Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Friday, June 6
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»हिंदू हृदय सम्राट, जिन्होंने राम मंदिर के लिए कुर्बान कर दी थी मुख्यमंत्री की कुर्सी
    Breaking News

    हिंदू हृदय सम्राट, जिन्होंने राम मंदिर के लिए कुर्बान कर दी थी मुख्यमंत्री की कुर्सी

    azad sipahiBy azad sipahiAugust 22, 2021Updated:August 22, 2021No Comments10 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

     राम मंदिर आंदोलन के सूत्रधार थे कल्याण सिंह
     उनका जाना भारतीय राजनीति के लिए एक ऐसी क्षति है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती
     छवि ऐसी कि विपक्ष भी उन्हें दिग्गज का दर्जा देता था

    राहुल सिंह
    5 जनवरी 1932 को अलीगढ़ के मढ़ौली गांव के एक किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह युवावस्था में ही हिंदुत्व की विचारधारा की ओर खिंचे चले आये थे। उस समय, जब राजनीतिक परिदृश्य पर नेहरूवादी कांग्रेस का दबदबा था, इस नयी राह पर चलना आसान नहीं था। लेकिन एटा के अतरौली के रायपुर इंटर कॉलेज में सामाजिक विज्ञान के इस युवा शिक्षक को इस नयी डगर पर चलने में कोई चुनौती नजर नहीं आ रही थी। नतीजतन, उन्होंने क्षेत्र में अपने आपको भारतीय जनसंघ के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में स्थापित किया और 1967 में जनसंघ के टिकट पर अतरौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

    कल्याण सिंह उन पहली पंक्ति के नेताओं में शुमार माने जाते थे, जिन्होंने जनसंघ की विचारधारा को आगे बढ़ाना शुरू किया था। संगठन में राजनीतिक तौर पर मजबूत स्तंभ माने जानेवाले कल्याण सिंह धीरे-धीरे भारत में लगातार बन रहे नवीन सामाजिक समीकरणों को कुशलता से साधने का प्रयास कर रहे थे। इस तरह एक पिछड़ी जाति का नेता हिंदुत्व का चेहरा बनने लगा था।

    चुनाव जीतने से लेकर 1977 तक यानी लोकतंत्र के काले अध्याय माने जानेवाले आपातकाल के बाद के युग में कल्याण सिंह ने अपने निर्वाचन क्षेत्र पर एक मजबूत पकड़ बनाये रखी और लगातार तीन बार चुनाव जीते। लेकिन कल्याण सिंह के राजनीतिक जीवन में सबसे बड़ा मोड़ 1977 में आया।

    दरअसल, आपातकाल के बाद हुए चुनावों में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, और राज्य में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार की शक्ल में जनता पार्टी सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी। कल्याण सिंह अब जनता पार्टी के विधायक थे और उन्हें राज्य की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में मंत्री बनाया गया था। तब तक जनसंघ ने अपना विलय जनता पार्टी बनाने के लिए अन्य कांग्रेस विरोधी दलों के साथ कर लिया।
    हालांकि जनता पार्टी का अस्तित्व भारतीय राजनीति में एक बुलबुले मानिंद साबित हुआ और 1980 के अगले ही विधानसभा चुनावों में पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। लेकिन तब तक आपातकाल और जेपी आंदोलन, आरएसएस की राष्ट्रवादी बहुसंख्यकवादी राजनीति को एक नया जीवन दे चुके थे। और इसी साल यानी 1980 में भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आयी।

    तब तक कल्याण सिंह आरएसएस, जनसंघ और जनता पार्टी में अपने आपको मजबूती के साथ साबित कर चुके थे और जाहिर तौर पर वे भाजपा से जुड़ कर उस राज्य में सबसे अहम भूमिका निभानेवाले थे जो आनेवाले वर्षों में हिंदुत्व और भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी प्रयोगशाला साबित होनेवाला था।

