वाशिंगटन, एएनआइ। तिब्बत में चीन का दमन बदस्तूर जारी है। बौद्ध समुदाय को कम्युनिस्ट विचारधारा अपनाने को लेकर खुली धमकी दी जा रही है। इसके लिए बौद्ध भिक्षुओं को सरकारी एजेंट बनने के लिए बाध्य किया जा रहा है। मानवाधिकार संगठन इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत ने ये गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि चीन इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। संगठन ने अपनी हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पिछले साठ साल से तिब्बतियों पर अत्याचार किए जा रहे हैं। अब तिब्बत के बौद्ध समुदाय को धमकी दी जा रही है। यहां तक कि उनके अस्तित्व का भी संकट उत्पन्न हो गया है।
संस्था ने अंतराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वे तिब्बत की जनता की धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में आवाज उठाए। इस संस्था की बुधवार को जारी नई रिपोर्ट में कहा है कि चीन अब बौद्ध समुदाय को सरकार के लिए काम करने के लिए जबरदस्ती भी कर रहा है। बौद्ध भिक्षुओं ने दशकों से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की धार्मिक और सुरक्षात्मक नीतियों का खामियाजा उठाया है। अब वर्तमान चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के शासन में तिब्बती मठवासियों का जीना काफी मुश्किल हो गया है। उनका दमन और अत्याचार चरम पर पहुंच गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शी चिनफिंग चाहते हैं कि देश में रहने वाले सभी समुदाय के लोग सरकार के अधीन ही पूरी तरह से काम करें, उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के कोई मायने न रहें। इसके लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पूरे सिस्टम में भी परिवर्तन किया जा रहा है। इन बदलावों से तिब्बत के बौद्ध और तिब्बती संस्कृति दोनों के लिए ही गंभीर खतरे बढ़ते जा रहे हैं।
उइगरों के नरसंहार पर बात करेगा चीन
अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि वह उइगरों के नरसंहार पर चीन के साथ सख्ती से बात करेगा। 18 मार्च को अलास्का के एंकोरेज में अमेरिका और चीन के बीच आमने-सामने वार्ता होगी। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवान अपने समकक्ष अधिकारियों के साथ इस वार्ता में भाग लेंगे। चीन की तरफ से शीषर्ष राजनयिक यांग जीची और स्टेट काउंसिल वांग यी बैठक में भाग लेंगे।