झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने वार रूम को चुस्त-दुरुस्त करने में लग गये हैं। इस मोर्चे पर राज्य की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी और सत्ता का दावेदार झामुमो बेहद कमजोर नजर आ रहा है। इसका वार रूम अब तक अस्तित्व में नहीं आया है, क्योंकि इसका केंद्रीय कार्यालय वैसा नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सोशल मीडिया और तकनीकी युग में झामुमो पारंपरिक चुनाव प्रबंधन पर ही क्यों निर्भर है। दूसरी पार्टियों को देखें, तो उन्होंने अपने कार्यालयों को अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त कर लिया है। उनका कार्यालय हर नजरिये से दफ्तर लगता है, जहां कार्यकर्ता आते हैं, नेताओं से मिलते हैं और पार्टी के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसके विपरीत झामुमो का अधिकांश कामकाज शिबू सोरेन या हेमंत सोरेन के आवास से होता है और पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक के अलावा हर कार्यक्रम किसी बैंक्वेट हॉल में होता है। इसके कारण झामुमो का सांगठनिक प्रबंधन कमजोर पड़ता जा रहा है। झामुमो की इस कमजोरी और इसके संभावित असर पर आजाद सिपाही के वरीय संवाददाता दयानंद राय की खास रिपोर्ट।