    आरएसएस के प्रचारक मांगीलाल शर्मा को अपना गुरु मानते थे कल्याण सिंह
    कहा जाता है कि कल्याण सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय आरएसएस के प्रचारक मांगीलाल शर्मा को जाता है। जानकारों की मानें तो जब कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उस दौरान उन्होंने मंच से मांगीलाल शर्मा का स्मरण करते हुए उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बताया था। कल्याण सिंह राजनीति में नहीं, बल्कि संघ में ही रह कर काम करना चाहते थे, लेकिन मांगीलाल शर्मा के कहने पर ही वह राजनीति में आये और लगातार बुलंदियों को छूते चले गये। साल 1967 में कल्याण सिंह ने अपना पहला चुनाव अतरौली से जीता था और इसके बाद वह यूपी विधानसभा पहुंचे थे।

    कल्याण सिंह: राम मंदिर के लिए कुर्बान कर दी थी सीएम की कुर्सी
    कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर संघर्षपूर्ण रहा। अपने राजनीतिक जीवन में वे कई विवादों से भी घिरे रहे। कल्याण सिंह का जाना भारतीय राजनीति के लिए एक ऐसी क्षति है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। कल्याण सिंह ने राजनीति में अपनी एक अलग छवि बनायी, जिससे कई लोगों को उनकी विचारधारा पसंद नहीं आती थी। लेकिन फिर भी उन्हें उनके विरोधी एक दिग्गज नेता के रूप में मानते थे। राम मंदिर आंदोलन में तो उनकी ऐसी सक्रियता रही कि उन्हें अपनी सीएम कुर्सी तक कुर्बान करनी पड़ गयी थी। कल्याण सिंह की इस कुर्बानी को देश की जनता हमेशा याद रखेगी।

    दरअसल, 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था और इस आंदोलन के सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे। उनकी बदौलत यह आंदोलन यूपी से निकला और देखते-देखते पूरे देश में बहुत तेजी से फैल गया। उन्होंने हिंदुत्व की अपनी छवि जनता के सामने रखी। इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी साथ मिलाया, जिससे आंदोलन ने और जोर पकड़ लिया। बता दें कि कल्याण सिंह शुरू से आरएसएस के जुझारू कार्यकर्ता थे। इसका पूरा फायदा यूपी में भाजपा को मिला और 1991 में यूपी में भाजपा की सरकार बनी थी।
    कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा के पास पहला मौका था, जब यूपी में भाजपा ने इतने प्रचंड बहुमत से सरकार बनायी थी। जिस आंदोलन की बदौलत भाजपा ने यूपी में सत्ता पायी, उसके सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे, इसलिए मुख्यमंत्री के लिए कोई अन्य नेता दावेदार था ही नहीं। उन्हें ही मुख्यमंत्री का ताज दिया गया। कल्याण सिंह के कार्यकाल में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा।

    एक लाइन का वह इस्तीफा, जिसे लिख कल्याण ने ली विवादित ढांचा विध्वंस की जिम्मेदारी और छोड़ दी कुर्सी
    तारीख 6 दिसंबर 1992 का दिन, जब उनके जीवन की सबसे बड़ी घटना हुई, जब अयोध्या में विवादित ढांचा तोड़ डाला गया। कल्याण सिंह लखनऊ के कालिदास मार्ग स्थित अपने घर पर थे, जिस वक्त अयोध्या में कारसेवकों की भीड़ ने विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया।
    कल्याण सिंह अपने आवास पर बैठे अधिकारियों से जानकारी ले रहे थे और रणनीति बना रहे थे कि ढांचे के विध्वंस के बाद सरकार को क्या करना चाहिए। तमाम बातचीत के बीच कल्याण सिंह ने यह फैसला किया कि ढांचा विध्वंस की जिम्मेदारी वह खुद लेंगे। कल्याण अपने इस फैसले पर अडिग थे और उन्होंने इसके लिए अफसरों को फाइलों के साथ घर बुलाया। कल्याण सिंह ने मुख्य सचिव और डीजीपी को इस संबंध में लिखित आदेश दे दिये कि अयोध्या में कारसेवकों पर गोली ना चलायी जाये।

