उत्तराखंड के बारे में कहा जाता है जब से इस राज्य का निर्माण हुआ है, वर्ष 2000 से लेकर अब तक इस राज्य से करीब 20 लाख लोग गाँवो से शहरों की तरफ पलायन कर चुके है, जिसका सबसे बड़ा कारण है बेरोजगारी।

आज उत्तराखंड राज्य की गिनती देश के पिछड़े राज्यों में होती है लेकिन इसी पहाड़ी राज्य में कुछ लोग ऐसे भी है जो बेरोज़गारी के खिलाफ़ लड़ रहे है।

उनमें से ही एक है इस राज्य की ‘मशरूम लेडी’ के नाम मशहूर दिव्या रावत।

ये कहानी उत्तराखंड की एक साधारण सी लड़की दिव्या रावत की कहानी है जिसने पहाड़ों पर एक ऐसा व्यवसाय खड़ा कर दिया है जिसकी वजह से उसे उत्तराखंड की मशरूम लेडी के नाम से जाना जाता है।

दिव्या रावत ने नॉएडा के एमिटी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. अगर वह चाहती तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। दिव्या रावत कुछ अलग करने की चाहत में अपने शहर देहरादून वापस चली आई और एक छोटे से कमरे में 100 बेग मशरूम उत्पादन के साथ अपना कारोबार शुरू कर दिया।

दिव्या के इस फैसले से उसके घरवाले हैरान थे कि ये लड़की एक मोटी सेलरी के साथ किसी बड़े शहर में मज़े से रह सकती थी लेकिन ये यहाँ क्या कर रही है। धीरे-धीरे दिव्या ने एक तीन मंजिला प्लांट लगाया और मशरूम का उत्पादन बड़े लेवल पर शुरू किया। आज दिव्या ने पहाड़ो और खंडहर हो चुके मकानों में मशरूम का व्यवसाय खड़ा कर दिया है। दिव्या रावत मशरूम का एक्सपोर्ट अपनी कम्पनी सोम्य फ़ूड के नाम से विदेशो में भी करती है। आपको बता दें कि दिव्या रावत अपने इस स्टार्टअप से करोड़ो का टर्नओवर हर साल अर्जित करती है।

दिव्या कहती है “मैं कोई असाधारण काम नहीं कर रही हूँ. बस में तो अपना सामाजिक दायित्व निभा रही हूँ। मैं उत्तराखंड की निवासी हूँ, यहाँ पर आये दिन रोजगार और जीविका के लिए लोगो का पलायन हो रहा था। जब इस मुद्दे के हल के लिए मैंने यहाँ के लोगो और भूमि का अध्ययन किया तो पाया कि अगर कृषि के क्षेत्र में कोई बेहतर कदम उठाया जाए तो बात बन सकती है। बस मेरे पास एक ही उपाय था कि मैं यहाँ मशरूम की खेती करूँ, मैं इसमें खुद को एक उदाहरण के तौर पर पेश करके लोगो को प्रेरित करना चाहती थी और इस तरह मैं एक सामाजिक उद्यमी बन गई।”

वहीं दिव्या रावत बताती है कि सबसे अच्छी बात ये है कि उत्तराखंड में मशरूम उत्पादन के काम में मैं अकेली ही हूँ. ये सकारात्क और नकारात्मक दोनों ही है क्योंकि ऐसे लोगो को ढूँढना बड़ा मुश्किल काम था जो मेरे साथ इस काम को कर सके। अब तक मशरूम बड़ी फैक्ट्रियों में ही उगाया जाता था जो कि चार से पांच करोड़ के इन्वेस्टमेंट में शुरू किया जाता था लेकिन मैं इसे फ़ेक्ट्री से निकलकर फार्म में लेकर आई। आज अगर किसी के भी पास 2-3 कमरे है तो वह खुद का मशरूम व्यवसाय 10-15 हजार में शुरू कर सकता है।

दिव्या ने आगे बताया कि मैं इस मुकाम पर पहुँच चुकी हूँ कि मुझे उत्तराखंड सरकार की कोई जरुरत नहीं है। दिव्या रावत ने आगे की तयारी के लिए बताया की देश की बड़ी मंडियों में बेचने के लिए तैयार हूँ, मैं पूरी योजना के साथ आगे बाढ़ रही है।

‘मशरूम लेडी’ दिव्या रावत का ये स्टार्टअप बाकई में काबिले-तारिफ है, क्योंकि दिव्या ने उन लोगो के लिये काम शुरू किया जो रोजगार की तलाश में अपनी जमीन छोड़ रहे थे। दिव्या अपने इस काम से ना सिर्फ अच्छा पैसा कमा रही है बल्कि अपना सामाजिक दायित्व भी बखूबी निभा रही है।

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