गुमला के नगर सिसकारी गांव में रविवार तड़के केवल चार लोगों की हत्या ही नहीं हुई, बल्कि यह समाज की विकृति और जकड़न का परिचायक होने के साथ इस बात का भी संकेत है कि शहरों में मरते तंत्र का असर हमारे ग्रामीण इलाके तक पहुंच गया है। चार लोगों की हत्या अचानक या किसी प्रतिशोध में नहीं की गयी, बल्कि यह सोच-समझ कर लिया गया सामूहिक फैसला था। इस बर्बर घटना को अंजाम देने का फैसला पूरे गांव की पंचायत में 48 घंटे पहले ही ले लिया गया था। इसके बावजूद किसी भी ग्रामीण ने घटना की बाबत किसी बाहरी व्यक्ति को जानकारी नहीं दी। कुछ ग्रामीणों ने थानेदार को फोन भी किया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। क्या हमारा ग्रामीण समाज, जो शहरी समाज की अपेक्षा अधिक संवेदनशील और मानवीय माना जाता है, इतना अमानवीय हो चला है। आखिर नगर सिसकारी के किसी भी वाशिंदे ने घटना से पहले अपनी जुबान क्यों नहीं खोली, यह एक बड़ा सवाल है। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या स्थानीय प्रशासन ग्रामीणों से इतना कट गया है कि इतनी बड़ी घटना की भनक भी उसे नहीं लगती है। गुमला के नगर सिसकारी गांव में हुई घटना की पृष्ठभूमि में इन सवालों का जवाब तलाशती आफताब अंजुम की खास रिपोर्ट।