    राज्यपाल नहीं दे रहे थे इस्तीफा सौंपने के लिए मिलने का समय
    कल्याण ये मन बना चुके थे कि अब सरकार से इस्तीफा दे दिया जाये। उन्होंने अपने प्रोटोकॉल अफसर से कहा कि राजभवन जाना है, तैयारी कीजिए। अफसरों में ऊहापोह की स्थिति बन गयी, क्योंकि तत्कालीन राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी से मिलने के लिए कोई समय नहीं लिया गया था। दरअसल राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी असमंजस की स्थिति में थे। वह यह तय नहीं कर पा रहे थे कि कल्याण सिंह से इस्तीफा लिया जाये या सरकार को बर्खास्त किया जाये। राज्यपाल इस संबंध में पीएम पीवी नरसिम्हा राव से राय लेने की कोशिश में थे, लेकिन जब तक बात हो पाती, कल्याण सिंह कालिदास मार्ग के अपने घर से राजभवन की ओर निकल चुके थे।

    बिना समय लिये राजभवन पहुंच गये कल्याण
    कल्याण की गाड़ियों का काफिला कुछ मिनट बाद राजभवन पहुंचा, तो वहां अजीब सी स्थिति बन गयी। राजभवन की मुख्य इमारत में मुस्कुराते हुए दाखिल हुए कल्याण सिंह ने अपने लेटरपैड का एक पेज राज्यपाल के हाथ में पकड़ा दिया और अब तक मिले सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। कागज पर लिखा था, ‘मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करें।’ हालांकि कल्याण ने इस्तीफे में यह अनुरोध नहीं किया कि राज्यपाल विधानसभा को भंग कर दें।

    कल्याण ने कहा- 6 दिसंबर का दिन राष्ट्रीय गर्व का विषय
    कल्याण सिंह ने कुर्सी छोड़ दी, लेकिन उस रोज से वह हिंदुत्व की राजनीति का एक प्रखर चेहरा बन गये। अपने पूरे जीवन में कल्याण ने कभी भी विवादित ढांचे के विध्वंस पर खेद नहीं जताया। एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि क्या आपको इसका अफसोस है? कल्याण का जवाब था- मुझे इसका कोई अफसोस नहीं। लोग कहते हैं कि 6 दिसंबर, 1992 का दिन राष्ट्रीय शोक का विषय है, मैं कहता हूं कि ये राष्ट्रीय शोक नहीं बल्कि राष्ट्रीय गर्व का विषय है।

    भाजपा से बगावत
    बाबरी विध्वंस के बाद के कुछ साल भाजपा और कल्याण सिंह दोनों के लिए चुनौती भरे थे। उस घटना के बाद उत्तर प्रदेश में पिछड़े और दलित जाति-आधारित राजनीति तेजी से उभरी और सूबे के राजनीतिक परिदृश्य पर समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तेजी से हावी होती चली गयी। हालांकि 1997 में, भाजपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया और फिर से सत्ता में काबिज होने में सफल हुई।
    कल्याण सिंह इस गठबंधन सरकार के साथ एक बार फिर उत्तरप्रदेश के मुखिया बने, लेकिन इस बार स्थितिया पहले जैसी नहीं थीं। पार्टी में चल रही प्रतिस्पर्धा और कल्याण सिंह की राजनीतिक शैली ने उनके विरोधियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। धीरे-धीरे ये मतभेद इतने बढ़ गये कि 1999 में कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी की स्थापना की।

    लेकिन ये एक ऐसा प्रयोग था, जिसे ज्यादा सफलता नहीं मिली और जो कभी भाजपा के ‘स्वाभाविक नेता’ थे, हाशिए पर पहुंचते नजर आ रहे थे। हालांकि 2004 में वे फिर से बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन इस बीच कल्याण सिंह और भाजपा के बीच काफी मतभेद उत्पन्न हो गये थे।

