रश्मिस्वरूप जौहरी: सर्दी का मौसम पूरे शबाब पर है। इन दिनों के खास मेहमान रंग-बिरंगे प्रवासी परिंदे झीलों में अठखेलियां करते, पेड़ों पर चहकते, खेतों में फुदकते नजर आ रहे हैं। सर्दियों में ये अपने घरों पर भोजन की कमी तथा जानलेवा ठंड से बचने के लिए, उन स्थानों पर सर्दी बिताने के लिए चले जाते हैं जो खाद्य पदार्थों से भरपूर एवं गर्म हों। प्रवास स्थानों पर ये मात्र भोजन और गर्म मौसम का आनंद ही नहीं उठाते, उस क्षेत्र के लिए हितकारी काम भी करते हैं। अपनी क्रीड़ाओं से सम्मोहित करने, बीजों को छितराने के अलावा ये हानिकारक जीव-जंतुओं का नाश भी करते हैं। कुछ कीड़े-मकोड़े अनाज, बीज, वनस्पति-फल आदि खाकर जिंदा रहते हैं।
इन कीटों की हजारों किस्मों की आबादी तेजी से बढ़ती है। इनकी खुराक भी बहुत होती है। टिड्डियों के झुंड कुछ घंटों में ही फसल चट कर जाते हैं। एक कैटरपिलर प्रतिदिन अपने वजन की दोगुनी पत्तियां खाता है। वहीं कुछ लार्वा 24 घंटे के अंदर अपने वजन का 200 गुना खाना खा जाते हैं। जाहिर है, यदि इन कीड़ों की आबादी पर रोक न लगे तो क्षेत्र विशेष से अनाज और वनस्पति का नामो-निशान मिट सकता है। प्रवासी पक्षी यात्रा के दौरान, उड़ते-उड़ते और ठिकानों पर पहुंच कर भी इन हानिकारक एवं घातक कीड़ों को खाकर इनकी आबादी पर रोक लगाते हैं। अमेरिका की घास और अनाज खाने वाली खटमलों की एक प्रजाति चिंचबग की साल भर में 13 पीढ़ियां जन्म लेती हैं।
अगर रोक न लगे तो इनकी आबादी अरबों-खरबों में हो जाएगी और आदमी के हिस्से का भोजन भी ये खा जायेंगी। पक्षियों की सामान्य खुराक में कीड़ों की काफी मात्रा होती है। इसका अंदाजा जन्म के पश्चात इनकी खुराक से लगता है। तेलियर प्रजाति के प्रवासी रोजी पास्टर, मध्य एशिया में प्रजनन के पश्चात सर्दी बिताने भारत आते हैं। ये कैटरपिलर, टिड्डी आदि खाते हैं। रोजी पास्टर का एक जोड़ा अपने नवजात बच्चों के लिए एक दिन में 370 बार भोजन यानी टिड्डे-टिड्डी आदि लाता है। इसी तरह गौरेया प्रजाति का हाउस स्पैरो अपने बच्चों लिए प्रतिदिन 220 से 260 बार कैटरपिलर आदि कीड़े लाता है।
पक्षियों की बहुतेरी प्रजातियों के नवजात जन्म के कई दिनों तक 24 घंटे की अवधि में अपने वजन का दोगुना खाना यानी कीड़े खाते हैं। पश्चिमी एशिया और मध्य यूरोप का निवासी वाइट स्टार्क, जो भारत में प्रवास करता है, टिड्डी और उनके अंडे की बड़ी आबादी का सफाया कर देता है। प्रवासी पक्षी पीड़क जंतुओं का भी विनाश करते हैं। घरों और खेतों में रहने वाले चूहे हमारे बहुत बड़े दुश्मन हैं। जहां ये अनाज-वनस्पति के भंडार खाली कर देते हैं, वहीं जानलेवा बीमारियां भी फैलाते हैं। लगभग 6-7 चूहे मिलकर एक आदमी की खुराक के बराबर अनाज खा जाते हैं।
इनकी प्रजनन क्षमता भी बहुत होती है। एक साल में एक जोड़े चूहे के परिवार में 3-4 पीढ़ियां जन्म ले लेती हैं। फलस्वरूप चूहे के परिवार में लगभग 880 सदस्य हो जाते हैं। इनकी आबादी रोकी न जाए तो इसी जोड़े के परिवार में 5 साल की अवधि में लगभग 94 हजार करोड़ चूहे हो सकते हैं। इनकी आबादी पर रोक लगाना हमारे बस का काम नहीं है। उल्लू, बाज, चील आदि शिकारी पक्षी इन्हें खाकर इन घातक जंतुओं का नाश करते हैं। प्रवासी पक्षी भी इन खतरनाक जीवों की संख्या को नियंत्रित कर प्रकृति में इन जीवों का संतुलन बनाए रखते हैं।
प्रवासी पक्षी वनस्पति, पेड़-पौधों आदि के बीजों को छितराने और एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पक्षी इन्हें बीज सहित खाते हैं जो उनकी बीट के साथ दूसरे क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं। इससे वहां भी नई किस्म की वनस्पति उत्पन्न हो कर पनप जाती है। दक्षिण भारत में चंदन के पेड़ों को बुलबुल और वसंता पक्षियों ने फैलाया है। पंजाब में शहतूत को फैलाने का श्रेय भी पक्षियों को ही जाता है। इनके बिना इनका विस्तार इतनी जल्दी, वह भी बिना किसी मेहनत और खर्च के होना संभव नहीं था।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं