राजनीति के बारे में बहुत पुरानी कहावत है कि इसमें न कोई स्थायी दोस्त होता है और न कोई स्थायी दुश्मन। परिस्थितियों के हिसाब से नफा-नुकसान तौल कर राजनीतिक रिश्ता बनता-बिगड़ता है। झारखंड में तो यह हिसाब-किताब और भी तेजी से बदलता रहा है। यही कारण है कि एक साल पहले लोकसभा चुनाव में जिस भाजपा ने आजसू के लिए अपनी सीटिंग सीट गिरिडीह छोड़ दी थी, उसी के साथ छह माह बाद विधानसभा चुनाव में रिश्ते तार-तार हो गये और दोनों अलग