    दूसरी बगावत और एक अप्रत्याशित गठबंधन
    पार्टी में अपनी खोई हुई जमीन को तलाशने में असमर्थ रहे कल्याण सिंह ने एक बार फिर 2009 में जन क्रांति पार्टी बनाने के लिए भाजपा छोड़ दी। इसके बाद कल्याण सिंह ने वह राजनीतिक कदम उठाया, जिसकी उम्मीद बहुत कम लोगों को रही होगी। असल में जन क्रांति पार्टी बनाने के बाद कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के साथ गठबंधन कर लिया। बता दें कि ये वही मुलायम सिंह यादव थे जिन्होंने 1989 में अपनी सरकार के समय में कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश दिये थे, और इसके चलते भाजपा उन्हें खलनायक के रूप में चित्रित करती रहती थी।

    एक आखिरी घर वापसी और उसके बाद
    2014 से पहले भाजपा में नरेंद्र मोदी युग की शुरूआत के साथ ही, किसी जमाने में हिंदुत्व के पोस्टर बॉय रहे कल्याण सिंह के लिए एक बार फिर ‘घर वापसी’ करने का समय आ गया था। ये कोई छिपी हुई बात नहीं कि उस समय हिंदू हृदय सम्राट के तौर पर उभर रहे मोदी के दिल में अब भी कल्याण सिंह के लिए उतनी ही जगह बाकी थी।
    कल्याण सिंह वापस पार्टी में आये और अपनी पूरी ताकत से पार्टी की सेवा करने का वादा किया। हालांकि बढ़ती उम्र को देखते हुए उन्होंने सक्रिय राजनीति से परहेज किया और बीजेपी ने उनकी जगह उनके बेटे राजवीर को उनके निर्वाचन क्षेत्र एटा से मौका दिया।

    2014 में भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर पद संभालने के बाद, मोदी ने जल्द ही कल्याण सिंह को राजस्थान के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया। इस पद पर कल्याण सिंह सितंबर 2019 तक रहे। एक साल बाद सितंबर 2020 में, सीबीआइ की एक विशेष अदालत ने उन्हें और 32 अन्य को बाबरी मस्जिद विध्वंस के लंबे समय से चले आ रहे मामले में बरी कर दिया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उस चर्चित फैसले के बाद आया था, जिसमें अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन को राम मंदिर को देने की बात कही गयी। इस फैसले के बाद कल्याण सिंह ने मीडिया से कहा था, अब मैं चैन से मर सकता हूं। अंतत: उन्होंने 21 अगस्त 2021 की शाम को आंखिरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह चले गये।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleनियोजन नीति के खिलाफ आंदोलन करेगी भाजपा
    Next Article तीरंदाज दीपिका कुमारी ने 13 साल बाद भाई की कलाई पर बांधी राखी
    azad sipahi

      Related Posts

      लाभार्थियों के खातों में ट्रांसफर की गयी मंईयां सम्मान योजना की राशि

      June 5, 2025

      लैंड स्कैम : अमित अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी बेल

      June 5, 2025

      देश में कोरोना के सक्रिय मामले बढ़कर हुए 4866, पिछले 24 घंटे में 7 लोगों को मौत

      June 5, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • लाभार्थियों के खातों में ट्रांसफर की गयी मंईयां सम्मान योजना की राशि
      • लैंड स्कैम : अमित अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी बेल
      • राज्यपाल ने पर्यावरण दिवस व गंगा दशहरा की दी शुभकामनाएं
      • देश में कोरोना के सक्रिय मामले बढ़कर हुए 4866, पिछले 24 घंटे में 7 लोगों को मौत
      • प्रधानमंत्री, गृहमंत्री सहित प्रमुख नेताओं ने मुख्यमंत्री योगी को दी जन्मदिन की शुभकामनाएं
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version