
    झारखंड के किसान कैसे अपनी जरूरतों को लेकर 11 से 13 रुपये किलो धान बेचने को विवश हो रहे हैं। हजारीबाग के बड़कागांव में किसान 12 से साढ़े रुपये किलो धान बेच रहे हैं। वहीं खूंटी में भी कमोवेश यही स्थिति है। यहां भी किसान 12 से 13 रुपये किलो धान बेच रहे हैं। बात रांची के तमाड़ की करें या फिर धनबाद, बोकारो, गढ़वा, कुजू, पतरातू, तमाड़, गिद्दी की, कमोवेश हर जगह धान की में किसानों को नुकसान ही उठाना पड़ रहा है। हर जगह धान की खरीदारी साहूकारों के द्वारा सरकारी दर से 40 से 45 फीसदी कम पर की जा रही है। इस कारण किसान परेशान हैं।
    क्रय केंद्र में बिचौलियों की चांदी
    सरकार की ओर से खुले कुछेक केंद्र पर बिचौलिया अभी से हावी हो गये हैं। किसान से 11 से लेकर 13 रुपये तक धान की खरीद के बाद इसे खुद क्रय केंद्र लेकर पहुंच जा रहे हैं। वहां सरकारी दर पर धान को बेच रहे हैं। इसमें क्रय केंद्र से लेकर बिचौलियों तक की भूमिका है। सब अपनी जेबें भरने के लिए किसानों की जेंबे काट रहे हैं।

    Farmers are crying where to take paddy
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