Browsing: The government is seen by change

जरूरतें व्यक्ति को बदल देती हैं और प्लेटफॉर्म यदि राजनीति का हो, तो यहां कुछ भी असंभव नहीं है। यह झारखंड की राजनीति में बदलते समीकरणों का ही कमाल है कि यहां दो धुर विरोधी दल बदलने के बाद राजनीति का अपना तेवर और सुर दोनों बदल चुके हैं। ये सभी नयी भूमिका में नजर आ रहे हैं। बरही विधायक मनोज यादव जब तक कांग्रेस में थे, तो पानी पी-पीकर भाजपा की नीतियों को कोसते थे, आज वह उसी भाजपा के टिकट पर चुनाव के मैदान में हैं और कांग्रेस को कोस रहे हैं। वहीं भाजपा के उमाशंकर यादव अब कांग्रेस में हैं, तो उनके सुर बदल गये हैं। कभी खांटी कांग्रेसी रहे सुखदेव भगत अब भाजपा में आने के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव से दो-दो हाथ करने के साथ नीरू शांति भगत के खिलाफ भी ताल ठोक रहे हैं। वहीं पाकुड़ के अकील अख्तर, जो जब तक झामुमो में रहे, तब तक कट्टर भाजपा विरोधी रहे, लेकिन अब आजसू में आने के बाद और पार्टी का प्रत्याशी बनाये जाने के बाद उनकी भाषा पूरी तरह बदल चुकी है। चुनाव के मैदान में आमने-सामने होने के बाद नीरा यादव और शालिनी गुप्ता भी बदले और आक्रामक तेवर के साथ एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रही हैं। झारखंड की राजनीति में दलबदल करके आये नेताओं और दलों का रवैया यह दर्शाता है कि यहां न तो कोई दुश्मन होता है और न कोई दोस्त। यह जरुरतें होती हैं जो विभिन्न दलों को एक-दूसरे का दोस्त बनने या फिर दुश्मन का लाबादा ओढ़े रहने पर विवश करती हैं। झारखंड की राजनीति में पाला बदलने के बाद नेताओं के बदले बोल और उसके कारणों की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।